वो औरत जो बाँझ कहलाती थी, लेकिन चौधा साल की उम्र खेलने कूदने…

चौधा साल की उम्र खेलने कूदने की उम्र होतीं हैं, तब रिश्ता हो गया I उस समय में सभी की लड़कियां बारा तेरा साल में ही व्याह दी जाती थीं, शादी का मतलब भी पता नहीं होता था I बस ये सोच कर खुश हो जाते थें, की नये नये कपडे मिलेंगे, मिठाइयां खाने को मिलेगी I माँ थी नहीं पिता जी ने बस जो थोड़ा सा घर का काम काज सिखाया वहीँ आता था, शादी का दिन आया और बस सारी रस्मों के बाद विदाई का वक़्त भी आ गया, रोते रोते डोली में बैठ ससुराल पहुँच गई I आलिशान हवेली देख कर मन ही मन बहुत खुश हुईं, तभी सासू माँ की आवाज आई”अरे जल्दी से कलश लाओ बहू आ गई हैं “, और मैंने घूंघट की आड से अपनी सास को देखा I आँखों से एकदम सख्त मिजाज़ की लग रहीं थीं I 

       सच मानो तो मैं थोड़ा डर गईं थीं उन्हें देख कर ,सारे रस्मे ख़त्म होते होते रात हो गईं, और बिस्तर पर लेटते ही आंख लग गई I सुबह सुबह नौकरानी ने आ कर जगाया, कहा कि चलो पहली रसोई बनाने की रस्म है, तयार हो कर रसोई में गईं ,और सब के लिए खीर बनाईं सब ने तारीफ़ भी की लेकिन सासू माँ ने कमी निकल दी और साथ ही साथ हिदायत भी दे दी, कि अब बचपन छोड़ कर कुछ काम काज सिख लो I पंद्रह दिन बाद मेरे पति को हॉस्टल जाना था, क्योंकि तब वो B.A. कर रहें थे, खैर समीर भी चले गए और मैं अकेली रह गई अपने सास और ससुर के साथ, समीर चिट्ठी लिखते थे, पर पहले सासू माँ के पास चिट्टी आतीं और बाद में मेरे पास चिट्ठी आतीं थी I 

हवेली वाले उस पेड़ को बाँझ कहते…

उम्र काम होने के वज़ह से इतना फर्क नहीं पडता था, मेरे अकेले पन का साथी था बदाम का पेड़, हाँ वही बदाम का पेड़ जो हवेली के पीछे के आँगन में लगा था, उस बदाम के पेड़ के नीचे एक कच्ची मिट्टी का कमरा भी बना हुआ था, पर वो पेड़ फल नहीं देता था इसलिए सारे हवेली वाले उस पेड़ को बाँझ कहते थे, पर मुझे न जाने क्यों उस पेड़ से बहुत लगाव था ” जब काम से फारिग होकर कुछ फुर्सत के पल मिलते, तो एक वही पेड़ मेरा साथी होता था, उसको देखते ही मैं अपनी सारी थकान भूल जाती थीं, ‍ देखते ही देखते दो साल बीत गये और मै सोलह साल की हो गई I  

     आज समीर वापस आ रहे थे, सासू माँ सुबह से तयारी में लगीं हुईं थीं, खुद ही रसोई में जाकर सारा काम देख रही थी, मैं भी बहुत खुश थी कि अब से मुझे अकेले नहीं रहना पड़ेगा, सोलह श्रंगार कर के मैं तयार हो गई थीं..आज मांग के सिंदूर में भी कुछ अलग ही चमक थी और वो चमक मेरे चेहरे पर दिखाई दे रहीं थीं I ये देख मेरे सास ने मुझ से कहा कि जा पहले अपनी नजर उतरले I समीर आ गये हैं हवेली की हलचल से पता चल गया था मुझे, खाने पीने से फारिग होकर सब आराम करने चले गए, समीर भी कमरे में आ गए थे, और मैं बस शर्म से लाल हुई जा रहीं थीं I तभी समीर ने मुझे तोहफा दिया बहुत ही खूबसूरत हीरो का हार.. पर मेरे लिए तो समीर का वापस आना ही सबसे बड़ा तोहफा था, हमने बहुत सारी बातें की जिनमे कुछ शिकायतें थीं कुछ प्यार था I

