आइये जानते हैं किस तरह से दो विधवा सहेलियों ने अपने बहू और बेटों को अच्छा सबक सिखाया, ये बुढ़िया तुम अपनी फटी पुरानी साड़ी मेरे बाथरूम में मत धोना बाहर आंगन में जाकर धोना ठंडी का मौसम था हाथ पैर कांप रहे थे, ऐसी हालत में भी हीराबाई को अपने कपड़े धोना था I बाहर बहुत ठंडी थी इसलिए हीराबाई अपनी साड़ी घर के अंदर बाथरूम में धो रही थी, की इतने में उनकी बहू आई और कहने लगी कि यहां पर कपड़े मत धोना हीराबाई अपने कपड़े उठाकर धीरे-धीरे बाहर आंगन की तरफ निकली और मन ही मन कहने लगी कि भगवान ऐसे नालायक बहू किसी को ना दे यह मुझे कभी भी सुकून से जीने नहीं देगी I यह तो कभी मेरे कपड़े धोती नहीं है मुझे अपने कपड़े खुद धोना पड़ता है ऐसी नालायक बहू तो मैंने अपनी जिंदगी में कहीं नहीं देखी ऐसा कहते हुए हीराबाई आंगन में अपने कपड़े धोने लगी पानी बहुत ठंडा था इस वजह से उन्हें और ज्यादा ठंड लगने लगी I
ससुर के निधन के बाद बहू ने अपना…
जैसे तैसे कपड़े धो कर घर में आकर कंबल लपेटकर बैठ गई जब उन्हें कंबल में गर्माहट महसूस होने लगी, फिर से अपनी बहू को मन ही मन कोसने लगी मेरे ही नसीब में बैठी थी, ऐसी नालायक बहू जो हर रोज मेरे पीछे हाथ धोकर पड़ जाती है I मेरे ही घर में आकर मुझे ही रुबाब दिखा रही है, पता नहीं भगवान भी किस जन्म का बदला ले रहा है मुझसे, एक दिन ऐसा सबक सिखाओगी कि जिंदगी भर याद रखेगी I हीरा बाई के पति सुरेश जी का 1 साल पहले ही निधन हुआ था उन्हें एक बेटा था अतुल और उसकी शादी हो चुकी थी I पति थे तब तक सब ठीक चल रहा था ससुर के निधन के बाद बहू ने अपना असली रंग दिखाना शुरू किया, हमेशा मुझे परेशान करती रहती अतुल भी उसे कुछ नहीं कहता इसी वजह से उसकी हिम्मत बढ़ रही थी और वह सर पर चढ़कर नाचने लगी I हीराबाई के पड़ोस में रहने वाली सुमित्रा देवी की भी हालत ऐसी ही थी हीराबाई और सुमित्रा देवी दोनों ही बचपन की सहेलियां थी और सुरेश जी और मोहन जी यह दोनों भी बचपन के दोस्त थे हीराबाई की शादी में मोहन जी के परिवार वालों ने सुमित्रा देवी को अपने बेटे के लिए पसंद किया था, और वही शादी की तारीख भी पक्की कर दी थी दोनों बचपन की सहेलियां अब शादी कर के पड़ोसी बन गए थे I
मोहन जी का निधन हुए 2 साल हो चुके थे, सुमित्रा देवी की बहू भी उन्हें ऐसा ही परेशान किया करती थी I सुमित्रा देवी को सिर्फ दो लड़के ही थे और दोनों की शादी हो चुकी थी और उन्हें बच्चे भी थे सुमित्रा देवी की बड़ी बहू उनसे घर का सारा काम करवाती कपड़े धोना बर्तन धोना झाड़ू मारना और बाकी का काम भी करवाती I सुमित्रा देवी स्वभाव से एकदम शांत और गरीब थी शांत और गरीब तो हीराबाई भी थी लेकिन वह कभी-कभी अपने बहू के बातों का मुंह तो जवाब भी देती, पर सुमित्रा देवी चुपचाप अपने बहू के जुल्म ताने बर्दाश्त करती सुमित्रा देवी की बहू कहती यह क्या तुम्हें तो सही से झाड़ू मारना भी नहीं आ रहा इतना खाती हो फिर भी तुम्हारे आग में जान नहीं है क्या कहां रखती हो खाया हुआ सब फटाफट हाथ चलाना घर में और भी काम हैं करने के वह क्या तुम्हारी मां आ के करने वाली है, बहू तुम मेरी मां को क्यों बीच में ला रहे हो वह तो इस दुनिया में नहीं है I
