वो हिंदी सिनेमा के पहले डांसिंग स्टार कहलाए, अपने अंग के हर हिस्से को तोड़ मरोड़ कर अपनी डांसिंग स्टाइल के लिए मशहूर हो गए, कार चलने और शिकार करने के शौकीन ये अदाकार का अंदाज सबसे निराला, और मिजाज चुलबुला था, और ये हसीनाओं के बीच काफी मशहूर थे I एडवेंचर के आशिक यह अदाकार जिसके चेहरे पर हमेशा कातिलाना मुस्कान रहती थी, इनके अटपटी हरकतें गानों में एक अलग ही जोश पैदा करती थी, और उनके साथ ही कलाकार इन्हें हंसमुख और जिंदा दिल नौजवान कहते थे I हिंदी फिल्म इंडस्ट्री और थिएटर के बड़े मशहूर खानदान से तालुकात रखने वाले इस अदाकार को प्लेबॉय का खिताब भी मिला, क्योंकि यह साथ काम करने वाली हर दूसरी अदाकारा को प्रपोज करते थे, और उसकी मोहब्बत में गिरफ्तार हो जाते थे I
उस दौर की एक मशहूर अदाकारा ने उनसे शादी करने के लिए हांमी भारी, उस वक्त इन्होंने बिना किसी देरी के इतनी जल्दबाजी में इन्होंने शादी कर ली की सिंदूर के जगह लिपस्टिक से अपनी पत्नी की मांग भर दी I पहली पत्नी के मरने के बाद परिवार वालों ने दूसरी शादी के लिए दबाव बनाया, तब इन्होंने लड़की के सामने एक ऐसी शर्त रखी, शर्त सुनकर दोनों परिवार वाले हैरान रह गए I शादी से पहले इन्होंने बहुत सी अभिनेत्री को शादी के लिए प्रपोज किया, तो वही शादी के बाद, खुद से 16 साल छोटी एक मशहूर अदाकारा से इन्हें प्यार हो गया, पर उस अदाकारा ने बड़े ही नाराजगी से इनके प्रस्ताव को ठुकराया I तो कौन थे यह आशिक मिजाज अदाकार और क्यों यह हमेशा अपने अजीबो गरीब हरकतों, आदतों और शर्तों से विवादों में रहे I
आज हम जानेंगे 1950 और 60 के दशक के मशहूर महान अदाकार शम्मी कपूर साहब के बारे में, जो अपने एक्टिंग के साथ अपने आशिकाना अंदाज, डांस करने की निराली अदा, और अपने अटपटी हरकतों, और साथ ही साथ हसीनाओं पर अपना जादून चलाने के लिए जाने जाते थे I ये फिल्मों के गोल्डन एरा के उस दौर में सिग्नेचर डांसिंग स्टाइल की वजह से काफी मशहूर हो गए थे, डांसिंग की डिफरेंट स्टाइल के वजह से उस दौर में इन्हें बॉलीवुड का “एल्विस प्रेस्ली” कहने लगे, “एल्विस प्रेस्ली” ये हॉलीवुड के जाने माने मशहूर सिंगर और डांसर थे I फिल्मों में सीरियस अदाकार को देखना पसंद करने वाली दर्शकों ने शम्मी कपूर को कभी उछलता बंदर कहा, तो कभी कुदता मेंढक कहते I अगर हम शम्मी कपूर के फिल्मों में उनके अभिनय कला पर नजर डालेंगे तो पता चलता है की ये अपने वक्त के आगे के अंदाज में दिखाई देते थे, एकदम बेफिक्र मस्त मौला अंदाज, हैंडसम पर्सनालिटी, खुलकर अभिनय करने की कला, उनकी इसी खासियत ने शम्मी कपूर को अपने दौर के सभी अदाकार से अलग बनाती है I
शम्मी कपूर साहब का जन्म 21st अक्टूबर 1931 को महाराष्ट्र के मुंबई में हुआ, इनका जन्म किसी आम खानदान में नहीं हुआ, बल्कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री का पहला परिवार कहे जाने वाले, मशहूर कपूर खानदान में हुआ, शम्मी कपूर मुँह में सोने का चम्मच लिए पैदा हुए, इनके पिता पृथ्वीराज कपूर साहब महान अभिनेता होने के साथ-साथ एक थिएटर कलाकार भी थे, जिन्होंने “आलम आरा” में काम किया था, और हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की शुरुआत में अपने कदम जमा लिए थे I सिनेमा के फाइंडिंग फिगर माने जाने वाले पृथ्वीराज कपूर साहब इनका अपना थिएटर था, और मुंबई से लेकर कोलकाता तक इनका अपना थिएटर होने की वजह से इनका नाम काफी मशहूर था I
