मुंबई जिसे सपनों का शहर कहा जाता है, उसी मुंबई का पहला अंडरवर्ल्ड डॉन जिसने कभी किसी का खून नहीं बहाया, और ना ही गोली चलाई… मुंबई यहां हिंदुस्तान के हर कोने कोने से लाखों लोग आते हैं, अपने सपनों को पूरा करने I मुंबई में ही बॉलीवुड इंडस्ट्री है और बहुत से बड़े-बड़े फिल्म स्टूडियो है, आज हम बात करेंगे ऐसे ही एक लड़के की जो अपने पिता के साथ तमिलनाडु के एक छोटे से गांव से मुंबई अपने सपनों को पूरा करने आया था I वह गरीब परिवार से था परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी, पिता किसान थे और जमीन भी बहुत कम थी, उसमें पूरे परिवार का गुजारा होना बहुत मुश्किल था, इसलिए वह पैसे कमाकर अपने परिवार की आर्थिक स्थिति को बदलने के लिए मुंबई आया I
यह बात है 60 और 70 के दशक की मुंबई के मशहूर अंडरवर्ल्ड डॉन जिसने कभी भी गोली नहीं चलाई, बिना गोली चलाएं ही वह अंडरवर्ल्ड का डॉन बना था, उसने कभी भी बंदूक या तलवार का इस्तेमाल नहीं किया, उसने किसी भी शख्स को शारीरिक रूप से हानि नहीं पहुंचाई और पूरे 20 साल मुंबई पर राज किया, और इन 20 सालों में उसके खिलाफ एक भी कत्ल का या लूटमार का कोई भी इल्जाम या FRI उसके खिलाफ किसी भी पुलिस थाने में दर्ज नहीं हुई, दर्ज होता भी कैसे क्योंकि उसने कभी किसी को बेवजह तकलीफ नहीं पहुंचाई, मुंबई में उसका दबदबा और खौफ इतना था कि हर कोई उसे डरता था I
चाहे पुलिस वाले हो या कोई और बड़ा अधिकारी सब उससे डरते थे, एक टाइम ऐसा भी आया था कि उसे अरेस्ट किया गया, उन दिनों देश की Pradhanmantri Indira Gandhi थी, ऐसा सुनने में आया है कि उसने अपने एक आदमी के जरिए दिल्ली प्रधानमंत्री के दफ्तर में एक प्रस्ताव भेजा था, जिसमें उसने कहा था की प्रधानमंत्री को जितनी रकम चाहिए उतनी रकम वह उन्हें देगा, बस उसे किसी तरह जेल से रिहा कर दे I लेकिन उसके इस प्रस्ताव को नहीं माना गया, उन दिनों के जो पुलिस कर्मचारी थे वह कहां करते थे की मुंबई से कोई भी अंडरवर्ल्ड खत्म नहीं कर सकता, और अगर पुलिस वाले चाहेंगे तो भी अंडरवर्ल्ड को खत्म नहीं कर सकते, और जिन लोगो की वजह से अंडरवर्ल्ड है, वह लोग हमेशा रहेंगे I
यह अंडरवर्ल्ड था हाजी मस्तान की दिनों का उस हाजी मस्तान का जिनकी आज हम कहानी जानेंगे I उन दिनों के पुलिस कर्मचारी ऐसा क्यों कहा करते थे, कि वह चाहे तो भी अंडरवर्ल्ड को नहीं खत्म कर सकते, आइए आज हम जानेंगे एक ऐसी शख्सियत की कहानी जो मुंबई का सबसे पहला अंडरवर्ल्ड डॉन बना था I जिसने बगैर किसी खून खराबे के लाखों करोड़ों दिलों पर राज किया, ऐसा अंडरवर्ल्ड आज तक नहीं बना जैसा अंडरवर्ल्ड हाजी मस्तान के दिनों में था, हाजी मस्तान का मानना था कि अगर तुम गलत काम भी कर रहे हो तो ऐसा करो की आम लोगों को कोई तकलीफ ना पहुंचे I