ये बुढ़िया मुझसे बहस मत कर काम पर ध्यान दो ठंडी के मौसम में कांपते हुए सुमित्रा देवी घर के काम करने लगी ठंडी के कारण उनके हाथ पैर कांप रहे थे बर्तन धोते वक्त उनके हाथ से कांच की कटोरी फिसल कर टूट गई I कटोरी का आवाज सुन बड़ी बहू भागते हुए आई और फिर से उल्टा सीधा बोलने लगी और उसके साथ छोटी बहू भी बातें सुनाने लगी कहने लगी एक काम भी सही से नहीं आता तुम किसी काम के नहीं हो दोनों बहू की बातें सुमित्रा देवी के दिल पर लग गई और उनकी आंखों से आंसू आने लगे सुमित्रा देवी कि दोनों बहूए एक से एक बढ़कर बदतमीज और बिगड़ैल थी अपनी सास को परेशान करने का एक भी मौका नहीं छोड़ती I
उसकी पत्नी मुझे इतनी तकलीफ देती है…
अगर कभी सुमित्रा देवी और हीराबाई बात करते दिखाई दे, तो इनकी बहूए उन्हें देख बहुत चढ़ती थी, और उन्हें कभी आपस में बात करने नहीं देती, इनकी बेटे तो बीवियों के गुलाम हो गए थे उनके सामने ही उनकी पत्नियां उनकी मां पर हुकुम चलाती है उन्हें परेशान करती है यह देख कर भी बेटे अपने पत्नियों से कुछ कहते नहीं उल्टा अपने बूढ़ी मां पर चिल्लाते मां तुम्हें जरा भी अक्ल नहीं है तुम्हें देख कर काम करना चाहिए था ना I एक दिन सुमित्रा देवी और हीराबाई कपड़े सुखाने के बहाने छत पर जाती है, हीराबाई कहती हैं कि कल तुम मुझे 8:00 बजे अपने गली के कोने पर मिलना हम कल साथ में सब्जी लाने जाएंगे I दूसरे दिन सुबह घर से बाहर जाते हुए दोनों आपस में बात करते हुए निकली क्या बताऊं सुमित्रा मेरी बहू ने तो मेरा जीना मुश्किल कर दिया है अतुल भी उससे कुछ कहता नहीं, पत्नी के प्यार में अंधा गुंगा बेहरा हो गया है I उसकी पत्नी मुझे इतनी तकलीफ देती है मुझे इतना परेशान करती है पर भी उसे कुछ दिखाई नहीं देता, हमेशा अपनी पत्नी की बाजू लेता रहता है उसी का साथ देता है, अपनी बहू पर गुस्सा निकालते हुए हीराबाई ने कहा I मेरे घर में तो दो बहूए हैं, और दोनों ही एक दूसरे से ज्यादा बदतमीज हैं, हमेशा मेरे किए हुए हर काम में गलतियां निकालती है, कि तुमने यह काम सही से नहीं किया वह काम सही से नहीं किया I
खुद तो कभी घर का काम करती नहीं है, और मेरे किए हुए काम में गलतियां निकालती है घर का सारा काम हम करें और यह मजे से बैठकर सिर्फ खाने का काम करती है I इतना काम करने के बावजूद भी खाने को भी सही से नहीं मिलता बासी रोटी और अचार देती है I अगर हम लोग यही काम दूसरों के घर में करेंगे तो हमें अच्छे खासे पैसे मिलेंगे हमें कुछ ना कुछ तो करना पड़ेगा, वरना यह हमारे बहुएं हमें दो दिन में ही मार देगी I इस तरह से सुमित्रा देवी हीराबाई से कहने लगी फिर हीराबाई ने कहा अपने पास जो कुछ भी थोड़ा बहुत जमा किए हुई रकम है वह लेकर हम लोग यहां से कहीं दूर चले जाएंगे, भगवान