कैसे एक केंटीन बॉय बना बॉलीवुड का सुपरस्टार, जिसे दिलीप कुमार के नाम से जाना गया…

    आज हम बात करेंगे कैसे एक केंटीन बॉय बना बॉलीवुड का सुपरस्टार दिलीप कुमार और जिसे ना सिर्फ हिंदुस्तान में बल्कि दुनिया भर के लोग उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के रूप में पहचानते हैं I वह हिंदुस्तान के अभिनेता होने के साथ-साथ हिंदुस्तान के राज्यसभा के सांसद भी रह चुके हैं, आजादी से लेकर 60,70 के दशक के वह हिंदुस्तान के सबसे लोकप्रिय अभिनेता थे I हिंदी सिनेमा की दुनिया के वह बेताज बादशाह और सबसे कामयाब अभिनेता थे, हिंदी सिनेमा के परदे पर सबसे पहले ‘मेथड एक्टिंग’ की शुरूआत इन्होंने की I इन्हें एक्टिंग करियर में दिलचस्पी कभी नहीं थी, और ना उन्होंने कभी सोचा था कि वह इतने बड़े अभिनेता बनेंगे, कि दुनिया भर के लोग उनके मिसाले देते थकते नहीं I इन्हें हिंदुस्तान के हिंदी सिनेमा के 8 फिल्म फेयर अवार्ड और दादा साहेब फाल्के पुरस्कार मिला है, और इसी के साथ पाकिस्तान के सर्वोच्च नागरिक का सम्मान ‘निशाने-ऐ-इम्तियाज का भी पुरस्कार मिला I 

    11 दिसंबर 1922 को पाकिस्तान के पेशावर में पठान परिवार में एक लड़के का जन्म होता है, उसका नाम मोहम्मद यूसुफ खान था, इनके पिता पेशावर में फलों के व्यापारी थे, और उनका नाम मोहम्मद लाला गुलाम सरवर खान था, सरवर साहब अपनी बीबी आयशा और 6 बेटे और 6 बेटियों के साथ रहते थे I यह उन दिनों की बात है जब हिंदुस्तान अभी आजाद नहीं हुआ था, हिंदुस्तान में अंग्रेजों की हुकूमत थी, सरवर साहब पेशावर से बॉम्बे आते हैं, यूसुफ खान भी अपने पिता के साथ आते हैं, कारोबार में हाथ बटाने I 1900 के दशक में मुंबई को बॉम्बे के नाम से जाना जाता था, अपने पिता के साथ फलों के व्यापार में काम करते हुए, उन्होंने तकिया बनाने का नया काम शुरू किया, लेकिन वह काम ज्यादा वक्त तक चला नहीं I

यूसुफ खान को पुणे के एरोड़ा जेल में कैद कर…

   कुछ वक्त के बाद एक दिन यूसुफ खान की अपने पिता के साथ किसी बात को लेकर दोनों बाप और बेटे में बहस हो गई, और उसी गुस्से में यूसुफ खान अपने पिता को छोड़ बॉम्बे से पुणे चले गए, उन दिनों अंग्रेजों की हुकूमत थी I पुणे में अंग्रेजी सैनिकों का एक कैंटीन हुआ करता था, पुणे पहुंचने के बाद यूसुफ खान ने उस कैंटीन में अपना एक सैंडविच का स्टाल लगा दिया I अंग्रेजी सैनिकों को सैंडविच बहुत पसंद था, इसी वजह से यूसुफ खान का सैंडविच बेचने का काम अच्छा चल रहा था I उस वक्त यूसुफ खान ने पुणे में उसी कैंटीन में जहां पर वह काम करते थे, वहां एक भाषण दिया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि अब हिंदुस्तान को आजाद होना चाहिए, वहां मौजूद अंग्रेजी सैनिकों ने जब यह सुना तो उन्हें गुस्सा आया, उन्हें यह भाषण उनके खिलाफ लगा, तो उन्होंने यूसुफ खान को पुणे के एरोड़ा जेल में कैद कर लिया, बगावत करने के इल्जाम में I