उन दिनों दो डॉन और थे सबसे पहला डॉन तो हाजी मस्तान, एक करीम लाला और एक वर्धराजन यह तीनों मिलकर खुद का अलग अलग काम कर रहे थे, इन तीनों ने कभी भी आपस में कोई लड़ाई नहीं की, इसकी वजह यह थी की इन तीनों ने अपने काम करने के इलाके चुने थे, जिसकी शर्त यह थी कि कोई भी किसी दूसरे के इलाके में काम नहीं करेगा I वर्धराजन और करीम लाला यह दोनों शराब और जुए का काम देखते थे, और हाजी मस्तान स्मगलिंग का काम देखते थे, जिसमें सोने, चांदी, महंगी गाड़ियों की, और इलेक्ट्रॉनिक चीजों की स्मगलिंग होती थी I उन दिनों हिंदुस्तान में सोना, चांदी बहुत महंगा था, हाजी मस्तान ने नियम बनाया था कि वह सिर्फ उन्हें चीजों की स्मगलिंग करेगा, जिससे दूसरे को नुकसान ना पहुंचे, जैसे ड्रग्स और गैर कानूनी हथियार इस की स्मगलिंग वह नहीं करेंगे I
हाजी मस्तान का असली नाम मस्तान हैदर मिर्जा है, तमिलनाडु के एक छोटे से गांव में 1 मार्च 1926 को मस्तान हैदर मिर्जा का एक गरीब परिवार में जन्म हुआ I मस्तान के पिता एक गरीब किसान थे, उनके पास जमीन भी बहुत कम थी, जिससे पूरे घर का गुजारा होना बहुत मुश्किल था I जब हाजी मस्तान की उम्र 8 साल थी तब वह अपने पिता के साथ बॉम्बे आए थे, मुंबई आकर वह दोनों साइकिल रिपेयरिंग की दुकान में मैकेनिक के तौर पर काम करने लगे, यह जो दुकान थी वह मेन रोड पर ही थी, और उस दुकान के पीछे बहुत से आलीशान बंगले और बिल्डिंग थी I दुकान के आगे से बहुत सी महंगी गाड़ियां गुजरती थी, क्योंकि मुंबई में अमीर लोग ज्यादा है, यहां पर फिल्में सितारे और बड़े-बड़े हस्तियां रहते हैं I
Bombay Fort market
घरों को और गाड़ियों को देखकर हमेशा मस्तान हैदर मिर्जा यह सोचते थे, कि 1 दिन मेरे पास भी ऐसी महंगी गाड़ियां और आलीशान बंगला होगा, उस साइकिल रिपेयरिंग की दुकान में काम करते-करते 8 साल का मस्तान मिर्जा 18 साल का हो चुका था I 10 साल बीत चुके थे लेकिन साइकिल रिपेयरिंग करके इतने पैसे जमा नहीं हुए थे, कि वह अपने ख्वाब पूरे कर सके, परिवार गांव में था उनकी जरूरत को पूरा करने के लिए भी पैसे गांव भेजना होता था I इन्हीं 10 सालों में मस्तान के बहुत से लोगों से जान पहचान हो गई थी, उसके कुछ दोस्त बने थे उसके एक दोस्त ने उससे कहा तू हमारे साथ बंदरगाह यानी Port पर चल और वहां तो कुली बन जा, इस काम में पैसे बहुत हैं I
दोस्तों के जिद करने पर मस्तान हैदर मिर्जा साइकिल रिपेयरिंग का काम छोड़कर पहली बार बंदरगाह जाता है और वह वहां कुली का काम करता है, बंदरगाह पर जो जहांज आते थे उनमें से सामान उतारना उठाना यहां से वहां ले जाना, इसी बंदरगाह पर मस्तान की एक और से दोस्ती होती है, वह दोस्त देता है कि यह लड़का बहुत तेज है, वह कहता है कि तुझे और पैसे कमाने हैं मस्तान मिर्जा कहता है हां कमाने हैं पर वह कैसे? तब वह सामने वाला कहता है की बड़े जहाज में बाहर देश से स्मगलिंग का सामान आता है, बस तुझे उसे अपने कपड़ों में छुपा कर इस बंदरगाह के बाहर पहुंचना है, तब मस्तान मिर्जा कहते हैं ठीक है I