है ना हमारे साथ इतनी बड़ी दुनिया में कहीं ना कहीं सहारा तो मिल ही जाएगा हमें I इनके साथ रहने से अच्छा है कि हम कहीं चले जाएं हीराबाई की इस योजना पर सुमित्रा देवी अपनी कर हामी भर्ती हैं और सब्जी लेकर अपने अपने घर वापस चले आते हैं I घर आकर अपने काम करने लगते हैं काम करते करते रात हो गई, रात के अंधेरे में अपने पास जो कुछ जमा पूंजी थी और जो जरूरत का सामान था वह एक थैली में भर के सोते हैं I
दूसरे दिन सुबह सब्जी लाने के लिए पैसे लेकर अपने बहू का कमरे में जाने का इंतजार कर रही थी, और जैसे ही बहू अपने कमरे में चली गई, वैसे ही अपनी थैली उठाकर घर के बाहर निकाल पड़ी I दोनों सहेलियां घर से थोड़ा दूर आकर एक दूसरे से गले मिलती है, दोनों ही बहुत खुश होती है सुमित्रा देवी कहती हैं कि आज के सब्जी के पैसे भी हम लोग लेकर आए, इन्हें तो आज सब्जी भी नसीब नहीं होगी हर रोज हम लोग ही सब्जी लाकर इन्हें बनाकर देते थे I हीराबाई कहती है जाने दो क्यों उनकी फिक्र करना वह लोग खाना खाए या भूखे बैठे उससे हमें क्या, अब हम हमारी जिंदगी सुकून से और आराम से गुजारेंगे I ऐसा कहते हुए दोनों सहेलियां पैदल निकली चलते चलते दोनों दूसरे शहर में पहुंचे और चलते चलते रास्ते में एक गाड़ी के सामने आते हैं I अचानक गाड़ी को ब्रेक लगता है डर के मारे दोनों सहेलियां वहीं जमीन पर बैठ गई उस गाड़ी से एक लड़का और एक लड़की उतरते हैं, और हीराबाई और सुमित्रा देवी के नजदीक आकर उन्हें पूछते हैं, कि आपको कहीं लगा तो नहीं वह कहती है नहीं लगा हम ठीक हैं I
हम कौन होते हैं बेटा तुम्हें परिवार देने वाले
लड़की कहती है कि मां जी आपको कहां जाना है बताइए हम लोग आप को छोड़ते हैं वहां पर, हीराबाई कहती है हम बेघर है हमारा इस जहां में कोई नहीं है, तो लड़की कहती है आप ऐसे क्यों कह रही है मा जी हम हैं ना आप हमारे साथ चलिए वह लड़की उन्हें हाथ पकड़ कर उनके गाड़ी में बिठाती है, और अपने साथ उन्हें अपने घर ले आती हैं I उनसे अपनी पहचान करवाते है लड़का कहता है मेरा नाम ऋषि है और यह मेरी पत्नी तनुजा हम दोनों ही ऑफिस में जॉब करते हैं और यह हमारा छोटा सा घर है, और आज से आप दोनों यही रहेगी हमारे साथ I इस घर में सिर्फ हम दोनों ही रहते हैं क्योंकि हमारा भी आपकी तरह इस दुनिया में कोई नहीं है हम अनाथ है हीराबाई कहती है दिल छोटा मत करो बेटा हम हैं ना तुम्हारे साथ आज से हम तुम्हारा ख्याल रखेंगे I
तनुजा कहती हैं कि आपका ऐसा कहना ही हमारे लिए बहुत ही सौभाग्य की बात है, अपनी पत्नी का साथ देते हुए ऋषि कहता है कि मां जी आपने ऐसा कह कर हम अनाथ को परिवार दे दिया हीराबाई कहती है हम कौन होते हैं बेटा तुम्हें परिवार देने वाले वह तो भगवान है जिसने हमें तुमसे मिलाया, और सौभाग्य की बात तो हमारे लिए है जिसका इस जहां में कोई नहीं उसे तुम जैसे बेटा और बेटी दे दिए I अच्छा मां जी अपना ख्याल रखिए अगर किसी चीज की जरूरत होगी तो हमें बताना अब हम ऑफिस