अपनी साँसों को रोका हुआ था…

दो साल कैसे बीत गए पता ही नहीं चला समीर और मैं एक दूसरे के साथ बहुत खुश थे, एक दिन अचानक पता चला कि मेरे पिता जी बहुत बीमार हैं I समीर मुझे लेकर तुरन्त रवाना हो गए, पिता जी मुझे देख कर बहुत खुश हुए जैसे मेरे लिए ही अपनी साँसों को रोका हुआ था, और फिर मुझे समीर के हवाले कर के वो इस दुनिया से चले गए I भीगी आँखों से अपने पिता जी को वादा किया, अब मेरा सब कुछ समीर और उसका परिवार ही था, समय गुज़रता गया और समीर ने अपनी लो कि पढ़ाई भी पूरी कर ली और अब वो सरकारी वकील कहलाने लगे थे I पर भगवान ने मुझे अभी तक बच्चों का सुख नहीं दिया था, पहले तो सासू माँ दबी जुबान में बोलती थीं, पर धीरे-धीरे उन्होंने अपना रुख बदल लिया I 

    समीर बहुत व्यस्त रहते थे अपने काम में तो वो मेरे पीछे सारा दिन पडी रहतीं थी I धीरे धीरे सारे गांव में बात फैल गई, की हवेली की बहू बाँझ हैं..तीर की तरह चुभता था ये शब्द पर कुछ कह नहीं पाती थी, सिर्फ आसुओं से दिल हल्का करती थीं, समीर मुझे तसली देते थे पर लोगों का व्यवहार अंदर ही अंदर मुझे खोखला कर रहा था I अभी मेरी उम्र ही क्या थी सिर्फ बीस साल और लोगो ने मुझे बाँझ बना दिया, बचपन से ही मैं दुबली पतली थीं I फिर माँ के मरने के बाद ठीक से पालन पोषण भी नहीं हो पाया था I एक दिन जब समीर दोपहर के खाने पर घर आए तो सासू माँ ने फरमान सुना दिया, कि हम समीर की दूसरी शादी करेंगे I

मन करता हैं कहीं जाके डूब मरूं…

उफ्फ इतना बड़ा धोखा समीर कैसे दे सकते हैं, मुझे नहीं ऐसा नहीं हो सकता, मैंने कहा समीर कुछ बात करनी है आप से, मैं थक गया हूँ स्वाती मुझे सोने दो समीर क्या आप दूसरी शादी करेंगे ? स्वाती मैंने कहाँ ना सोने दो मुझे थक गया हूँ मैं, तुम सब लोगों की चीक चीक सुनते सुनते, उधर माँ और इधर तुम परेशान हो गया हूँ मेरा मन करता हैं कहीं जाके डूब मरूं नहीं समीर ऐसा मत कहिए, स्वाती ने समीर के होंठो पर हाथ रखते हुए कहा, आप के अलावा अब कौन हैं मेरा, स्वाती करवट लेकर सारी रात आंसू बहाती रहीं,  और जब सुबह उठीं तो एक टूटी हुई औरत बनकर जो मजबूर हो कर हर चीज से समझौता कर लेती हैं I

सारी रात यहीं सोचतीं रहीं की शायद समीर के चुपी में हाँ हैं दूसरी शादी के लिए पर ये कहा मालूम था, कि उसकी माँ ने किस हद्द तक मजबूर किया है दूसरी शादी के लिए, पंद्रह दिनों के अंदर ही समीर की दूसरी शादी कोमल से कर दिये I कोमल समीर की माँ की दूर के रिश्तेदार की बेटी थी, स्वाती अपना सामान उस पीछे वाले कमरे में रख ले आज से कोमल इस कमरे में रहेगी समीर के साथ,, सासू माँ ने हाथ नचाते हुए कहा,, कैसे छोड़ दूँ ये कमरा नहीं,  ये मेरा कमरा हैं जिसे जहां जाना हैं जाए, पर फिर खयाल आय कि जो शादी कर इस घर में लाया था I जब वही मेरा नहीं है तो ये कमरा मेरा कैसा हो सकता है, ऐसा सोचते हुए आँखों में आसुओं का सैलाब उमड पडा, सिंदूर की डिब्बी और कुछ कपड़े लेकर उस कच्ची मिट्टी के कमरे की तरफ़ बढ़ गईं, 

 किसी कमजोर लता की तरह मुरझा जाऊँगी…

सामान एक कोने में रख कर खिड़की पर बैठ गयी और उस बदाम के पेड़ को देखते हुए उसको निहारने लगी.. इसे कुछ गम कम हो जाएगा, किस्मत कहूँ या और कुछ कि आज मेरी हालत भी इस पेड़ की तरह हो गई है, अकेला बेसहारा जैसे ये अभी तक अपनी पहचान को बचाने में सफ़ल रहा हैं I क्या मैं भी इसकी तरह मजबूत रह सकूंगी.. या फिर किसी कमजोर लता की तरह मुरझा जाऊँगी और अपनी पहचान खो दूँगी, नहीं ऐसा नहीं होगा.. मैं मजबूत रहूंगी… जब ये बेजुबान पेड़ सब से लड सकता है तो मैं क्यों नहीं I अपने ख़्यालों से बाहर आते ही मैंने अपने आप को संभाला और हर स्थिति से लड़ने के लिए तयार किया I