    कैंटीन में सैंडविच बेचने के दरमियान यूसुफ खान की दोस्ती एक अंग्रेजी मेजर से होती है, उसी मेजर के मदद से उन्हें रिहाई मिली, और वह कैद से आजाद हो गए I रिहाई के बाद जब सैंडविच के स्टॉल का हिसाब किताब हुआ, तो उन्हें ₹5000 मुनाफा मिला, वही ₹5000 लेकर यूसुफ खान वापस बॉम्बे आते हैं अपने पिता के पास, और फिर से वह अपने पिता के कारोबार में हाथ बटाने लगते हैं I उस समय यूसुफ खान फिल्मी दुनिया से दूर थे, लेकिन सरवर साहब पृथ्वीराज कपूर के करीबी दोस्त थे, और उनके बेटे राज कपूर फिल्मों में काम कर रहे थे, पर यूसुफ खान पठान परिवार से थे, उनके परिवार में कोई भी एक्टिंग के करियर में नहीं था, क्योंकि सरवर साहब को यह बात पसंद नहीं थी, कि उनके घर से कोई भी फिल्मी दुनिया में कम करें, और घर वालों का कहना था कि जो पिता का फलों का कारोबार हैं वह संभालना I

उनकी मुलाकात डॉक्टर मसानी से होती…

   इसी वजह से यूसुफ खान पुणे से लौटने के बाद बॉम्बे में अपने पिता के फलों के कारोबार में काम करने लगे I यूसुफ खान की जिंदगी में पहली दफा एक मोड़ आया, एक दिन अपने काम के सिलसिले से लोकल ट्रेन से कहीं जा रहे थे, वहां उनकी मुलाकात डॉक्टर मसानी से होती है, वह एक साइकोलॉजी स्पेशलिस्ट थे I यूसुफ खान से डॉक्टर ने पूछा कि वह कहां जा रहे हैं, उन्होंने कहा की वह किसी काम से जा रहे हैं, तब यूसुफ खान ने डॉक्टर से पूछा कि आप कहां जा रहे हैं, डॉक्टर साहब ने कहा कि वह बॉम्बे टॉकीज जा रहे हैं I बॉम्बे टॉकीज उन दिनों बहुत मशहूर था, जैसे आज धर्मा प्रोडक्शन, यशराज बैनर फेमस है, इस तरह बॉम्बे टॉकीज एक बहुत बड़ी कंपनी थी, जो फिल्में बनती थी, और प्रोड्यूस करती थी I

    बॉम्बे टॉकीज की मालकिन थी, देविका रानी वह खुद भी एक फेमस अदाकारा, फिल्म निर्माता, और बहुत रईस खानदान से थी I डॉक्टर साहब ने कहा की, अगर तुम्हारा काम जरूरी नहीं है, तो चलो आज मैं तुम्हें देविका रानी से मिलवाता हूं, यूसुफ साहब भी तैयार होते हैं, देविका रानी से मिलने के लिए क्योंकि उन्होंने पहले कभी फिल्मी स्टूडियो देखा नहीं था, कैसा होता है वहां पर काम कैसे करते हैं, शूटिंग कैसे होती है I कुछ देर बाद यूसुफ खान डॉक्टर मसानी के साथ बॉम्बे टॉकीज के स्टूडियो में पहुंच जाते हैं, वहां पहुंचने के बाद डॉक्टर मसानी देविका रानी से यूसुफ खान की पहचान करवाते हैं, कहते हैं कि यह यूसुफ खान है और इनका फलों का व्यापार है, उनके बारे में सारी जानकारी उन्हें बताते हैं I

यूसुफ खान कहते हैं जी हां मुझे उर्दू आती है…

    जब पहली बार देविका रानी यूसुफ खान को देखती हैं, दिखने में वह एकदम दुबले पतले, नौजवान लड़का लेकिन चेहरे पर एक गंभीर भाव और अलग ही कशिश थी I फिर देविका रानी उनसे पहला सवाल पूछती है, क्या तुम्हें उर्दू आती है, जवाब में यूसुफ खान कहते हैं जी हां मुझे उर्दू आती है, पहले जब यूसुफ खान पुणे में एक कैंटीन में काम कर रहे थे, तब वहां के अंग्रेजी सैनिकों ने उनसे पूछा था, क्या तुम्हें अंग्रेजी आती है, यूसुफ खान की अंग्रेजी बहुत अच्छी थी, वह पढ़े लिखे थे और इसी के कारण उन्हें सैनिकों के कैंटीन में स्टॉल लगाने की इजाजत मिली थी I अब यहां पर पूछा जा रहा है क्या तुम्हें उर्दू आती है, क्योंकि हमें एक उर्दू जानने वाले की जरूरत है, हमें एक स्क्रिप्ट लिखनी है उर्दू में, लेकिन हमें एक ऐसे शख्स की जरूरत है, जिसे उर्दू आती हो I