के लिए निकलते हैं हमें देर हो रही है, ऐसा कहे कर ऋषि और तनुजा ऑफिस के लिए निकलते है I सुमित्रा देवी कहती है कितनी अच्छे है ना यह दोनों, अपने घर में भी थे ना हमारे नालायक बेटे और उनकी पत्नियां जिन्हें हमारी जरा भी परवाह नहीं थी I इन्हें तो हम लोग पहचानते भी नहीं फिर भी इन्होंने हमें अपने घर ले आए और हमें अपने घर में सहारा दिया, भगवान ने इन्हें हमारे लिए ही भेजा होगा हीराबाई हंसते हुए कहती है दुनिया में अच्छे लोग भी रहते हैं, दुनिया में हर कोई अपने बेटे और बहू की तरह नहीं होते I
दोनों बातें करते हुए थैलियां कोने में रखकर घर के काम में लग जाती है, क्योंकि ऋषि और तनुजा सुबह 7:00 बजे ऑफिस जाकर शाम को 7:00 बजे घर आते हैं I तनुजा आने के बाद भी ऑफिस के काम में लग जाती है, इस वजह से उसे घर का काम करने टाइम नहीं मिलता वह दोनों तो ज्यादातर करके खाना भी होटल का ही खाते थे I हीराबाई और सुमित्रा देवी दोनों मिलकर घर का नक्शा ही बदलते हैं, घर में जो कुछ थोड़ा बहुत सामान था वह लेकर वेज पुलाव और कांदा भजी बनाते हैं I शाम को जब ऋषि और तनुजा घर आते हैं तो घर देखकर ऐसा कहते हैं कि किसी और के घर में आए हैं क्या, हीराबाई ने कहा नहीं बेटा यह तुम्हारा ही घर है I ऋषि और तनुजा घर में सब तरफ हैरानी से देखने लगते हैं, इतने में पीछे से सुमित्रा देवी ने आवाज लगाकर कहा कि, जल्दी से हाथ पैर धो लो मैं खाना निकालती हूं ऋषि और तनुजा एक दूसरे को देखते ही रहते हैं I
मुझे अपने मां के हाथ के खान की बहुत याद आती…
तनुजा कहती है आज पहली बार ऑफिस से घर आकर इतनी खुशी हुई है कि मैं क्या बताऊं, लेकिन मां जी आपको यह सब करने की क्या जरूरत थी, आपको यह सब नहीं करना चाहिए था, मैं खाना भी बाहर से मंगवा देती I फिर हीराबाई कहने लगी हमें तो आदत है घर का काम करने की, तुम यह सब रहने दो और यह बताओ कि तुम्हारा ऑफिस मैं आज का दिन कैसा रहा I आज का दिन तो ठीक था पर थोड़ा काम का लोड ज्यादा है, कोई बात नहीं खाना खाकर आराम करना दिन भर की थकान दूर हो जाएगी I सब लोग खाना खाने बैठ जाते हैं ऋषि कहता है कि मैं हमेशा से सोचता था, कि मैं अपने मां के हाथ का बना हुआ खाना कभी नहीं खा पाउंगा और मुझे अपने मां के हाथ के खान की बहुत याद आती, पर मै अपने आपको यह कहकर तसल्ली देता था, कि वह तो मेरे नसीब में ही नहीं है, लेकिन देखिए आज आपने मेरी यह इच्छा भी पूरी कर दी, सच में मां जी खाना बहुत स्वादिष्ट बना है I
खाना खाते हुए ऋषि बहुत भावुक हो गया कि तभी सुमित्रा देवी और हीराबाई उठ कर ऋषि को गले से लगाया, और कहा कि हम हैं ना यह तुम्हारी मां आज से तुम्हारे लिए हर रोज खाना बनाएंगे, और तुम्हें अपने हाथ से खाना खिलाएगी I तुम हर रोज अपनी मां के हाथ का बना हुआ खाना खाओगे, सब लोग खाना खाकर देर रात तक बातें कर सो गए I दूसरे दिन सुबह सवेरे जल्दी उठकर हीराबाई और सुमित्रा देवी ऋषि और तनुजा के लिए चाय नाश्ता और उनके लिए टिफिन भी बनाती है I ऋषि और तनुजा नाश्ता करके ऑफिस चले जाते हैं फिर दोनों सहेलियां घर के काम में लग जाती है, ऐसे ही दिन गुजरते गए एक दिन हीराबाई ने ऋषि और तनुजा से कहा कि हमें भी कुछ काम करना है, घर का काम जल्दी खत्म हो जाता है और दिन भर घर में खाली बैठकर हम बोर हो जाते हैं I