मस्तान मिर्जा अपने कपड़ों के अंदर अपने बनियान में जींस में यहां तक की अपनी अंडरवियर में स्मगलिंग का सामान जैसे गोल्ड की बिस्किट वगैरा बंदरगाह से बाहर पहुंचाता था I 1940, 50 में उस वक्त जो बाहर से स्मगलिंग करके लाया जाता था उसमें खासकर सोना और चांदी क्योंकि सोना विदेश में सस्ता था और हमारे यहां पर महंगा था, गोल्ड के अलावा जो बाहर से स्मगलिंग करके आता था, वह इलेक्ट्रॉनिक आइटम फिलिप्स के म्यूजिक रिकॉर्डर रेडियो और घड़ियां I सोना चांदी घड़ियां और इलेक्ट्रॉनिक आइटम इन चीजों की स्मगलिंग हुआ करती थी, उस जमाने में मुस्लिम लोग पानी के जहाज से ही सऊदी अरब हज करने के लिए जाते थे, तो वहां से आते वक्त कुछ लोग गोल्ड की बिस्कुट और इलेक्ट्रॉनिक की आइटम लेकर आते I
इस बंदरगाह पर काम करते हुए कुछ हाजियों से भी मस्तान मिर्जा की पहचान हो गई थी, जिससे मस्तान को यह पता चलता था कि यह हज पर जा रहा है वहां से कोई सामान आ रहा है तो उसको बाहर निकलना है, तभी मस्तान मिर्जा उन हाजियों के भी सामान को बंदरगाह से बाहर पहुंचने का काम करता, इसी काम पर चलते हैं धीरे-धीरे मस्तान मिर्जा की कमाई बढ़ गई I इस बंदरगाह पर अक्सर पानी के जहाज से बाहर से लोग आते थे, तो इसी बीच सऊदी अरब के शेख से मस्तान मिर्जा के दोस्ती हो गई जिसका नाम था शेख मोहम्मद अल ग़ालिब इत्तेफाक से इन दोनों के मुलाकात किसी बंदरगाह पर हुई थी वह जो शेख था मोहम्मद अल ग़ालिब स्मगलिंग का काम करता था I
शेख मस्तान मिर्जा को उसके साथ मिलकर काम करने को कहता है और तभी मिर्जा भी मान जाते हैं, फिर इस तरह से धीरे-धीरे मस्तान मिर्जा स्मगलिंग के काम में पक्का खिलाड़ी बन जाते हैं I इसी दौरान एक दिन शेख मोहम्मद अल ग़ालिब सऊदी अरब से स्मगलिंग का सोना लेकर बंदरगाह पर मस्तान मिर्जा को देना होता है ताकि वह उसे बंदरगाह के बाहर पहुंच सके, इसी दौरान वहां पर पुलिस पहुंच जाती है और उस को पकड़ लेती है लेकिन तब तक उस शेख ने एक बहुत बड़ा स्मगलिंग का सोने की खेप मस्तान मिर्जा को दि चुका था, कस्टम वाले शेख को पकड़ कर ले जाते हैं और उसे तीन साल की सजा होती है I
3 साल के बाद जब वह शेख जेल से बाहर आता है, तो वह उसी बंदरगाह पर पहुंचता है और मिर्जा से मिलता है तब मिर्जा उस शेख को अपने घर ले जाते हैं पहली बात जब वह शेख घर पहुंचता है तो देखाता है जो बॉक्स उसने मस्तान मिर्जा के हाथों दिया था, वह बॉक्स उस घर में वैसे ही था जिस हालत में उसने मिर्जा को दिया था, और उसे किसी ने खोल कर देखा तक नहीं I फिर मिर्जा शेख गालिब को बॉक्स देते हैं जब वह खोलकर देखा तो सोना जैसे का वैसे ही था, तब वह मस्तान मिर्जा के इस ईमानदारी से बहुत खुश होता है, और मिर्जा के इस ईमानदारी को देखते हुए शेख गालिब अपने बॉक्स में से आधा सोना मिर्जा को दे देता है I