    कुछ देर तक यूसुफ खान और देविका रानी में बातचीत होती है, फिर देविका रानी यूसुफ खान से पूछती है कि फिल्म इंडस्ट्री को लेकर तुम्हारी क्या राय है, तब वह कहते हैं की फिल्म इंडस्ट्री के बारे में मुझे मालूमात नहीं है I तब देविका रानी उनसे कहती है, क्या तुम एक्टिंग करना चाहोगे, तब यूसुफ साहब कहते हैं जी मैं नहीं कर सकता, एक्टिंग के बारे में मुझे कुछ पता नहीं हैं I तब वह कहती है तुम क्या करते हो तुम्हारा काम क्या है, तब वह कहते हैं कि हमारा फलों का व्यापार है, तो फिर से देविका रानी उनसे पूछती है कि जब तुम पहली बार इस कारोबार में काम करने आए थे, क्या तब तुम्हें पता था इस कारोबार को कैसे संभालना है, और कैसे करते हैं, यूसुफ साहब कहते हैं नहीं जानता था, इस पर देविका रानी कहती है, अब तुम जानते हो, वह कहते हैं हां अब आता है कारोबार करना I

     वह कहती है उसी तरह एक्टिंग हैं, अदाकारी हैं, यह सब भी सीख जाओगे, अगर तुम इसमें दिलचस्पी रखते हो तो मुझे बताना, उसी वक्त देविका रानी यूसुफ खान के सामने एक प्रस्ताव रखती हैं, वह कहती हैं, मैं तुम्हें बॉम्बे टॉकीज में 1250 सो रुपए में काम पर रखना चाहती हूंउस वक्त वहां पर मौजूद डॉक्टर मसानी भी थे, उन्होंने देविका रानी और यूसुफ खान की बातचीत सुनी, तो उन्होंने धीरे से यूसुफ खान को इशारे में कहा कि तुम देविका रानी का यह प्रस्ताव मान लो, यूसुफ खान थोड़ा घबरा रहे थे कि क्या करें, जब वह बाहर आते हैं देविका रानी से बातचीत करके, तो वह डॉक्टर मसानी से मशवरा करते हैं, तो डॉक्टर साहब कहते हैं की मान जाओ, इतनी बड़ी रकम तुम्हें कहीं और नहीं मिलेगी, और तुम्हारा करियर भी बन जाएगा I

1250 रुपए यह क्या है, तब देवी का रानी कहती है यह हर महीने…

    अब तक यूसुफ खान को लग रहा था 1250 रुपए यह रकम पूरे साल की है, उन दिनों 1941 में 1250 रुपए यह बहुत बड़ी रकम थी, लेकिन जब डॉक्टर मसानी ने उन्हें बताया कि यह रकम पूरे साल की नहीं बल्कि हर महीने की है, तब युसूफ खान ने कहा कि आप एक बार फिर से उनसे पूछ कर आना की सालाना है या हर महीने की I तब डॉक्टर मसानी युसूफ खान को अपने साथ वापस देविका रानी के पास ले आते हैं, और पूछते हैं कि 1250 रुपए यह क्या है, तब देवी का रानी कहती है यह हर महीने की तनख्वाह है, यह सुन युसूफ खान उनके साथ काम करने के लिए मान जाते हैं I 