कुछ काम धंधा करके दो पैसे कमाने में क्या हर्ज है…
ऋषि कहता हैं आपको क्या जरूरत है काम करने की, हम हैं ना अगर आपको किसी चीज की जरूरत होगी तो मुझसे कहना मैं ला दूंगा, आप दोनों सिर्फ आराम करना यह क्या आपकी उम्र है काम करने की I हीराबाई कहती है हम तुम पर बोझ नहीं बनना चाहते, इस बात पर तनुजा कहती है क्या मां जी आपने हमें अपना नहीं समझा क्या हम तो आपको कब का अपना मान चुके हैं, और अपने लोग कभी बोझ नहीं बनते अपनों पर I यह सुन दोनों वृद्ध सहेलियों के आंख से आंसू आ गए रोते हुए कहते हैं, कि नहीं बच्चों ऐसी कोई बात नहीं है तुम्हारे सिवा अब है ही कौन हमारा I अगर उस दिन तुम लोग ना मिले होते तो पता नहीं आज हम किस हालत में होते, मैं तो बस इसलिए कह रही हूं की हम लोग दिन भर घर में खाली बैठ कर बोर होते हैं, घर का काम भी जल्दी हो जाता है घर में खाली बैठने से अच्छा है की कुछ काम धंधा करके दो पैसे कमाने में क्या हर्ज है I
ऋषि और तनुजा उन्हें साफ साफ मना कर देते हैं, लेकिन हीराबाई और सुमित्रा देवी उनकी बात मानने को तैयार नहीं थे, वह लोग बहुत जिद करते हैं तब जाकर ऋषि और तनुजा मान जाते हैं I फिर दूसरे दिन ऋषि बाहर जाकर आस-पड़ोस में पूछताछ करता है हीराबाई और सुमित्रा देवी अपने पास की जमा पूंजी और गहने ऋषि को देते हैं, और कहते हैं कि यह कुछ पैसे हैं और गहने इन्हें हमारे काम में लगाना ऋषि कहता है इसकी जरूरत नहीं है, आप यह अपने पास ही रखिए I 8 दिन के अंदर ही ऋषि अपने घर के नजदीक के मार्केट में एक छोटा सा स्टॉल लगा कर देता है, उसमें हीराबाई और सुमित्रा देवी अपने काम की शुरुआत करती है I वह दोनों पूरी भाजी और कांदा भजी बेचना शुरू करती है, उन्हें बूढ़ी देख कर पहले कुछ दिन उनके होटल में एक भी ग्राहक नहीं आता था, फिर कुछ महीनों बाद उनके होटल में ग्राहकों की भीड़ लगाना शुरू हुई, और धीरे-धीरे उनके काम में तरक्की होने लगी, और बड़े-बड़े पार्टियों का ऑर्डर आना भी शुरू हुआ I
जरूर तुम्हारी सास ने हमारे सास को भड़का कर…
उन पार्टियों का काम करना दो लोगो के लिए बहुत मुश्किल हो रहा था, इसलिए हाथ में काम करने के लिए कामगार भी रख लिए I एक साल के अंदर ही उनका कैटरिंग का बिजनेस आसमान छूने लगा I लेकिन एक तरफ हीराबाई और सुमित्रा देवी के घर में उनका यूं अचानक घर छोड़ जाने की वजह से बहुत झगड़े होने लगे थे, क्योंकि ज्यादातर तो घर के सभी काम दोनों सांस ही करती थी, लेकिन अब उनके जाने के बाद घर में सब लोग आपस में बहस करने लगे सुमित्रा देवी की दोनों बहुएं हीराबाई के बहू पर इल्जाम लगाने लगी I हमारी सास बहुत शांत और गरीब थी जरूर तुम्हारी सास ने हमारे सास को भड़का कर यहां से लेकर गई होंगी I अब दोनों पड़ोसी एक दूसरे के दुश्मन बन गए थे, और इधर हीराबाई और सुमित्रा देवी अपना काम संभालते हुए अपनी जिंदगी खुशी से और सुकून से जी रही थी I
