कैसे एक पिता अपने बेटी के मरने के बाद भी उससे बात करते थे… पापा मैंने आपके रहने की व्यवस्था कर दी है”, कल सुबह हमे निकलना है सामान समेट ते हुए रामलाल जी कि बेटी आरती ने उनसे कहा I “क्या वहां जा कर रहना जरूरी है बेटी” रामलाल जी ने बेमन से अपने बेटी से पूछा, “पापा बस छह महिने की बात है, बाद में मैं खुद आपको अपने साथ विदेश ले जाऊँगी, इतनी मुश्किल से ये मोक्का मिला है, और ये नौकरी भी किस्मत से मिली है, इसे मैं खोना नहीं चाहती, आरती अपने पापा को तसली देते हुए कहने लगी। रामलाल जी अपनी बेटी की खुशी और कामयाबी के बीच नहीं आना चाहते थे, इसलिए वृद्ध आश्रम जाने के लिए मान गए। जब आरती आठ साल की थी, तब रामलाल जी के पत्नी का निधन हुआ था, रामलाल जी का एक बड़ा बेटा भी था, लेकिन वो शादी के बाद अपने पत्नी के साथ दूसरे शहर रहने चला गया, और उसने कभी मुड कर ये जाने की कोशीश तक नही कि उसके पापा और छोटी बहन किस हाल में है।
रामलाल जी ने अपने, बेटी को पढाया लिखाया, एक काबील इंसान बनाया, और आरती भी अपने पापा का बहोत खयाल रखती थी, भाई के छोड़ जाने के बाद आरती ने शादी ना करके अपने पापा को जिन्दगी भर सम्भाल ने का फैसला करती है। रामलाल जी ने अपने माता पिता कि बहोत सेवा की थी, और उन्हें लगता था, कि आगे उनका बेटा और बहु भी उन्हका उसी तरह खयाल रखेंगे जिस तराह, उन्होंने अपने माता-पिता का रखा था I पर बद किस्मती से बेटा और बहु तो साथ नही रहे, अब ये जिम्मेदारी आरती पर थी, आरती ने ये जिम्मेदारी बहोत अच्छे से सम्भाली, जो एक बेटा कर सकता था, उसे कई ज्यादा अच्छा एक बेटी ने कर दिखाया था I काम की मजबूरी थी इस वज़ह से आरती को विदेश जाना था, और रामलाल जी भी अपनी बेटी को एक बड़े मुकाम पर देखना चाहते थे।
इसलिए वो ना चाहते हुए भी वृद्ध आश्रम में रहने के लिए तयार हो जाते हैं, फिर दूसरे दिन सुबहा आरती अपने पापा को वृद्ध आश्रम छोड़ आतीं हैं I वृद्ध आश्रम पहुंच ने के बाद पहले कुछ दिन तक सब ठिक था, आरती हर रोज फोन कर के अपने पापा का हल चाल पूछा करती I लेकिन कुछ महिने बाद आरती ने फोन करना बंद कर दिया, एक तरफ राम लाल जी अपने बेटी को हर रोज याद करते, और भगवान से उसके लिए प्राथना करते कि, भगवान मेरी बेटी विदेश में अकेली है, उसका ख़याल रखना, और उसे मेरा पास जल्दी भेज देना, उसके बगैर यहाँ पर मेरा मन नही लगता। उस आश्रम में सचिन नाम का एक आदमी था जो वहाँ आये हुए वृद्ध लोगों की सेवा करता था, और उस आश्रम कि देखभाल करना भी उसीके जिम्मे था। रामलाल जी को आरती कि बहोत याद आ रही थी, तो उन्होंने सचिन से कहा कि तुम जरा मेरी बेटी को फोन लगाओ बहोत दिन हो गए उसे बात नही हुई है।
फिर सचिन आरती को फोन लगता है, आरती कहती है कि पापा मैं थोड़ा बिझी थी, काम भी ज्यादा था, इसलिए फोन नहीं कर पाई, मैं कुछ दिनों में आ रही हूँ और आप को अपने साथ ले जाऊँगी I उस दिन से रामलाल जी हर बार आरती को खुद फोन करते हैं, और आरती हर बार यही कहती कि मैं कुछ दिनो में आ रही हूँ, आप को अपने साथ ले जाऊँगी । उस आश्रम में रहने वाले दूसरे लोगो ने बातें करना शुरू कर दिया, एक वृद्ध आदमी कहता है, की बेटा तो अपने बाप और बहन को छोड़कर कर अपने पत्नी के साथ चला गया ” और इनकी बेटी तो बेटे से ज्यादा होशियार निकली, अपने बुढ़े बाप को वृद्ध आश्रम छोड कर खुद ऐश करने विदेश चली गई I
दुसरा वृद्ध आदमी कहता है, एक बेटी कब तक अकेली अपने बुढ़े बाप को समभालेगी, उसने तो शादी भी कर ली होगी, हाँ भाई एक लड़की कब तक अकेली अपनी जीन्दगी गुजारेगी” उसको भी एक साथी कि ज़रूरत होगी। लोगो के मुँह से अपने बेटी के बारे में ऐसी बातें सुन रामलाल जी को बहोत गुस्सा आता है, लेकिन जब गुस्सा शांत हुआ तो सोचा, कि “ये भी सही है आखिर कब तक वो मुझ बुढे पर अपना वक़्त बर्बाद करेगी, उसके भी तो कोई अरमान होंगे, रामलाल जी ये सोच कर चुप हो जाते है, और अपने बेटी का इंतजार करते है।