    अब यूसुफ खान बॉम्बे टॉकीज से जुड़े हुए थे और वहां स्टूडियो में काम करना शुरू किया था, उन्हें वहां पर काम करते हुए कुछ ही दिन हो गए थे, एक दिन यूसुफ खान स्टूडियो में काम कर रहे थे, तभी एक आदमी आता है और कहता है, कि तुम्हें मैडम बुला रही है, मैडम यानी देविका रानी I जब यूसुफ खान देविका रानी के कमरे में जाते हैं, तब वह कहती है, मैं तुम्हें एक फिल्म में हीरो के रोल देना चाहती हूं, क्योंकि मुझे यह लगता है कि तुम्हें वह सारी खूबियां हैं जो एक हीरो में अदाकार में होनी चाहिए I थोड़ी देर सोच विचार करने के बाद यूसुफ खान तैयार हो जाते हैं, पर्दे पर  आने के लिए, तब सारी तैयारियां शुरू हो जाती है I कुछ दिन बाद देविका रानी यूसुफ खान को फिर से बुलाती है, कहती है अब मैं तुम्हें पर्दे पर ला रही हूं, इसलिए मैं तुम्हें एक नया नाम देना चाहती हूं, फिल्मी दुनिया के लिए I

बहुत गुस्सा होंगे, और उन्हें बहुत डांट पड़ेगी, शायद मार भी…

   यूसुफ खान के पिता सरवर साहब बहुत सख्त मिजाज के आदमी थे, यूसुफ खान अपने पिता से बहुत डरते थे, उन्हें लगा अगर यह बात सरवर साहब को पता चलेगी कि वह फिल्मों में आ रहे हैं, तो वह बहुत गुस्सा होंगे, और उन्हें बहुत डांट पड़ेगी, शायद मार भी खानी पड़े, इसी डर से वह सोचते हैं कि अगर दूसरे नाम से फिल्म आ जाएगी तो घर में किसी को पता नहीं चलेगा, डर के मारे वह नाम बदल देते हैं I देविका रानी यूसुफ खान को तीन नाम बताती है पहला नाम सरवर खान को हटाकर सिर्फ यूसुफ खान, दूसरा नाम दिलीप कुमार, और तीसरा नाम वासु देव, कहती है बताओ इनमें से कौन सा नाम, तब यूसुफ खान कहते हैं, यूसुफ खान छोड़कर बाकी दो नाम में से जो आपको अच्छा लगे वह रख दीजिए I

    उन दिनों यूसुफ खान से पहले देविका रानी ने एक और एक्टर को पर्दे पर लाई थी, उनका नाम अशोक कुमार था, वह भी बहुत कामयाब एक्टर बने थे, और उन दिनों कुमार नाम बहुत फेमस था I आखिर में यूसुफ साहब ने अपनी मंजूरी दे दी, तब देविका रानी युसूफ खान का नाम दिलीप कुमार रख देती हैं, और दिलीप कुमार इस नाम के साथ 1944 में बॉम्बे टॉकीज ने उनकी पहली पिक्चर ‘जवाहर भाटा’ यह पर्दे पर लाई, लेकिन वह पिक्चर हिट नहीं हो पाई थी I यहां से दिलीप कुमार का असली सफर की शुरुआत हुई, ‘जवाहर भाटा’ आई और चली गई, उस फिल्म में उतनी कमाई नहीं हो पाई थी, उस फिल्म में यूसुफ खान की एक्टिंग, अदाकारी को फिल्मी दुनिया के कई लोगों ने देखा, परखा उन्हें लगा कि यूसुफ खान में एक्टिंग को लेकर बहुत काबिलियत है, और इसलिए यूसुफ खान को एक और मौका मिलना चाहिए I

 पूरे फिल्म इंडस्ट्री में ऐसी दूसरी फिल्म ना 1900 के दशक में…

   इसके बाद दिलीप कुमार के पास धीरे-धीरे कुछ फिल्में आए, लेकिन उनसे भी वह फेमस नहीं हो पाए थे I दिलीप कुमार साल 1950 में देश आजाद होने के बाद उन्होंने कुछ ऐसे फिल्मी की जिससे वह रातों-रात हिंदी सिनेमा में दुनिया के बड़े स्टार बने, इसे पहले जैसे राज कपूर, अशोक कुमार, देव आनंद इन हीरो का दबदबा था I लेकिन दिलीप कुमार के फिल्मों में आने के बाद उनकी फिल्में एक के बाद एक बॉक्स ऑफिस के रिकॉर्ड तोड़ने लगी, और अब दिलीप कुमार यह नाम हर घर में पहचाने जाने लगा, और इंडस्ट्री में उन्हें ‘द फर्स्ट खान ऑफ इंडस्ट्री’ के नाम से भी पहचानने लगे I डायरेक्टर के आसिफ की 12 साल की मेहनत के बाद साल 1960 में आई ‘मुग़ल-इ-आज़म’ में सलीम के किरदार ने इतिहास रच दिया था, दिलीप कुमार और मधुबाला की यह सब से सुपर हिट फिल्म थी, पूरे फिल्म इंडस्ट्री में ऐसी दूसरी फिल्म ना 1900 के दशक में बनी, और ना ही अब तक किसी ने ऐसी फिल्म बनाई I

    सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन इस दौरान जैसी फिल्में दिलीप कुमार कर रहे थे, वह एक तरह से ट्रेजेडी वाले फिल्म थी, हर फिल्म में आंसू,आहे, गम इमोशनल होना, भावक होना हमेशा अपने किरदार में रहना, इस वजह से उनके दिमाग पर इसका गहरा असर होने लगा था, वह अकेले रहने लगे थे, और उन्हें लग रहा था कि वह डिप्रेशन में जा रहे हैं I कई दोस्तों से उन्होंने मशवरा किया, और लंदन में उनके कुछ जान पहचान के लोग थे, उनसे बात की उन लोगों ने उन्हें सलाह दी, कि वह किसी साइकाइट्रिक्स से बात करें और अपना इलाज करवाए, दिलीप कुमार ने वहीं लंदन में ही अपना इलाज करवाया I अपने इलाज के दरमियान दिलीप कुमार जितने भी लोगों से मिले थे, उन सब ने उनसे यही कहा कि आप जो इतने सालों से फिल्मों में जिस तरह के कैरेक्टर को प्ले कर रहे हैं, उसका आपकी जिंदगी पर बहुत गहरा असर हो रहा है, और इस परेशानी से निकलने के लिए, आप किसी और तरह के कैरेक्टर को प्ले करें, ताकि आप इन चीजों से बाहर निकल सके I 

  दिलीप कुमार जो डिप्रेशन की शिकार हो रहे थे इन…

     डॉक्टर और अपने दोस्तों की बात मान कर वह पहली बार कॉमेडी फिल्म में काम करने का तय करते हैं, यह देख उस वक्त बहुत से लोगों ने कहा था, की यह बहुत बड़ा रिस्क ले रहे हैं, क्योंकि इससे पहले उन्होंने कभी कॉमेडी फिल्म नहीं की थी, और इनकी पर्सनै लिटी ट्रेजेडी किंग कि थी I लग रहा था कि उनकी कॉमेडी फिल्म बॉक्स ऑफिस पर चलेगी कि या नहीं, लेकिन जब उनकी पहली कॉमेडी फिल्म ‘अंदाज’ आई, और अंदाज सुपर हिट हो गई, और फिर एक के बाद एक दिलीप कुमार कॉमेडी फिल्म देते गए, जुगनू, राम और श्याम, इस तरह के सुपरहिट कॉमेडी फिल्म दिलीप कुमार ने फिल्म इंडस्ट्री को दिए I दिलीप कुमार जो डिप्रेशन की शिकार हो रहे थे इन चीजों से उन्होंने उभरना सीखा I

    हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में वह इकलौते ऐसे हीरो है, जिनके नाम सबसे ज्यादा अवार्ड, पुरस्कार थे, दिलीप कुमार को 8 फिल्म फेयर अवार्ड, और 1951 में पद्म भूषण, 2015 में पद्म विभूषण भी, और 1994 में दादा साहेब फाल्के जैसे पुरस्कार भी मिले थे, और इसी के साथ पाकिस्तान के सर्वोच्च नागरिक का सम्मान “निशाने-ऐ-इम्तियाज” का भी पुरस्कार मिला था I दिलीप कुमार ने 60 से ज्यादा अधिक फिल्मों में काम किया था, एक्टिंग और अदाकारी बहुत से नई जनरेशन के लड़कों ने यह उनसे सीखा, उन्हें कॉपी किया उस में सब से पहला नाम शाहरुख खान का आता है I 