ऋषि और तनुजा को भी उन दोनों को खुश देख कर बहुत अच्छा लगता, वह दोनों उनके लिए बहुत खुश थे I दो ढाई साल के अंदर ही इतने कामयाब हुई थी कि उन्होंने अपना खुद का घर लिया था, वह दोनों सहेलियां इस कारण हर तरफ चर्चा का विषय बनी हुई थी I उनके बारे में न्यूज़ चैनल पर और अखबारों में भी उनकी तस्वीरें और उनकी प्रशंसा होने लगी, सुमित्रा देवी के घर उनकी छोटी बहू अचानक अपने सास का फोटो अखबार में देखकर हैरान हो गई उसे अपनी आंखों पर यकीन नहीं आ रहा था, वह भागते भागते बड़ी जेठानी के पास आई और उससे कहने लगी कि यह देखिए यह अपनी सासू मां ही है ना, जेठानी कहने लगी यह तो अपनी सास ही है, और उनके साथ उनकी सहेली भी है I
आश्चर्य से कहने लगे कि मां जी ने तो हम से कहा था कि उनका…
फिर दोनों दौड़ते दौड़ते हीराबाई के घर आते हैं और उनकी बहू को टीवी चालू करने के लिए कहते हैं, टीवी चालू होते ही न्यूज़ चैनल पर अपनी सास को देखकर हीराबाई की बहू को चक्कर ही आ गया, क्योंकि उसे भी यकीन नहीं हो रहा था कि उसके सास के बारे में टीवी पर दिखाया जा रहा है I जब होश में आए तो खुशी के मारे नाचने लगी, जैसे ही शाम को पति घर आए तीनों ने अपने अपने पतियों को सब बताया सब लोग मिलकर अपनी मां से मिलने जाने का फैसला करते हैं I दूसरे दिन हीराबाई के बहु बेटा और सुमित्रा देवी के दोनों बहुएं और बेटे सब मिलकर अपनी मां से मिलने आते हैं, बाहर से ही घर इतना आकर्षित और खूबसूरत दिख रहा था, कि सबकी आंखें चार हो गई थी I
घर के बाहर गेट पर वॉचमैन बैठा था उसने उन सब को वही रोक कर पूछने लगा कि किससे मिलना है, हीराबाई का बेटा कहने लगा हम तुम्हारे जो मैडम है ना उनके बच्चे हैं, और हम अपने मां से मिलने आए हैं I उसी वक्त ऋषि और तनुजा बाहर कहीं से आ रहे थे, इन सब को देख आश्चर्य से कहने लगे कि मां जी ने तो हम से कहा था कि उनका इस दुनिया में कोई नहीं है, वह बेघर है इसलिए उन्होंने हमें अपने बच्चे माना था, अब तक उनका कोई नहीं था, अब अचानक ए कैसे और कहां से आ गए I घर में जाकर ऋषि और तनुजा सुमित्रा देवी और हीराबाई को बताते हैं, कि बाहर कुछ लोग आए हैं और वह खुद को आपके बच्चे कह रहे हैं I यह सुन दोनों सहेलियां बाहर आती हैं और उनके पीछे-पीछे ऋषि और तनुजा भी आते हैं, सब लोग अपनी मां को देख बहुत खुश होते हैं, और वॉचमैन से कहते हैं अब देखना कैसे हमारी मां हमें प्यार से अपने गले लगा लेती है I