ऐसी ही दो साल गुजर जाते है, अपनी बेटी का इंतजार करते हुए रामलाल जी अकसर बिमार रहने लगे, और इसी बिमारी के हालत मे उनका निधन हो गया, आश्रम मे रहने वाले लोग सचिन से कहते है, कि रामलाल जी का निधन हो गया है, अब तो उनके बेटे, और बेटी को बुलाओ ताकि वो अपने पिता का अंतिम दर्शन और क्रिया क्रम कर सके। ये सून सचिन रोने लगता है, कहता हैं कि “मैं इनके बेटे को तो नही जानता, उसका अता पता भी नहीं है मेरे पास, और रही बात इनके बेटी कि तो मैं उसे कैसे बुलाऊ, वो तो अपने पिता के पहले हि इस दुनिया से जा चुकी हैं। अब उसे इस दुनिया से जाकर दो साल हो गए है, वहाँ खडे सब लोगो ने हैरान होकर सचिन से पूछा, कि रामलाल जी तो हर रोज अपने बेटी से बात करते थे, फिर वो दो साल पहले कैसे मार सकती है।
सचिन कहने लगा कि ” रामलाल जी को यहां लाने से पहले आरती मुझ से मिली थी, उसने मुझे बताया कि उसे ब्रेन ट्युमर है, और वो बेन ट्युमर के लास्ट स्टेज पर है, और पहले से हि रामलाल जी अपने बेटे के वजह से परेशान थे, ये सब बता के आरती उन्हको इस बुढ़ापे में और परेशान नही करना चाहती थी। माँ के मरने के बाद रामलाल जी ने अपनी बेटी को माँ-बाप दोनों का प्यार दिया, और दिन रात मेहनत कर अपने बेटी को पढ़ाया, वो चाहते थे कि उन्हकी बेटी एक कामयाब इंसान बने। आरती एक बहोत ही काबिल और अच्छी बेटी थी, वो अपने पिता से बहुत प्यार करती थी, आरती चाहती थी कि उसके पापा अब आराम से अपनी बची हुई जिन्दगी जीये, क्योंकि रामलाल जी ने बहोत मेहनत की थी, और आरती अपने पापा की इस मेहनत को उचाइयों पर ले जाना चाहती थी।
पर जिन्दगी का सफर उसका यही तक का था, डॉ ने कहा था कि ब्रेन ट्युमर के लास्ट स्टेज पर बचने के चान्सेस बहोत कम होते है, और अगर बच भी जाये तो तुम अपनी यादाश्त खो सकती हो, और जब रामलाल जी अपनी बेटी को इस हालात मे देखेगे तो उन्हें बहोत तकलीफ होगी, और वो बर्दाश्त नही कर पायेगे, इस वजह से आरती अपने पिता को और परेशान नही करना चाहती थी I वो नही चाहती थी, की जिन्दगी के इस मोड पर आकर रामलाल जी फिर से अपने बच्ची के लिए दरबदर भटके, इसलिए आरती अपने पिता को वृद्ध आश्रम छोड गईं ,और आरती ने अपने पिता का घर, खेत, जमिन सब कुछ इस आश्रम को दे दिया, आरती ने मुझे से वादा लिया था, कि मैं उसकी इस बीमारी और मौत के बारे मे रामलाल जी को ना बताऊ I
आरती के सर्जरी से पहले मैं उसे मिलने गया था, उसने मुझे अपना मोबाइल दिया, जिसमे आरती ने अपनी कुछ बातें रिकॉर्डर कि थी, वो बात ये थी कि मैं कुछ दिनो में वापस आ रही हु, आप को अपने साथ ले जाने” पापा मै थोडा बिझी थी, काम बहोत ज्यादा था, इसलिए फोन नही कर पाई। आरती ने मुझसे कहा था, अगर मेरा फोन नही आयेगा तो, पापा बहोत परेशान होगे, और आपको कहेगे मुझे फोन करने के लिए, तब आप मेरे फोन पर फोन लगाकर ये रिकॉर्डिग उन्हें सुनाना, तकी वो परेशान ना हो I उन्हें ऐसा लगे कि मैं विदेश में सही सलामत हूँ, और साथ ही उन्हें ये उम्मीद भी रहेगी की उन्हकी बेटी एक दिन आयेगी और उन्हें अपने साथ विदेश ले जायेगी।
मैं जानती हू कि वो दिन कभी नही आयेगा, बस मैं अपने पापा को खुश दिखना चाहती हूँ, पापा मेरी खुशी के लिए अपना सब कुछ छोड़ कर वृद्ध आश्रम में रहने आ गये, मेरे पापा का खयाल रखना, उन्हें हमेशा खुश रखना, और उन्हें किसी भी चीज़ की जरूरत होगी तो ला देना, मेरी आपसे बस यही गुजारीश है। यूं इतना कह कर वो बेचारी सर्जरी के लिए चली गई, और उसके बाद वो वहाँ से लौट कर नही आई, और अब रामलाल जी भी इस दुनिया से चले गये। ये कहते हुए सचिन बहोत रोने लगा, और ये सुन कर वहाँ मौजूद हर शख्स रोने लगा, क्युकि उन्होंने आरती के बारे मे बहोत गलत सोच रखी थी, और वो अपने सोच पर शर्मिंदा थे।
अपने पिता के लिए एक बेटी इस हद तक जा सकती है, ये कोई सपने मे भी सोच नही सकता, ये घटना सुन कर अपने पिता के प्रति एक बेटी का प्यार देख कर, बहोत से बेटो ने आरती से सीख ली और अपने वृद्ध माता-पिता को आश्रम से अपने घर वापस ले गए ।