इनकी मां श्रीमती रामसरणी कपूर ये एक पंजाब के खत्री परिवार से थी, और उनके भाई जुगल किशोर मेहरा एक अभिनेता थे, शम्मी कपूर के दोनों भाई भी किसी पहचान के मोहताज नहीं है, इनके बड़े भाई राज कपूर और छोटे भाई शशि कपूर, यह भी अपने दौर के एक महान अभिनेता थे, शम्मी कपूर को एक बहन भी थी उर्मिला कपूर I शम्मी कपूर के दादा दीवान बसवेश्वर नाथ कपूर भी राज कपूर साहब की फिल्म “आवारा” में जज की किरदार में नजर आए थे, इनके खानदान की जड़े पेशावर से जुड़ी थी, जो आज भी पेशावर में इनका पुराना घर स्थित है I पृथ्वीराज कपूर साहब ने शम्मी कपूर का नाम शमशेर राज कपूर रखा था, पर परिवार वाले इन्हें प्यार से शम्मी पुकारते थे, और आगे चलकर इन्हें इंडस्ट्री में इसी नाम से पहचान मिली I
घर का माहौल फिल्मी होने के वजह से शम्मी कपूर की रुचि अभिनय कला में बढ़ने लगी, और इसी के चलते इन्होंने बचपन में कई फिल्मों में बाल कलाकार के रूप में काम भी किया I शम्मी कपूर की शुरुआती पढ़ाई कोलकाता में हुई जब परिवार कोलकाता से मुंबई शिफ्ट हुआ तो उनकी आगे की पढ़ाई मुंबई में हुई, शम्मी जी को एयरोनॉटिकल इंजीनियर बनना था, लेकिन जब हद से ज्यादा बड़ी और मोटी मोटी किताबें पढ़ने को मिले तो, किताबें देखकर ही एयरोनॉटिकल इंजीनियर बनने का भूत सर से उतर गया, और अपनी कॉलेज की पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी I फिर अपने पिता के साथ उनके पृथ्वी थिएटर से जुड़ गए I
अपने पिता और बड़े भाई राज कपूर के नक्शे कदम पर चलकर फिल्मों में अभिनय काला में काम करने लगे, सबसे पहले कार्डर फिल्म प्रोडक्शन ने साल 1953 में शम्मी जी की पहली फिल्म “जीवन ज्योति” में काम दिया, और इस फिल्म के डायरेक्टर महेश कौल थे I पिता पृथ्वीराज कपूर ने शम्मी जी से कहा अगर अभिनय कला में रुचि है और इससे अच्छा सीखने की इच्छा रखते हो, तो घर से बाहर निकाल कर बाहर के प्रोडक्शन हाउस में काम करो, और इस तरह से शम्मी जी की एक्टिंग करियर की शुरुआत हुई I शम्मी जी की पहली फिल्म की कमाई ₹1000 थी, और वह 1000 ₹1 लेकर कारों की शौकीन शम्मी जी कारों के बाजार गए, और अपनी पहली कमाई एडवांस में देकर ₹12000 की सेकंड हैंड कार खरीद ली, जिसकी बाकी पेमेंट उन्होंने फिल्मों में काम करके की I
इसी साल शम्मी जी की चार फिल्में और आई जैसे की “गुल सनोबर” “लैला मजनू” “ठोकर” और मशहूर अदाकारा मधुबाला के साथ ”रेल का डिब्बा” 1953 में रिलीज हुई थी, शम्मी जी के साथ मधुबाला जी की पहली फिल्म थी I इसके अगले साल 1954 में शम्मी जी की पांच फिल्में आई, “शमा परवाना” “चोर बाजार” “महबूबा” “एहसान” और “साहिल” जैसी फिल्में शामिल थी I इसके बाद 1956 में भी चार फ़िल्में और आई जैसे “तांगेवाली” “मिस कोका-कोला” “नकाब” “रंगीन राते” और “डाकू” I “रंगीन राते” इस फिल्म में शम्मी जी ने उस वक्त की मशहूर अदाकारा गीता बाली के साथ काम किया और उन्हें दिल दे बैठे, और इस बात पर काफी विवाद भी हुए थे I
एक्टिंग तो आती नहीं अपने बड़े भाई राज कपूर को कॉपी करते हैं…
इन फिल्मों के अलावा 1956 में शम्मी जी के कुछ फ़िल्में और आई थी, जैसे की “सिपै सलर” “हम सब चोर हैं” और “मेम साहब”, मेम साहब में शम्मी जी के साथ मीना कुमारी लीड रोल में थी, और इनकी जोड़ी को दर्शकों ने काफी पसंद किया था I तीन-चार साल से कई फिल्मों में काम करने के बावजूद भी इनमें से एक भी ऐसी फिल्म नहीं थी जो शम्मी जी को उनके एक्टिंग और उनके किरदार की वजह से पहचानी जाए, लोगों ने यह भी कहा कि यह एक्टिंग तो आती नहीं, बस यह अपने बड़े भाई राज कपूर को कॉपी करते हैं, फिर तो नाराज शम्मी ने खुद को अलग दिखाने के लिए खुद में बदलाव लाया, पहले तो इन्होंने अपनी मुझे काट दी, हेयर स्टाइल चेंज कर दी, विदेशी कपड़ों में शम्मी जी का एक अलग अंदाज में नजर आने लगा I वाकई में उनके इस बदलाव ने कमाल कर दिया I