दिन गुजरते गए और मैंने घर के कामों में अपने आप को व्यस्त कर लिया, अपनी कमरे के आस पास बहुत सारे पेड़ लगाये और बाकी बचे हुए समय मे उन्ह पेड़ों की देखभाल करने लगी साथ ही उस बदाम के पेड़ की खास देखभाल करती थी I कोमल एक सुलझी हुई लडकी थी वो जब भी मुझसे बातें करने के लिए आती मेरी सासू माँ उसे बहाने से बुला लेती, समीर पहले से भी ज्यादा व्यस्त रहने लगे थे I मुझसे बात तो करते थे पर एक पछतावा हमेशा उनकी आँखों में दिखता था,, शायद उन्हें मेरी हालत देख कर बुरा लगता था, पर माँ के खिलाफ जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाते थे I 

सासू माँ का आदेश था कि उसकी अच्छे से…

कोमल के दिन ख़ुशी से गुजर रहे थे और मेरे दिन बस गुजर रहे थे और देखते ही देखते वो दिन भी आ गया जब कोमल ने खुश खबरी सुना दी कि वो माँ बने वालीं हैं I पूरी हवेली में त्यौहार जैसा माहौल हो गया.. सारे नौकरों में तोहफ़े बाटें जाने लगे, मैं भी बहुत खुश थी कि चलो अच्छा हैं अब घर में एक नया मेहमान आएगा I कोमल बहुत कमजोर थी और उम्र भी सोला साल थी I अब सासू माँ का आदेश था कि उसकी अच्छे से सेवा की जाए जिससे कि उस की कमजोरी दुर हो सके, सारी देखभाल के बाद भी कोमल का वजन कुछ खास नहीं बढ़ रहा था, एक दिन मैंने समीर से कहां भी की कोमल को शहर में किसी अच्छे डॉ. को देखा लाओ, पर सासु माँ ने ये कह कर मना किया कि हमारे भी बच्चे घर पर हुए है और समीर की वहीँ पूरानी आदत की अपने माँ के खिलाफ वो जा ही नहीं सकते थे I

    एक दिन कोमल की तबीयत खराब होने लगीं उसकी साँस बहुत फूल रहीं थीं, घबरा कर मैंने गाँव के वैध जी को बुलावा भेजा वैध जी ने आकर कुछ दवाइयां दी और खून की कमी भी बतायी और जब मैंने समीर को यह सब बताया तो सासू माँ ने मुझे कोमल से दूर रहने का आदेश दे दिया I ये कह कर की कोमल पर बाँझ की परछाई भी नहीं पड़नी चाहिए, खैर मुझे कोमल से दूर कर दिया गया, और मैं फिर से अपनी मिट्टी के कमरे में अकेली सारा दिन बंद रहने लगीं, या यूँ कहूँ की अंदर ही अंदर मैं खुद भी डर गयी थीं, कि सचमुच मेरी वजहें से कोमल को कुछ हो ना जाए I कुछ दिन बाद रात में नौकरो का शोर शराबा सुन के मैं आँगन की तरफ भागी देखा तो कोमल के डिलेवरी का समय आ गया था, गाँव की बुढ़ी औरतो और दाइयों  को बुलाया गया I

हाय पोते का मुह नहीं देख पायी मैं अब कैसे मेरा वंश…

पूरी हवेली में हलचल का माहौल था I मैंने समीर की तरफ़ देखा बहुत डरे हुये लग रहे थे मैं उन्ह के पास गयी और उन्हें थोड़ा सब्र रखने को कहां,, थोड़ी देर में बच्चे की किलकारी गूँजने लगीं I हम सभी की खुशी का ठिकाना नहीं था पर तभी काकी ने बाहर आकर बताया कि कोमल की कमजोरी और खून की कमी के वज़ह से वो कोमल को बचा नहीं पाये, ,बेटी को जन्म देते ही कोमल का निधन हो गया , “हाय पोते का मुह नहीं देख पायी मैं अब कैसे मेरा वंश चलेगा ”  सासू माँ के ये सारी बातें हवेली मे गूंज रही थी I उस छोटी मासूम सी बच्ची को देख कर मेरा मन नहीं माना इसलिए मैंने उसे अपने कलेजे से लगा के रखा, 