यह थी दिलीप कुमार साहब की फिल्मी दुनिया से जुड़ी हुई महत्वपूर्ण जानकारी, अब जानते हैं दिलीप कुमार साहब की निजी जिंदगी के बारे में 

    अब बात करते हैं दिलीप कुमार की निजी जिंदगी के बारे में, 1960 जब दिलीप कुमार “मुग़ल-ए-आजम” की शूटिंग कर रहे थे, तब उनके साथ लीड रोल में एक्ट्रेस मधुबाला थी, फिल्म की शूटिंग के दरमियान उन दोनों के बीच प्यार हुआ I मधुबाला का असली नाम “बेगम मुमताज जेहान दहलवी” था, और सब लोग उन्हें “वीनस क्वीन” के नाम से भी जानते थे I वह एक मुस्लिम परिवार से थी, दिलीप कुमार मधुबाला से शादी करने के लिए भी तैयार थे, लेकिन मधुबाला के पिता अत्ताउल्लाह खान को यह बात मंजूर नहीं थी, परिवार की आर्थिक स्थिति उन दिनों बहुत खराब थी और मधुबाला के पैसों से ही घर खर्च चलता था, अगर मधुबाला ही शादी करके ससुराल चली जाएगी तो उनका घर कैसे चलेगा, इसी फिक्र में एक दिन अत्ताउल्लाह खान दिलीप कुमार से मिलने मुग़ल-इ-आज़म के सेट पर पहुंच जाते हैं I

मैं कसम खाता हूं कि मैं मधुबाला की तरफ कभी मुड़ कर भी…

    सेट पर पहुंच कर अत्ताउल्लाह खान ने दिलीप कुमार को देखते ही उनके चेहरे पर जोरदार थप्पड़ मारा, और कहां कि मेरी बेटी से दूर रहो, उस वक्त सेट पर बहुत से लोग थे और सबके सामने अपनी सेल्फ रिस्पेक्ट को बचाते हुए, दिलीप कुमार ने गुस्से में अत्ताउल्लाह खान से कहते हैं, मैं कसम खाता हूं कि मैं मधुबाला की तरफ कभी मुड़ कर भी नहीं देखूंगा, मैं एक पठान हूं और यह एक पठान की जुबान है I किसी तरह से समझा बुझा कर डायरेक्टर के आसिफ ने “मुगल-ए-आजम” की शूटिंग पूरी कर ली I “मुग़ल-इ-आज़म” इस फिल्म के बाद मधुबाला और दिलीप कुमार किसी और पिक्चर में साथ नहीं दिखाई दिए और ना ही उन्हें कभी अपने निजी जिंदगी में कभी एक दूसरे से बात तक की I

    44 साल की उम्र में 1966 में दिलीप कुमार ने अपने से कम उम्र की फेमस ऐक्ट्रेस सायरा बानो से शादी कर ली, उस वक्त सायरा बानो की उम्र 22 साल थी I लेकिन मधुबाला ने हमेशा दिलीप कुमार से प्यार किया, हर वक्त उनकी याद में रहती, मधुबाला के दिल में छेद था इसी वजह से अक्सर मधुबाला की तबीयत खराब रहती थी, वह हमेशा सोचा करती कि दिलीप कुमार उन्हें देखने और मिलने आएंगे, पर अफसोस दिलीप कुमार ने अत्ताउल्लाह खान को जुबान दी थी, कि वह मधुबाला से दोबारा नहीं मिलेंगे, उसी को याद रखते हुए दिलीप कुमार ने फिर कभी मधुबाला की खबर नहीं ली I दिलीप कुमार के शादी के तीन साल बाद 1969 में मधुबाला ने इस दुनिया को अलविदा कहा I 7 जुलाई 2021 को हिंदूजा हॉस्पिटल मुंबई में उम्र के संबंधित बीमारियों के साथ दिलीप कुमार साहब फिल्म इंडस्ट्री और हम सब को छोड़कर चले गए I 

यह थी दोस्तों हिंदी सिनेमा के सर्वश्रेष्ठ अभिनेता और ट्रेजेडी किंग दिलीप कुमार साहब उर्फ मोहम्मद यूसुफ खान की जीवन की कहानी  

  

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