इनके ऐसे बदले हुए स्टाइल में 1957 में एक आई फिल्म आई “तुमसा नहीं देखा”, फिल्म में शम्मी जी की स्टाइल उनकी अदाकारी देखकर सब के होश उड़ गए, क्योंकि यह फिल्म पर्दे पर आते ही बॉक्स ऑफिस पर छा गई I “तुमसा नहीं देखा” इस फिल्म में शम्मी जी के बदले हुए अंदाज उनका यूनीक स्टाइल और उनके अभिनय कला को देखते हुए उनके पास एक के बाद एक फिल्मों के लाइन लग गई, और उसके बाद एक के बाद एक हिट फिल्में शम्मी जी इंडस्ट्री को देने लगे, शम्मी जी के हिट फिल्मों के बात की जाए तो जरा मुश्किल है, क्योंकि इनकी फिल्मोग्राफी काफी विशाल है I
शम्मी जी ने 60 साल तक फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े रहे, और फिल्मों में अदाकारी भी की, कई फिल्मों में कई जनरेशन के हिस्सा बने, पर हम उनके कुछ नॉटेबल फिल्मों का जिक्र करेंगे I साल 1959 में शम्मी जी की बहुत सी फिल्में रिलीज हुई, लेकिन डायरेक्टर नासिर हुसैन की “दिल देख देखो” यह सुपरहिट बहुत ही खास रही, इस फिल्म ने शम्मी जी के करियर को और बुलंदियों तक पहुंचा, और उन्हें इस फिल्म से कामयाबी मिली I ब्लैक एंड व्हाइट के जमाने में शम्मी जी ने हिंदी सिनेमा में अपने काफी जलवे बिखरे, और साथ ही साथ रंगीन फिल्मों में अपने रंगीन अदाओं से मशहूर हुए I
शम्मी जी की पहली रंगीन फिल्म 1961 में आई “जंगली” जिसका निर्देशन सुभोध मुखर्जी ने किया था, इस फिल्म में शम्मी कपूर और सायरा बानो ने मुख्य भूमिकाएं निभाईं, “जंगली” फिल्म ने शम्मी कपूर को एक सुपरस्टार के रूप में स्थापित किया और सायरा बानो की यह पहली फिल्म थी। इस फिल्म ने शम्मी जी को सबसे अलग पहचान दिलाई, जिसकी ख्वाहिश हर अदाकार करता है, जंगली फिल्म में शम्मी जी का याहू बोलकर झूमने के स्टाइल के दर्शक कायल हो गए थे, और साथ ही इनके हिप शकिंग डांस ने इन्हें नौजवानों के बीच सबसे लोकप्रिय अभिनेता बनाया, और इनको अमेरिका के मशहूर डांसर और सिंगर “एल्विस प्रेस्ली” के साथ कंपेयर करने लगे I शम्मी जी ने कभी भी पलट कर नहीं देखा और कामयाबी की बुलंदियां हासिल करते गए I
“जंगली” फिल्म को म्यूजिक शंकर-जयकिशन ने दिया था और इस फिल्म के गाने काफी मशहूर हुए थे :
- Yahoo! Chahe Koi Mujhe Junglee Kahe” (मोहम्मद रफी साहब ने इसे अपनी आवाज दी)
- “Ehsaan Tera Hoga Mujh Par”
- “Aayi Aayi Ya Suhaani”
- “Kashmir Ki Kali Hoon Main”
अभी तक जिक्र किए गए फिल्मों के अलावा शम्मी जी की कुछ सफल फिल्मों के नाम है जिनमें सबसे खास रहे साल 1961 की फिल्म “बॉयफ्रेंड” जिसमें उस दौर की मशहूर अदाकारा मधुबाला शम्मी जी के साथ लीड रोल में थी, और इसी साल एक और फिल्म आई थी “दिल तेरा दीवाना”, साल 1962 की फिल्म “प्रोफेसर” यह कई मामलों में खास रही, इसमें शम्मी जी ने अपने अदाकारी के लिए काफी वह-वहही बटोरी I “प्रोफेसर” के साथ ही 1962 में ही आई फिल्म “चीन टाउन” और “वल्लाह क्या बात है” यह फिल्में भी पर्दे पर अच्छी रही, और इसी के साथ 1963 में आई फिल्म “ब्लफमास्टर” से तो शम्मी जी नौजवानों की पहली पसंद बन गए, और हर किसी के जबान पर इन्हीं के चर्चे थे I
1964 की फिल्म “राजकुमार” भी काफी सुर्खियों में रही, जिसमें इनके पिता पृथ्वीराज कपूर ने उनके साथ स्क्रीन शेयर किया था, दोनों बाप बेटे की जोड़ी को दर्शकों में काफी प्यार दिया I इसी साल शम्मी जी की फिल्म “कश्मीर की काली” आई, जिसमें शम्मी जी ने ऐसा अभिनय किया की इस फिल्म के आते ही किसी और हीरो की फिल्म टिक ही नहीं आई I साल 1965 में आई फिल्म “जानवर” कौन भूल सकता है, इसके 1 साल बाद 1966 में आई फिल्म “तीसरी मंजिल” भी शम्मी कपूर के करियर के लिए बेहद खास रही, और इस फिल्म के गाना “ओ हसीना जुल्फी जाने जहां” यह उस दौर में हर किसी के लबों पर था, या यूं कहूं कि आज भी जो एक बार सुन ले बस गुनगुनाते ही रहता है, और इसी साल आई फिल्म “बदतमीज” में भी अच्छी साबित हुई और इस फिल्म में शम्मी जी के साथ अभिनेत्री साधना लीड रोल में थी, और दर्शकों ने इस जोड़ी को भी काफी पसंद किया I