     वो जरा भी परेशान नहीं करती थीं मुझे, ,बस दुध पीते ही सो जाती थीं I सासु माँ का वहीँ राग चलता था, की ल़डकियों से वंश नहीं चलता है ,पर अब शायद किसी को फर्क़ नहीं पड़ता था I समीर अब पहले से ज़्यादा खुश रहने लगे थे, ऑफिस से आते ही मेरे कमरे में आते और गुड़िया को गुड़िया के साथ खिलते, मुझे भी समीर को देख कर अच्छा लगता था I साल बीत चुका था कोमल को गए हुए और गुड़िया को आए हुए, आज कोमल की बरसीं है I मैंने आज हवेली में छोटी सी पूजा रखी है, पंडित जी के आते ही सासु माँ ने सवाल पूछा कि क्या मैं जीते जी पोते का मुह देख पाऊँगी फिर पंडित जी ने उसके लिए कुछ ग्रह शांति के उपाय बताए I

और सासू माँ ने तुरंत नौकरो से कहां कि आज…

सासू माँ चल दी पंडित जी को हवेली दिखाने और सारी हवेली की शुद्धि करन कराने, मेरे कोठरी के पास भी गई और पंडित जी को वो बाँझ पेड़ भी दिखाया, पेड़ देखते ही पंडित जी का मुँह बन गया और उन्होंने कहना शुरू कर दिया कि इस मनहूस पेड़ की वज़ह से तुम्हारे घर बेटा नहीं है I जितनी जल्दी हो सके कटवा दो, अब मेरी बर्दाश्त की हद्द हो चुकी थी I मैंने समीर के तरफ़ देखा पर मुझे नहीं लगा कि वो मना करेंगे, और सासू माँ ने तुरंत नौकरो से कहां कि आज इस पेड़ को काट डालो, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूँ कैसे अपने सुख दुःख के साथी को बचाउ, जैसे ही वो कुल्हाड़ी लेकर पेड़ काटने आगे बढ़ने लगे मैं तेज़ी से भाग कर उस पेड़ से लिपट गईं और विनंती करने लगी I 

पेड़ को छोड़ दो, पर वो लोग नहीं मान रहे थे मैं रोती जा रहीं थीं I पर किसी को तरस नहीं आ रहा था, तभी किसी ने मुझे खींच कर धक्का दिया और मेरा सिर पत्थर से टकरा गया, सिर से खून की धार निकल रहीं थीं I ये देख कर समीर से रहा नहीं गया और उन्होंने सब को वहां से हटा दिया और तुरंत मुझे अस्पताल ले गए, मर हम पट्टी के बाद मुझे होश आया, डॉ. साहिबा सामने खडी थी और समीर को कुछ समझा रहीं थीं I सासु माँ भी वहीँ थी और उनके चेहरे से पता चल रहा था कि उन्हें अपने किए पर अफ़सोस हैं, “डॉ क्या अब हम इसे घर ले जा सकते हैं” समीर ने पुछा हाँ अब आप इन्हें ले जा सकते हैं पर ख्याल रखिएगा कि अब ऐसा दोबारा ना हो क्यूँकी ऐसी हालत में ऐसे गिरना ठीक नहीं है, ऐसी हालत ? “डॉ क्या हुआ है इसे “समीर ने घबराते हुए डॉ से पूछा, अरे आप लोगों को नहीं पता अब ये माँ बने वाली है तो इनका अच्छे से ख़याल रखिएगा I

नर्स ने सासू माँ को ये खबर सुनायी और सासू माँ…

ये सुन कर किसी को भी यकीन नहीं हुआ सब बस एक दूसरे को देखे जा रहे थे और मैं तो बिल्कुल यकीन नहीं कर पा रहीं थीं I सासू माँ कि आँखों में पछतावे के आंसू थे मेरे सर पर हाथ रख कर बस इतना ही कह सकीं की मुझे माफ कर दो, और मैं मुस्करा कर उन से लिपट गई जैसे मैं अपनी माँ से लिपटी हूँ, पूरे नौ महीने मेरी सासू माँ ने मेरा बहुत ख्याल रखा और मैंने उस पेड़ का I आज मेरी डिलीवरी होनी थी सासू माँ ने मुझे हस्पताल ले गई ताकि जो गलती उन्होंने कोमल के समय की थी वो अब ना हो, बधाई हो आपको पोता हुआ है नर्स ने सासू माँ को ये खबर सुनायी और सासू माँ ने हाथ से अंगुठी निकल कर नर्स को दी I वो खुश थी पर इस वज़ह से नहीं कि पोता हुआ है ब्लकि इस बात पर कि मैं बिलकुल ठिक हूँ I

 हवेली में बहुत रौनक थी, सब खुश थे कि हमरा परिवार पूरा हो गया था बेटी और बेटे के आने से, और एक खुशी कहीं और भी पनप रही थी, वो उस बदाम के पेड़ में फल आ रहे थे, शायद हम बहुत जल्दी चिंता करने लगते हैं फल मिलने की पर हर चीज का एक समय होता है I

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