सलाम हैं ऐसी सास को… राघव और ईशा दोनों की मुलाकात कॉलेज में हुईं थीं, और ये मुलाकात प्यार मे बदल गई, और पिछले दो साल से दोनों एक साथ हैं I ईशा एक अमीर बाप की इकलौती बेटी थीं, और राघव मिडल क्लास फॅमिली से था I ईशा ने अपने पापा मनोज जी को राघव के बारे मे बताया था, राघव मिडल क्लास फॅमिली से था, इस वजह से मनोज जी इस रिश्ते के खिलाफ थे, मनोज जी ने अपनी इकलौती बेटी के लिए बहुत कुछ सोच रखा था I मनोज जी ईशा से कहते कि तुम पहले अपनी पढाई पर ध्यान दो, और राघव को भी अच्छे से पढ़ लिख कर अपना करियर बनाने दो, और वैसे भी अभी तुम्हारी उम्र ही क्या है ? मनोज जी चाहते थे, की एक बार ईशा की पढ़ाई पूरी हो जाए, उस के बाद वो अपने दोस्त के बेटे के साथ ईशा की शादी करवाएं, मनोज जी के दोस्त भी बहुत अच्छे परिवार से थे I
आखिर कार पापा है वो तुम्हारे गुस्से में उन्होंने तुम्हे थप्पड मार दिया तो क्या हुआ ? अब तुम वापस अपने पापा के पास चली जाओ I मैं और राघव के बाबा तुम्हारे घर आयेंगे तुम्हारे पापा से तुम्हारा हाथ मांगने, इस बात पर ईशा कहती है, नही आंटी आप पापा के पास नहीं जायेगी वो नहीं मानेंगे I वो मेरी शादी एक अमीर घर मे करना चाहते है, ईशा कि बात ना मान के राघव के माँ – बाबा मनोज जी से मिलने उन्हके घर आते है, और कहते है बच्ची ना समझ है, गुस्से में घर छोड़ कर चली गई, माफ कर दीजिये, हम यहाँ आप से ईशा का हाथ अपने बेटे राघव के लिए मांगने आये है I मनोज जी ने उन्हे कह दिया कि हमारे कोइ बेटी नही हैं, आप लोग यहाँ से चले जाइए, हमारी बेटी मर गई है I ईशा की माँ की अपने पति के आगे तो उनकी आवाज तक नहीं निकल ती थी, इस वज़ह से वो कुछ कह नहीं पाई I
राघव के बाबा ने मनोज जी को बहोत समझाने कि कोशीश कि पर वो समझना ही नहीं चाहते थे, फिर थक हार कर राघव के माँ-बाबा घर वापस आते है। कुछ दिन के बाद अच्छा सा मुहूर्त निकालकर, घर के दो चार लोग मिल कर ही राघव और ईशा कि शादी करते है, ईशा को अपनी बहु के रूप मे स्विकारते है। धिरे – धिरे ईशा भी अपने ससुराल में घुलमिल रहीं थीं I ईशा को घर का काम करने की आदत नहीं थी, क्यूँकी उसके घर में काम करने के लिये नोकर चाकर थे, पर माया जी ने उसे कभी बुरा भला नहीं कहा ब्लकि उन्होंने उसे संभाल लिया, और धीरे धीरे घर का काम भी सिखाया I सब ठिक चल रहा था, एक दिन राघव अपने बाबा के साथ हॉस्पिटल गया था उनकी शुगर चेक कराने, आते हुए रास्ते में एक बड़े से ट्रक के ब्रेक फेल हुए थे, और वो ट्रक सिधे राघव से टकरा गई I
राघव के सिर पर बहोत गहरी चोट आई थी, इसी कारण राघव की जगह पर हि मौत हो गई, शादी को छह महिने भी नहीं हुए थे, कि ईशा को जिन्दगी ने इतना बड़ा धोखा दे दिया, अपने जवान बेटे को अपने आँखों के सामने मरता देख राघव के बाबा को बहोत बड़ा सदमा लगा I ईशा तो पूरी तरह से तुट गइ थी, लेकिन इन सब मे माया जी ने बहोत हिम्मत से काम लिया, और सब को सम्भाला I कुछ दिनो बाद माया जी ने ईशा से कहा, कि बेटा तुम्हारे आगे तो तुम्हारी पुरी जिन्दगी पडी है तुम उसे इस तरह से बर्बाद ना करो, जिसे जाना था वो तो चला गया, अब तुम भी अपनी जिन्दगी की फिर से एक नई शुरुवात करो, मैं तुम्हारे पापा से बात करती हूँ, अगर जरूरत पडी तो मैं उनके पैर भी पकडूगी, इस तरह समझा कर वो ईशा को उसके मायके ले आती है ।