इस फिल्म का संगीत आर. डी. बर्मन ने दिया था और इसके गाने बेहद लोकप्रिय हुए :
- “Aaja Aaja Main Hoon Pyar Tera”
- “O Haseena Zulfonwali”
- “Tumne Mujhe Dekha”
- “Deewana Mujhsa Nahin”
इस फिल्म का संगीत आर. डी. बर्मन ने दिया था और इसके गाने बेहद लोकप्रिय हुए :
पहली भारतीय फिल्म थी जिसे बड़े पैमाने पर विदेश में…
डायरेक्टर शक्ति सामंत ने साल 1967 में शम्मी कपूर और शर्मिला को लेकर एक फिल्म बनाई थी, जिसका नाम था और “An Evening in Paris इस फिल्म में शम्मी कपूर और शर्मिला टैगोर लीड रोल में थे । इस फिल्म में भी शम्मी जी ने छप्पर फाड़ कामयाबी हासिल किI फिल्म को इसके शानदार गानों, विदेशी लोकेशनों, और रोमांचक कहानी के लिए जाना जाता है। फिल्म की कहानी दीपक (शम्मी कपूर) और रोमा (शर्मिला टैगोर) के इर्द-गिर्द घूमती है। दीपक एक अमीर युवक है जो पेरिस में रहने वाली भारतीय लड़की रोमा से मिलता है। फिल्म में ट्विस्ट तब आता है जब रोमा का अपहरण हो जाता है और उसकी जगह एक हमशक्ल ले लेती है। “An Evening in Paris” ये उस दौर में हिंदुस्तान के हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की सबसे पहली फिल्म थी, जो बड़े पैमाने में विदेश में, मुख्य रूप से पेरिस और कई यूरोपीय स्थान पर इस फिल्म की शूटिंग की गयी I
इस फिल्म के गाने बेहद लोकप्रिय हुए, जैसे की :
- Akele Akele Kahan Ja Rahe Ho”
- “Raat Ke Humsafar”
- “Aasmaan Se Aaya Farishta”
ये गाने मोहम्मद रफ़ी साहब और आशा भोंसले जैसे दिग्गज गायकों ने गाए थे, और संगीत शंकर-जयकिशन ने दिया था।
इसके बाद साल 1968 में आई फिल्म “ब्रह्मचारी” रिलीज़ हुई, एक लोकप्रिय हिंदी फिल्म है, जिसका निर्देशन और निर्माण भगवती प्रोडक्शंस के बैनर तले भप्पी सोनी ने किया था। इस फिल्म में शम्मी कपूर और राजश्री ने मुख्य भूमिकाएं निभाईं। “ब्रह्मचारी” फिल्म ने न केवल बॉक्स ऑफिस पर सफलता हासिल की, बल्कि इसे कई पुरस्कार भी मिले।
ब्रह्मचारी” का संगीत शंकर-जयकिशन ने दिया था और इसके गाने बेहद लोकप्रिय हुए :
- “Aaj Kal Tere Mere Pyar Ke Charche” (मोहम्मद रफ़ी साहब और सुमन कल्याणपुर द्वारा गाया गया)
- “Dil Ke Jharokhe Mein”
- “Main Gaoon Tum So Jao”
- “Chakke Mein Chakka”
1969 में रिलीज़ हुई “प्रिंस” एक हिंदी फिल्म है, जिसका निर्देशन लेख टंडन ने किया था, और इसे प्रकाश मेहरा प्रोडक्शन्स के बैनर तले निर्मित किया गया था, इस फिल्म में शम्मी कपूर, वैजयंतीमाला, और राजेन्द्रनाथ ने मुख्य भूमिकाएं निभाईं। “प्रिंस” अपने रोमांचक कथानक और शानदार संगीत के लिए जानी जाती है। शम्मी कपूर ने प्रिंस की भूमिका में शानदार प्रदर्शन किया और उनके अभिनय की काफी तारीफ हुई, वैजयंतीमाला ने मुख्य नायिका की भूमिका निभाई और अपनी अदाकारी और नृत्य कौशल से दर्शकों का मन मोह लिया।
इस फिल्म को म्यूजिक शंकर-जयकिशन ने दिया था, और इसके गाने भी बेहद मशहूर हुए :
- “Badan Pe Sitare Lapete Hue” (मोहम्मद रफ़ी साहब ने इसे अपनी आवाज दी)
- “Yehi Hai Tamanna” (मोहम्मद रफ़ी और लता मंगेशकर द्वारा गाया गया)
- “Muqabla Humse Na Karo” (मोहम्मद रफ़ी और शारदा द्वारा गाया गया)
1969 में रिलीज़ हुई “तुमसे अच्छा कौन है” एक हिंदी फिल्म है, जिसका निर्देशन प्रमोद चक्रवर्ती ने किया था, इस फिल्म में शम्मी कपूर, बबीता, महमूद, और ललिता पवार ने मुख्य भूमिकाएं निभाईं। यह एक म्यूजिकल रोमांटिक ड्रामा फिल्म थी, जिसमें शम्मी कपूर ने एक संगीतकार की भूमिका निभाई थी। 1970 में आई फिल्म “पगला कहीं का”, जिसका निर्देशन शक्ति सामंत ने किया था। इस फिल्म में शम्मी कपूर, आशा पारेख, और हेलन ने मुख्य भूमिकाएं निभाईं, यह फिल्म एक मनोरंजक और रोमांटिक कॉमेडी है, जिसमें शम्मी कपूर ने एक अनोखे किरदार में अभिनय किया है।