यही वह वक्त था जहां से मस्तान हैदर मिर्जा की जिंदगी बदल गई, और इन कुछ सालों में मस्तान मिर्जा को इतना तो पता चल चुका था कि किस तरह से स्मगलिंग होती है, और कैसे पैसे कमाते हैं, फिर इस तरह से धीरे-धीरे स्मगलिंग के काम में नाम बढ़ता गया और पैसे आते थे I अब बारी आती है मिर्जा के अपने शौक पूरे करने के मिर्जा को बड़ी गाड़ियों का बहुत शौक था इसलिए सबसे पहले Mercedes-Benz खरीद ली, जिसमें वह हर जगह घूमता, उसके बाद मिर्जा ने एक पोश एरिया में घर खरीदा I
मस्तान मिर्जा को फिल्मों का भी बहुत शौक था, उस दौर के दिग्गज अदाकारा जैसे राज कपूर, दिलीप साहब, देव आनंद, अमिताभ बच्चन, धर्मेंद्र जैसे अदाकारा के साथ उठना बैठना, उनके साथ फोटो खिंचवाना और फिल्म इंडस्ट्री के लोगों से मिर्जा की बहुत गहरी दोस्ती थी I इस पूरे सफर में स्मगलिंग के काम में मस्तान हैदर मिर्ज़ा इतने पैसे कमा लिए थे कि वह एक मिलियनेयर डॉन बन चुका था, अपने सारे शौक पूरे हो गए महंगी गाड़ियां भी खरीदी नया बंगला भी खरीदा I मस्तान मिर्जा को व्हाइट कपड़े यानी डिजाइनर सूट पहनने का बहुत शौक था, और इसी के साथ ट्रीपल फाइव सिगरेट और सिगार के भी हाजी मस्तान शौकीन थे I
फिल्म इंडस्ट्री के लोगों से भी उनकी काफी अच्छी जान पहचान और गहरी दोस्ती थी तो इसी दौरान मस्तान उस दौर की खूबसूरत अदाकारा मधुबाला के खूबसूरती पर फिदा हो गए थे, और वह उनके प्यार में इतने दीवाने थे कि वह मधुबाला से शादी तक करना चाहते थे, और यह बात किसी के जरिए से मधुबाला जी को भी पता चली थी, लेकिन मस्तान को पता था कि यह ऐसा कभी होगा नहीं और हाजी मस्तान का मधुबाला से प्यार एक तरफा ही रहा, मधुबाला जी की तरफ से कभी ऐसा कुछ रहा नहीं I
मधुबाला से एक तरफा प्यार के ही दौरान फिल्म इंडस्ट्री में एक और लड़की नजर आई, जो फिल्म इंडस्ट्री में एक छोटी-मोटी अदाकारा थी उसका नाम सोना था, सोना की शक्ल मधुबाला जिसे काफी हद तक मिलती-जुलती थी, तब मस्तान मिर्जा ने सोचा कि चलो मधुबाला ना सही उनकी हमशक्ल ही सही I मस्तान मिर्जा ने सोना के कोई छोटे-मोटे फिल्मों में फाइनेंस करना शुरू किया, और सोना ने भी कई फिल्मों में बतोर हीरोइन काम भी किया, फिर बाद में हाजी मस्तान नें सोना से शादी कर ली I
इसी दौरान हाजी मस्तान का कद, नाम, रुतबा, दौलत, और शोहरत बढ़ते जा रही थी, बगैर गोली चलाएं बिना किसी खून खराबी के और बगैर लड़ाई करें वह एक तरह से मुंबई का भाई यानी डॉन बन चुका था I इसी सब के बीच वर्धा राजन जो है वह साउथ की तरफ लौट गया, और करीम लाला जो थे वह अपना धंधा समेटने लगा I इसके बाद कुछ नए गैंग आने शुरू हुई जैसे पठान ब्रदर्स, दाऊद इब्राहिम, यह सब जो थे वह एक तरफ से हाजी मस्तान के चेले थे, और हाजी मस्तान ने ही इन सब को सिखाया था की स्मगलिंग कैसे होती है कैसे करते हैं और यह सब बगैर किसी सवाल जवाब के हाजी मस्तान के हुकुम को मान लेते थे, क्योंकि हाजी मस्तान को पठान ब्रदर्स दाऊद इब्राहिम यह सब अपना उस्ताद यानी गुरु मानते थे I