मनोज जी को अभी अपने बेटी पर तरस नही आता, कहते है मैं नही जनता इसे, इसने मेरे खिलाफ जाकर तुम्हारे बेटे से शादी की थी इसने हमारी जरा भी परवा नही कि, अब मुझे भी इसकी कोई परवा नहीं है, चाहे ये जीये, या मारे हमे कोई फ़र्क नहीं पड़ता I माया जी बहोत समझाती हैं, उनके आगे हाथ तक जोड़ती हैं पर मनोज जी ने एक ना सुने, और कहने लगे कि आप पर बोझ बन गई हैं तो अपने घर से निकाल दो, लेकिन दुबारा इसे यहाँ मत लाना मुझे इस की शकल नहीं देखनी हैं I माया जी ईशा को लेकर अपने घर आती है, ईशा को वापस अपने घर में देख कर राघव की दादी ईशा को बाते सुनाने लगी, उसे कोसने लगी मेरे पोते को खा के तुझे चैन नहीं मिला, अब किसे खाने आई हैं I ना जाने वो कोनसा दिन था जब राघव तुझसे मिला था मनहूस कहीं की, लेकिन माया जी ने कभी भी ईशा को दोष नहीं दिया बल्कि वो तो ईशा का बहोत साथ देती थी।
एक तरफ राघव के बाबा की तबीयत बहोत खराब रहने लगीं, ये सब देख कर ईशा को अपने आप से ही नफरत हो गई और वो सोचने लगी कि कहीं ना कहीं इसकी जिम्मेदार वो खुद हैं I राघव भी चला गया मुझे छोड़ कर और अब बाबा को कुछ हुआ तो मैं खुद को कभी माफ नहीं करूंगी I मैं यहां नहीं रहूँगी तो कोई परेशानी नहीं होगी, इसलिये वो घर छोड़ कर जाने का फैसला करती हैं I एक रात जब सब लोग सो रहे थे, तब वो दबे पाव से घर से बाहर जा रहीं थीं, की इतने में माया जी की आँख खुल गई, और पूछा कहा जा रही हो, माँ मेरा यँहा से जाना ही अच्छा होगा I मेरे वजह से ही ये सब हो रहा है, अगर मैं राघव की जिन्दगी में नही आती, तो हमारी शादी भी नहीं हुई होती, और आज राघव आपके साथ जिन्दा होता और बाबा की हालत भी ऐसी नहीं होती, मुझे जाने दिजिए मैं यहा नही रह सकती I वक़्त पड़ा तो मैं खुद खुशी करूंगी पर अब यहां नही रहूंगी, मेरे यँहा आने से इस घर की सारी खुशिया चली गई और मनुसीहत फैल गई है, मुझे कोई हक्क नही है यहां रहने का ये कहते हुए ईशा रोने लगी I
माय जी ईशा को तसली देते हुए कहती है, अगर तुम लोग नहीं मिले होते तो, उस दिन वो एक्सीडेंट नही होता तो, अब अगर, मगर कहने का वक़्त नहीं हैं बेटा, अब इन बातों को सोचने का वकत चला गया I राघव में मेरी जान बसती थी, उसकी जाने के बाद मेरी क्या हालत हुई होगी, मेरे दिल पर क्या बीती होगी, क्या कभी तुमने इसके बारे में सोचा, राघव के बाद अब तुम भी मुझे छुड कर जाना चाहती हो I ईशा तुम मुझ पर बोझ बनी हो, इस वजह से मैं तुम्हें तुम्हारे मायके छोड़ने नही गई थी, मैं तो ये सोच कर तुम्हे वहा लेकर गई थी, कि तुम्हारे आगे तुम्हरी पूरी जिन्दगी पड़ी हैं I हमारा करीबी इंसान जीसे हम बहोत चाहते हो, उसके जाने के बाद हम जिना छोड़ तो नहीं सकतीं I उसी के याद में हम अपनी पूरी जिन्दगी खुद को दोषी मानते रहेंगे, ये तो गलत बात है ना बेटा I यहां से ज्यादा तुम वहाँ खुश रहोगी क्युकि यहां राघव कि यादे तुम्हे तकलीफ देती ऐसा मेरा माना था, जाने दो जो हुआ सो हुआ अब तुम्हें सब भूल कर आगे बढ़ना हैं I