1971 में आई शम्मी कपूर की फिल्म “अंदाज़” ने। इसमें उन्हें एक आधुनिक और रोमनचक किरदार निभाया था। फिल्म में उनका प्रदर्शन और उनका ये नया रूप दर्शकों को बेहद पसंद आया था। शम्मी कपूर ने ‘अंदाज’ में राजन, एक बिजनेसमैन का रोल किया था, और उनकी केमिस्ट्री अभिनेता राजेश खन्ना और हेमा मालिनी के साथ फिल्म के मुख्य नायकों के रूप में भी काफी प्रसिद्ध थी। इस फिल्म की कामयाबी को शम्मी कपूर को राजेश खन्ना के साथ बांटना पड़ा, इसके बाद शम्मी कपूर को लीड रोल मिलने कम हो गए I
1971 के बाद शम्मी कपूर ने फिल्मों में काम करना बंद कर दिया, क्योंकि निजी जिंदगी में उन्हें सेहत संबंधित कइ तकलीफ होने लगी थी, 1961 में आई फिल्म “जंगली” के याहू गाने की शूटिंग के दौरान बर्फ में फिसलने का गाने की शूटिंग के दौरान बर्फ में फिसलने का सीन करते वक्त शम्मी जी के पैरों में चोट लगी थी, और, और इसी के साथ 1964 में आई फिल्म राजकुमार के टाइटल ट्रैक के लिए हाथी पर बैठकर शम्मी सीन को एक सीन करना था, उस सीन के दौरान शम्मी जी का पैर हाथी के सर और उसके चैन में दब गया था, जिसके कारण उनके पैर की हड्डी टूट गई थी I दोनों हादसों के बाद शम्मी जी के पैरों में अक्सर काफी तकलीफ होती थी I
उसके इलाज के लिए इन्होंने कई ट्रीटमेंट किया,और कई तरह की मेडिसिंस खाने पड़ी, और इसी के साथ डॉक्टर ने इन्हें एक्सरसाइज और वर्कआउट करने से भी मना किया था, बेड रेस्ट के लिए कहा था, जिसके कारण इनका वजन काफी हद तक बड़ा था I यह वक्त उनके लिए काफी कठिन और मुश्किल था, शम्मी जी ने सोचा कि घर पर खाली बैठने से अच्छा है क्यों ना फिल्म डायरेक्शन में हाथ आजमाया जाए, और शम्मी जी ने दो फिल्में डायरेक्ट की थी I पहली फिल्म साल 1974 में “मनोरंजन” को डायरेक्ट किया था, ये एक हिंदी कॉमेडी फिल्म है जिसमें शम्मी कपूर के साथ-साथ संजीव कुमार, लीना चंदावरकर और मीना कुमारी ने मुख्य भूमिकाएँ निभाईं।
साल 1976 में दूसरी फिल्म डायरेक्टर की थी जिसका नाम था “बंडलबाज़” ये एक फैंटेसी कॉमेडी फिल्म है जिसमें राजेश खन्ना और सुलक्षणा पंडित मुख्य भूमिकाओं में थे, यह फिल्म शम्मी कपूर के निर्देशन में बनी I “मनोरंजन” यह फिल्म अपनी दिलचस्प कहानी और अच्छे प्रदर्शन के बावजूद बॉक्स ऑफिस पर असफल रही, फिल्म का कथानक और संगीत सराहा गया, लेकिन इसे व्यावसायिक सफलता नहीं मिल सकी। बंडलबाज़” भी बॉक्स ऑफिस पर उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी। फिल्म की फैंटेसी और कॉमेडी की शैली को प्रशंसा मिली, लेकिन यह व्यावसायिक रूप से सफल नहीं हो पाई।
दोनों फिल्मों ने शम्मी कपूर के निर्देशन को दर्शकों के सामने रखा, लेकिन व्यावसायिक दृष्टिकोण से वे सफल नहीं रहीं। इन दोनों फिल्मों के बाद शम्मी जी ने फिल्म इंडस्ट्री से छोटा ब्रेक ले लिया, उसके बाद साल 1980 में वह सपोर्टिंग एक्टर के तौर पर फिल्म इंडस्ट्री वापसी की I शम्मी जी ने कई सालों तक फिल्म इंडस्ट्री में सपोर्टिंग एक्टर के लिए काम करते रह, और हर फिल्म में एक से बढ़कर एक अभिनय कला दिखाई I
उसके बाद साल 1982 में एक फिल्म “विधाता” आई, जिसका निर्देशन सुभाष घई ने किया इस फिल्म में दिलीप कुमार, शम्मी कपूर, संजीव कुमार, संजय दत्त और पद्मिनी कोल्हापुरे जैसे बड़े सितारे शामिल हैं। यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बहुत सफल रही और अपने दमदार प्रदर्शन और यादगार संगीत के लिए जानी जाती है। शम्मी कपूर ने फिल्म में शमशेर सिंह का किरदार निभाया है, जिसमें उन्होंने अपने अनोखे अंदाज और आकर्षण को जोड़ा। फिल्म की कहानी एक युवा व्यक्ति कुणाल (संजय दत्त द्वारा अभिनीत) के इर्द-गिर्द घूमती है, जो अपने पिता की मौत के जिम्मेदार व्यक्ति से बदला लेना चाहता है, लेकिन उसे आसपास के लोगों के रिश्तों और वफादारी की जटिलता का पता चलता है। “विधाता” अपने आकर्षक कहानी, शक्तिशाली अभिनय और कल्याणजी-आनंदजी द्वारा संगीतबद्ध गानों के लिए उल्लेखनीय है, जिनके गाने आज भी लोकप्रिय हैं। विधाता के लिए शम्मी जी को बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर के लिए “फिल्मफेयर अवार्ड” से नवाजा गया I