धीरे-धीरे वक्त गुजर रहा था और स्मगलिंग का काम भी तेजी से चल रहा था, कई साल बीत गए लेकिन हाजी मस्तान कभी स्मगलिंग के केस में गिरफ्तार नहीं हुए, इसकी वजह यह थी पुलिस और कस्टम वालों को हमेशा महंगे महंगे तोहफे देता और इस तरह से वह उन्हें खरीद लेता, और अगर कोई पुलिस वाला या कस्टम वाला तोहफे लेने से इनकार करता तो हाजी मस्तान उनका ट्रांसफर कर देते, क्योंकि हाजी मस्तान की पहुंच अब तक बहुत ऊंची हो गई थी, फिल्म इंडस्ट्री से लेकर पॉलिटिक्स तक I जो ईमानदार ऑफिसर थे जो तोहफे लेने से मना करते उन्हें हाजी मस्तान किसी तरह का भी नुकसान नहीं पहुंचते, वह उनका ट्रांसफर करा कर सीधा उनका तबादला कर देते I
उस दौर के पुलिस ऑफिसर ने एक किस्सा सुनाया था, की 1974 में एक बार हाजी मस्तान ने एक कस्टम ऑफिसर को खरीदने की बहुत कोशिश की, क्योंकि वह हाजी मस्तान को बहुत परेशान कर रहा था, क्योंकि हाजी मस्तान का जो स्मगलिंग का सामान आता वह कस्टम ऑफिसर उसे पकड़ लेता उनके इलाके में रेट मारता और इसी तरह से हाजी मस्तान का बहुत नुकसान हो रहा था, नुकसान से बचने के लिए हाजी मस्तान ने उस कस्टम ऑफिसर को खरीदने की कोशिश की पर वह बहुत ईमानदार था सारी प्रस्ताव को मना करता I
कस्टम ऑफिसर से परेशान होकर हाजी मस्तान ने अपने पावर से उसे कस्टम ऑफिसर का ट्रांसफर कर दिया, कहते हैं कि वह ऑफिसर मुंबई एयरपोर्ट से जब अपनी फ्लाइट में बैठा और इस फ्लाइट में मस्तान हैदर मिर्जा भी थे तुम हाजी मस्तान ने उसे ऑफिसर से कहा कि ऑल द बेस्ट हालांकि मस्तान को इतनी अंग्रेजी आती नहीं थी, कहते हैं कि जब कोई मस्तान से अंग्रेजी में बात करते तो वह सिर्फ उसका जवाब में या या या बस इतना ही कहते, पर जब उस ऑफिसर को ऑल द बेस्ट कहकर हाथ मिलाकर लौट आते हैं, यह एक तरह से एक दबदबा था जिस तरह से सत्ता में रहने के बाद पुलिस और ऑफिसर हमारा कुछ बिगाड़ नहीं सकती, तो इतनी ऊंची पहुंच थी मस्तान मिर्जा की I
इसके बाद 1974 में ही महाराष्ट्र के एक मंत्री के दबाव में एक अनबान हो गई थी, वह दिल्ली में धरने पर बैठ जाते हैं और मस्तान मिर्जा के अरेस्ट की मांग करते हैं, और इस मंत्री के दबाव में आकर महाराष्ट्र के मुंबई पुलिस से कहा जाता है कि मस्तान हैदर मिर्जा को अरेस्ट किया जाए I मस्तान मिर्जा को अरेस्ट कर लेते हैं पर उन्हें जेल नहीं भेजते, और कोल्हापुर के एक गेस्ट हाउस में मस्तान मिर्जा को रखते हैं, और उसे गेस्ट हाउस में ऐश आराम की वह हर चीज का इंतजाम किया जाता है जो जो मस्तान मिर्जा को चाहिए थी, बढ़िया खाना, सिगार सिगरेट वगैरा, और दो पुलिस ऑफिसर उनके निगरानी में ड्यूटी पर थे I
मस्तान मिर्जा अपनी जिंदगी में कभी जेल नहीं गया और जब जिंदगी में पहली बार गिरफ्तारी हुई तब भी उन्हें जेल की बजाय एक गेस्ट हाउस में रखा गया, और पुलिस वाले ही उनके सेवा कर रहे थे, यह 74 की बात है और इसके 1 साल बाद ही पूरे देश में इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लगाई थी उन दिनों देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थी I और ऐसा इमरजेंसी मेंसारे भ्रष्ट नेताओंकी गिरफ्तारी होती है और उन सारे लोगों की गिरफ्तारी होती है जो गैर कानूनी तरीके से काम करते हैं, और इंदिरा जी ने भीहाजी मस्तान के बारे में बहुत से किस्से सुने हुए थे, जब मस्तान के गिरफ्तारी के बारी आए तो मस्तान गायब हुआ, और बाद में मुंबई पुलिस ढूंढ कर अरेस्ट करके मस्तान मिर्जा को मुंबई में जेल में डाल देते हैं I