सुमित्रा देवी और हीराबाई का अपने बच्चों पर जो गुस्सा था वह अब तक शांत नहीं हुआ था, उन्हें देखते ही उनका गुस्सा और बढ़ जाता है, और कहने लगी यह देखो आ गए हमारे नालायक बेटे और उनके नालायक पत्नियां, आओ हमें भी इसी दिन का इंतजार था I कहो तुम्हें क्या कहना है सब लोग एक ही आवाज में कहने लगते हैं की मां हमें माफ कर और अपने कदमों में हमें सहारा दो, हीराबाई और सुमित्रा देवी ऋषि और तनुजा को अपने नजदीक लेकर उनके सर पर हाथ रखकर कहती है, कि अब हम तुम्हारी मां नहीं है अब हम इनकी मां है इन्होंने हमें कभी भी कोई तकलीफ या कोई परेशानी होने नहीं दी I हमारा बहुत खयाल रखा हमारी हर जरूरत का ख्याल रखा, और आज हम जो कुछ भी है वह भी इन्हीं के बदौलत से हैं, अगर यह लोग ना होते तो पता नहीं हमारा क्या होता I इन्होंने हमें अपने घर लाकर हमें अपने घर में सहारा दिया ,इसलिए आज हम इस मुकाम तक पहुंचे हैं I
जैसा बर्ताव तुमने हमारे साथ किया है…
यह सुन बहुएं कहती है कि मां जी माफ कर दो हमने आपके साथ बहुत गलत व्यवहार किया हमें नासमझ समझ कर माफ कर दीजिए, हम वादा करते हैं कि आज से हम कभी भी आपके साथ बदतमीजी नहीं करेंगे Iआपको कोई भी परेशानी या तकलीफ नहीं होने देंगे, हम भी यहां आपको सहारा देने आए है तब हीराबाई ने कहा मुझे अच्छे से पता है कि तुम लोग यहां क्यों आए हो, और हमें तुम्हारे सहारे की कोई जरूरत नहीं है I तुम सब यहां हमें सहारा देने नहीं बल्कि अपना आसरा बनाने के लिए आए हो, हमें कोई जरूरत नहीं है तुम्हारे जैसी नालायक बेटों की, हम बहुत खुश हैं अपनी जिंदगी में अपने बच्चों के साथ I फिर सुमित्रा देवी ने कहा कि वॉचमैन इन सब को यहां से बाहर निकाल दो, जब हम लोग तुम्हारे साथ थे तब तो तुम्हें हमारी कोई परवाह नहीं थी, अब हम दो चार पैसे क्या कमाने लगे तुम दौड़ते हुए हमारे पास आए पहले तो हमसे ठीक से बात भी नहीं करते थे, अब अचानक इतनी परवाह क्यों होने लगी I
जैसा बर्ताव तुमने हमारे साथ किया है, वह मैं कभी भूल नहीं सकती छोटी बहू के ताने बड़ी बहू का जुल्म, और उनके साथ मिलकर तुम भी हमें ही बुरा भला कहते थे I बेटा बहू बहुत गिड़गिड़ाते हुए माफी मांगते हैं, लेकिन जैसा बर्ताव उन्होंने अपनी मां के साथ किया था, अब तक सुमित्रा देवी वह भूल नहीं पाई थी I हीराबाई ने वॉचमैन से कहां कि अगर यह लोग दोबारा यहां दिखे तो पुलिस में खबर कर देना, वॉचमैन भी हंसते हुए कहने लगा क्या हुआ मां ने गले से नहीं लगा लिया, लगाती भी कैसे जिनकी तुम जैसे नालायक बेटे हो जिन्होंने अपनी मां को इस उम्र में इतना परेशान किया है, वह मां तुम्हें कैसे गले से लगाएगी चलो अब निकलो यहां से I सब लोग मां हमें माफ कर दो कह कर चिल्ला रहे थे पर दोनों सहेलियों ने उनकी एक न सुनी ऋषि और तनुजा के साथ घर में चले गए, वॉचमैन ने उन्हें बाहर निकालकर गेट बंद कर दिया, फिर तीनों बेटे और उनकी पत्नी एक दूसरे पर इल्जाम लगाते हुए निराश होकर वहां से चले गए I
दोस्तों हमें इस कहानी से यह सबक सीखना चाहिए, कि हमें कभी भी अपनी मां को हल्के में नहीं लेना चाहिए, क्योंकि जब वह अपने पर आती है तब इंसान की नींव बदल कर रखती है I उन्हें बूढ़ा समझकर हल्के में नहीं लेना चाहिए, क्योंकि बूढ़े लोगों को हमसे ज्यादा संसार का अनुभव रहता है I