शम्मी कपूर को उनके फिल्मी करियर में कई पुरस्कारों और सम्मानों से नवाजा गया है :
वर्ष | पुरस्कार/सम्मान | श्रेणी | फिल्म/योगदान |
1962 | फिल्मफेयर पुरस्कार | सर्वश्रेष्ठ अभिनेता (नामांकन) | “प्रोफेसर” |
1968 | फिल्मफेयर पुरस्कार | सर्वश्रेष्ठ अभिनेता | “ब्रह्मचारी” |
1982 | फिल्मफेयर पुरस्कार | सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता | “विधाता” |
1995 | फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड | लाइफटाइम अचीवमेंट | हिंदी सिनेमा में योगदान |
1998 | कलाकार पुरस्कार | लाइफटाइम अचीवमेंट | हिंदी सिनेमा में योगदान |
1999 | जी सिने अवार्ड | लाइफटाइम अचीवमेंट | हिंदी सिनेमा में योगदान |
2001 | स्टार स्क्रीन अवार्ड | लाइफटाइम अचीवमेंट | हिंदी सिनेमा में योगदान |
2002 | आईफा अवार्ड | लाइफटाइम अचीवमेंट | हिंदी सिनेमा में योगदान |
2005 | बॉलीवुड मूवी अवार्ड्स | लाइफटाइम अचीवमेंट | हिंदी सिनेमा में योगदान |
2011 | पद्म भूषण | कला के क्षेत्र में योगदान | भारत सरकार द्वारा सम्मानित |
2011 में शम्मी कपूर अपने पर पोते रणबीर कपूर के साथ उनकी फिल्म “रॉकस्टार” में दिखाई दिए, यह शम्मी कपूर जी की आखिरी फिल्म थी, इसके बाद 60 सालों से चला आ रहा शम्मी कपूर का फिल्मी सफर यही रुक गया I उसके बाद शम्मी कपूर ने कुछ वक्त तक टीवी सीरियल्स में भी काम किया, जिसमें उन्होंने कुछ खास रोल निभाए I
शम्मी कपूर के निजी जिंदगी…
एक मुस्लिम परिवार की बेटी उनके घर की बहू नहीं बनेगी…
शम्मी कपूर दिल फेक आशिक मिजाज अदाकार थे, और इन्हें अपनी हर दूसरी फिल्म की अदाकारा पर दिल आ जाता था I उस दौर में शम्मी कपूर का जादू ऐसा था कि उनकी एक दो नहीं बल्कि कई सारी गर्लफ्रेंड थी, शम्मी कपूर जब अभी फिल्मी करियर से जुड़े नहीं थे उस वक्त उनका दिल उस दौर की मशहूर अदाकारा मधुबाला जी पर आया था, और जब इंडस्ट्री में एंट्री हुई तब उन्हें अपने पसंदीदा अदाकारा मधुबाला जी के साथ काम करने का मौका मिला I उस वक्त चाह कर भी शम्मी कपूर मधुबाला जी को अपना जीवन साथी नहीं बना सकते थे, क्योंकि उस वक्त मधुबाला जी दिलीप साहब के साथ रिश्ते मे थी, और दूसरी बात शम्मी जी की मां रामसरनी कपूर ने अपने बेटे को इस बात की ताकीत की थी, कि एक मुस्लिम परिवार की बेटी उनके घर की बहू नहीं बनेगी I
ऐसे तो शम्मी जी के गर्लफ्रेंड में कई सारे नाम आते हैं, लेकिन उनमें से एक नाम अदाकारा नूतन का भी था, लेकिन नूतन का मिजाज एकदम सीरियस था, और शम्मी जी ठहरे रोमांटिक, हंसमुख, और चुलबुल और इस वजह से यह रिश्ता यही रुक गया I शम्मी जी का जादू सिर्फ बॉलीवुड के अदाकाराओं पर नहीं बल्कि विदेशी लड़कियों पर भी था, वही साल 1953 से लेकर 1955 तक मिस्र की मशहूर डांसर और एक्टर “नादिया गैमेल” को बतौर शम्मी जी की गर्लफ्रेंड के रूप में पहचानते थे I “नादिया गैमेल” ने हिंदी फिल्मों में भी काम किया था, शम्मी कपूर की नदिया से मुलाकात 1953 में श्रीलंका में चल रहे क्रिकेट मैच के दौरान हुई थी, तब से लेकर 1955 तक दोनों साथ रहे I
गीता बाली ने देर रात शम्मी जी के पास आकर उनसे कहा कि मुझे अभी और इसी वक्त तुमसे शादी करनी है,