अब तुम अपनी आगे की पढ़ाई पूरी करना, मैं हुँ तुम्हारे साथ तुम्हे किसी भी बात कि फिक्र करने की जरूरत नहीं है, कि लोग क्या सोचते हैं, घरवाले क्या कहेगे, तुम सिर्फ मन लगा कर पढाई करना बाबा को और घर को संभालने में हूँ I बस तुम मेरा साथ देना राघव के साथ हुए इस हादसे का सब लोगों को बहोत अपसोस हैं और सब परेशान हैं इस वजह से सब लोग तुम्हे कुछ ना कुछ कहते रहेंगे, लेकिन तुम किसी के भी बातों का बुरा मत मना उनकी बातो को दिल पर मत लेना, तुम्हारी तकलीफ मुझसे ज्यादा कोई नही समझ सकता I तुम्हे खुद को संभालना होगा तुम मुझ से वादा करो कि तुम कोई भी गलत कदम नही उठाओगी, राघव के बाद अब मेरा सब कुछ तुम ही हो अगर तुम्हें कुछ हो जायेगा तो मैं खुद को नहीं संभाल पाऊँगी I
माय जी कि बाते सुन ईशा गले लग जाती हैं और रोते हुए कहने लगी कि माँ मैं आपको छोड़कर कही नहीं जाऊँगी और आप जो कहोगे जैसा कहोगे मैं वैसा हीं करूँगी। आप मेरे लिए मेरी सगी माँ से बढ़कर है, आज सास-बहू एक माँ बेटी कि तरह गले लग कर खुब रोई मानो जो इतने दिनो से दिल में दबा कर रखा था वो सैलाब उमडकर बाहर आया हो । अब ईशा उस घर कि बहु नही ब्लकि बेटी बन गइ थी, और बहोत मन लगा कर पढ़ाई करती थी I घर के लोग बहोत कुछ कहते, पर ईशा उनके तरफ अनदेखा कर के आगे बढ़ती, क्युंकि उसकी माँ उसके साथ हर कदम पर थी, बस वो अपने माँ के लिए जिती और उनके बातों पर अमल करती I
ऐसे ही तीन साल बीत गये और अब ईशा आयपीएस ऑफिसर बन गई थी, ये देख उसे ताने मारने वाले लोगों के मुह बंद हो गये थे, मानो जैसे उनके चेहरे पर किसी ने ज़ोर दार थप्पड़ मारा हो I माया जी का तो खुशी का ठिकाणा नहीं रहा, वो तो पुरे मौहल्ले में मिठाईया बाट रहीं थीं I जब ईशा के मायके में ये बात पता चली तो मनोज जी के अलावा बाकी सब लोग ये सुन बहोत खुश हुये, और उसे पुछने लगे, बातें करने लगे । कुछ दिन बाद फिर माया जी ने एक अच्छा सा लड़का देखकर अपनी बेटी की शादी करवाती हैं । शादी के बाद भी ईशा अपनी माँ को भूली नहीं थी, वो अभी उनकी बहोत फिक्र करती थी, हर हफ्ते मिलने आती थी, और जब भी वो बिमार होती तो ईशा अपना सब काम छोड़ कर अपनी माँ की देखभाल करती I माया जी के आखिरी दिनों में तो वह उनके साथ ही थी, दिनरात उनका ख्याल रखती उनकी सेवा करती, करती भी क्यूँ ना ईशा को सास के रूप में ऐसी माँ मिली थी जिस ने उसे सही मायनो में जिन्दगी जीना सिखाया था I
सलाम है माया जी के जैसी मेहनती और साहसी सास को जो, अपने परिवार और समाज के खिलाफ जाकर अपनी बहू के साथ मजबूती से खड़े रही, जो अपने बहू को बेटी से ज्यादा मानती हो, और उसे एक बड़े मुकाम पर पहुंचाती हैं, सच में सलाम है ऐसी सास को I