“नादिया गैमेल” से ब्रेकअप के बाद 1956 में शम्मी जी की एक फिल्म आई “रंगीन राते” जिसमें उनके साथ लीड रोल में मशहूर अदाकारा गीता बाली थी, फिल्म में साथ काम करने के दौरान शम्मी जी गीता बाली की तरफ आकर्षित हुए, और उन्हें गीता बाली से प्यार हो गया, शम्मी जी ने कई गीता बाली से अपने प्यार का इजहार किया, पर उस वक्त की मशहूर अदाकारा गीता बाली ने शम्मी कपूर के प्रस्ताव को ठुकरा दिया I गीता बाली के मना करने के बावजूद भी शम्मी जी ने हार नहीं मानी वह उन्हें अपने प्यार का एहसास दिलाते गए, 4 महीने कोशिश करने के बाद गीता बाली ने देर रात शम्मी जी के पास आकर उनसे कहा कि मुझे अभी और इसी वक्त तुमसे शादी करनी है, यह बात सुनकर शम्मी जी को शौक भी लगा, और उनके खुशी का तो कोई ठिकाना ही नहीं था I
देर रात ना कोई मंदिर खुला था और ना कोई मार्केट जो जाकर शादी की तैयारी कर सके, शम्मी जी ने गीता बाली के साथ अपने परिवार को बगैर बताएं, देर रात मालाबार हिल के बाणगंगा मंदिर पहुंचे, 4:00 बजाने का इंतजार किया, 4:00 बजे मंदिर के खुलते ही शादी की विधि शुरू की, और जब गीता बाली की मांग भरने की बारी आई तो उस मंदिर में सिंदूर मौजूद नहीं था, उस वक्त शम्मी जी ने गीता बाली की पर्स से लिपस्टिक निकालकर उनकी मांग भरी I उस दौर में शम्मी कपूर और गीता बाली का इस तरह से शादी करने पर काफी विवाद हुआ था, और हर तरफ उनके शादी के चर्चे थे, कपूर खानदान ने भी शम्मी और गीता बाली के रिश्ते को मंजूरी दे दी, और गीता बाली को अपने बहू के रूप में अपना लिया I
एक तूफान में शम्मी कपूर की जिंदगी को उजाड़ कर रख दिया…
कुछ साल बाद शम्मी कपूर और गीता बाली को दो औलादे हुई, बड़ा बेटा आदित्य राज कपूर और बेटी कंचन कपूर, किस्मत को कुछ और ही मंजूर था, गीता बाली और शम्मी कपूर का साथ सिर्फ 10 साल तक ही रहा I शम्मी कपूर की पर्सनल लाइफ और प्रोफेशनल लाइफ दोनों ही अच्छी चल रही थी, तभी शम्मी कपूर की जिंदगी में एक बड़ा सा तूफान आया, और तूफान में शम्मी कपूर की जिंदगी को उजाड़ कर रख दिया I 21 जनवरी 1965 को गीता बाली का चेचक की बीमारी से लड़ते हुए मौत हो गई, इस घटना के बाद शम्मी कपूर पूरी तरह से टूट चुके थे, गीता बाली के निधन का उन पर ऐसा असर हुआ, की ना तो वह किसी फैमिली फंक्शन में गए, और ना ही किसी फिल्म की शूटिंग की I
शम्मी कपूर अकेले खोए खोए रहते थे, परिवार वालों से शम्मी जी की ऐसी हालत देखी नहीं जाती थी, परिवार वालों ने शम्मी जी को दूसरी शादी करने के लिए कहा, क्योंकि उस वक्त शम्मी कपूर के बच्चे काफी छोटे थे, पर शम्मी जी परिवार के इस फ़ैसले को मना करते हैं I धीरे-धीरे वक्त बिता गया और शम्मी जी ने खुद को संभाल लिया, और फिर से फिल्मों का रुख किया, कुछ फिल्मों में काम करने के बाद शम्मी जी की मुलाकात फिल्म “ब्रह्मचारी” के सेट पर खूबसूरत अदाकारा मुमताज से होती है, मुमताज शम्मी जी से उम्र में लगभग 16 साल छोटी थी, मुमताज को देखते ही शम्मी कपूर का दिल उन पर आ गया, मुमताज थी इतनी खूबसूरत की किसी का भी दिल उन पर आ जाए I
शम्मी जी ने मुमताज के सामने एक ऐसी डिमांड रखी…
मुमताज भी धीरे-धीरे शम्मी कपूर की तरफ आकर्षित होने लगी, दोनों में प्यार हो गया और दोनों एक दूसरे को डेट करने लगे, उस वक्त मुमताज फिल्म इंडस्ट्री में न्यू कमर और एक स्ट्रगलर थी I 1968 में जब शम्मी कपूर ने मुमताज को शादी का प्रस्ताव भेजा, तो उसी के साथ एक ऐसी डिमांड भी उनके सामने रखी जिससे मुमताज नाराज हो गई I शम्मी जी ने मुमताज के सामने वह डिमांड रखी, जो गीता बाली के साथ कपूर खानदान के बाकी बहू ने अपनाया डिमांड यह थी कि कपूर खानदान के रिवाज के मुताबिक वो फिल्मों में काम नहीं कर सकती, उन्हें अपना करियर बीच में ही छोड़ना होगा I
शम्मी जी की यह शर्त सुनते ही नाराज मुमताज बगैर वक्त जाया करे उसी वक्त साफ शब्दों में उनसे शादी करने से मना करती हैं, क्योंकि उन्हें फिल्म इंडस्ट्री में अपना कैरियर बनाना था, और बॉलीवुड में अपना एक मुकाम बनना चाहती थी, इसलिए सेल्फिश डिमांड रिजेक्ट करती है, मुमताज के मना करने के बाद शम्मी जी फिर से एक बार अकेले हो गए I जब फिल्म इंडस्ट्री में मुमताज और शम्मी कपूर के ब्रेकअप की खबर फैली तब सब लोग बहुत हैरान हो गए थे, और कहने लगे की इस लड़की ने शम्मी जी के प्रपोजल को कैसे मना कर दिया, क्योंकि मुमताज एक मिडिल क्लास फैमिली से बिलॉन्ग करती थी, और शम्मी जी जाने माने मशहूर कपूर खानदान, और पृथ्वीराज कपूर के बेटे थे I
क्यूं नीला देवी जिंदगी में कभी माँ नहीं बनी…
कुछ वक्त के बाद मुमताज ने यह साबित कर दिया कि, उन्होंने जो शम्मी कपूर के प्रपोजल को रिजेक्ट कर के सही किया, मुमताज ने दिन रात मेहनत की और एक के बाद एक फिल्म करती गई, और फिर एक मशहूर कामयाब अदाकारा के तौर पर उभरी I इसके 1 साल बाद 1969 में अचानक यह खबर आई की शम्मी कपूर ने नीला देवी से शादी की, नीला देवी यह भावनगर के रॉयल फैमिली से बिलॉन्ग करती थी, यहां पर भी शादी से पहले शम्मी कपूर ने नीला देवी के सामने एक मांग रखी थी, कि वह कभी माँ नहीं बनेगी, शम्मी कपूर और गीता बाली के बच्चों को ही अपने बच्चे समझेंगे, नीला देवी यह शम्मी कपूर की बहुत बड़ी फैंन थी और इमोशनल में आकर उन्होंने भी इस मांग को अपना लिया, गीता बाली के बच्चों के लिए एक बड़ी कुर्बानी दे दी, और जिंदगी में कभी माँ नहीं बनी I
कुछ सालों बाद जब शम्मी कपूर के बेटे आदित्य राज कपूर बड़े हुए, तो उन्होंने एक इंटरव्यू में, अपनी दूसरी मां नीला देवी के सैक्रिफाइस के बारे में बताया, और अपने पिता की अजीबो गरीब मांग का भी जिक्र किया था I इसी के साथ एक मशहूर लेखक और सोशलिस्ट बिना रामायणी का नाम भी शम्मी कपूर के साथ जोड़ा गया था, दोनों का अफेयर होने की बात आदित्य राज कपूर ने ही एक इंटरव्यू में बताई थी, पर यह रिश्ता भी ज्यादा वक्त टीका नहीं I
शम्मी कपूर ने 1988 में कंप्यूटर के बारे में जानकारी हासिल की और उन कुछ खास लोगों में से एक हो गए, जिन्होंने भारत में इंटरनेट का इस्तेमाल करना पहले सीखा था I ये “इंटरनेट यूजर्स कम्युनिटी ऑफ़ इंडिया के फाउंडर और अध्यक्ष” भी थे I साल 2011 में किडनी की बीमारी से लड़ते हुए 14 अगस्त 2011 को बॉलीवुड का एक और महान अदाकार शम्मी कपूर इस दुनिया को अलविदा कह कर चले गए, शम्मी कपूर के अंतिम यात्रा में कपूर खानदान के अलावा बॉलीवुड के सैकड़ो दिग्गज अभिनेता शामिल रहे, और उन्हें भावपूर्ण श्रद्धांजलि दी I
शम्मी कपूर की खासियत :
ये अपने दौर में सबसे हटकर अपने अटपटी हरकतों और निराली अंदाज में फिल्मों में दिखाई देते थे, ये सारी नियमों, और अनुशासन का उल्लंघन करते हुए अपने अभिनय कला को दिखाते थे, डायरेक्टर प्रोड्यूसर हमेशा यह कहते थे की शूटिंग के दौरान उनके डांस मूव्स को कैमरे में क़ैद करने के लिए कैमरा मैन को उनके पीछे-पीछे भागना पड़ता था I शम्मी जी को फिल्मी करियर की शुरुआती दीनों में, फिल्मों में काम सीखने में इन्हें अपने पिता और बड़े भाई राज कपूर का सहारा मिला, और उसके आगे का सफर इन्होंने सिर्फ और सिर्फ अपनी काबिलियत, हुनर, अपनी मेहनत, और अपने लगन से तय किया I
करियर की शुरुआती दिनों में उनकी कई फिल्में फ्लॉप रही, कई फिल्मों में शूटिंग के दौरान इन्होंने अपने हड्डियां तक तुड़ वाली, कोई भी कठिनाई काम के प्रति उनकी लगन उनके दीवानगी को रोक नहीं पाई, बहुत सी मुश्किलो को और परिस्थितियों को पार करते हुए अपनी मंजिल तक पहुंच गए, और शम्मी कपूर ने भारतीय हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में एक ऐसा मुकाम बनाया जो लोग आज भी याद करते हैं