जेल में कैद होने के बावजूद मस्तान मिर्जा ने अपने एक आदमी के जरिए से दिल्ली प्रधानमंत्री इंदिरा जी के दफ्तर में एक प्रस्ताव भेजा था उसमें कहा था, कि आप जितना जितनी रकम कहेंगे मैं उतनी भेज दूंगा बदले में मुझे रिहा कर दो, लेकिन मस्तान मिर्जा के सब प्रस्ताव को इंदिरा जी ने मना कर दिया I जेल में ही मस्तान मिर्जा की मुलाकात JP Narayan से होती है, यह भी उसे इमरजेंसी में ही गिरफ्तार हुए थे, इस ए गिरफ्तारी में मस्तान मिर्जा पुर 18 महीने जेल में कैद रहे, और इन्हें 18 महीना मेंमस्तान मिर्जा पूरी तरह से बदल चुके थे और मिर्जा के बदलने की वजह थे JP Narayan I
गिरफ्तार होने से पहले उसे दौर में मस्तान मिर्जा ने जो जनता पार्टी के नेता होते थे उन्हें भी पुलिस से बचने का काम करते थे, जैसे किसी को यहां छुपा दिया किसी को वहां छुपा दिया, मस्तान मिर्जा के बारे में यह सारी बातें जयप्रकाश नारायण को भी पता चली और उन्हें भी अच्छी तरह से पता था कि मस्तान मिर्जा कौन है I उसे मुलाकात में जेपी नारायण ने मस्तान मिर्जा से यह कसम ली थी कि वह ऐसा कोई भी काम नहीं करेंगे जो देश के खिलाफ होगा, और मस्तान मिर्जा ने भी यह कसम खाई है कि वह मैं आज के बाद ऐसा कोई भी काम नहीं करूंगा जो मेरे देश के खिलाफ होगा I
18 महीने के बाद जब इमरजेंसी खत्म हुए तो मस्तान मिर्जा जेल से रहा होगी, इमरजेंसी के बाद जब देश में चुनाव हुए तब इंदिरा जी को बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा, और उसे दौरान जनता पार्टी की सरकार बनी, ऐसे 40 लोग जिनमें मस्तान मिर्जा का भी नाम शामिल था इन्हें माफी दे दी गई, क्योंकि इनके खिलाफ कोई भी मर्डर का या बलातकार का ऐसा कोई भी केस दर्ज नहीं था I
उसके बाद 1980 में मस्तान में जो जेपी नारायण से वादा किया था, उसे वादे के मुताबिक सारे गलत काम छोड़कर हज करने के लिए सऊदी चला जाता है, मस्तान मिर्जा ने 1980 में पहली बार हज किया, अब मस्तान का नाम बदल जाता है अब उन्हें लोग मस्तान हैदर मिर्जा नहीं बल्कि हाजी मस्तान के नाम से पुकारते, मस्तान मिर्जा 80 के दशक मेंहाजी मस्तान बने I हाज से वापस आने के बाद महाराष्ट्र के एक दलितनेता Jogendra Kawade के साथ मिलकर एक पार्टी तैयार करते हैं, और 1984 में हाजी मस्तान पॉलिटिक्स में उतरता है, Dalit Muslim Suraksha mahasangh के नाम से एक नई पार्टी बनाते हैं I
1984 में पार्टी बनती है और 1990 में इस पार्टी का नाम दलित मुस्लिम सुरक्षा महासंघ से बदलकर दलित मुस्लिम अल्पसंख्यक व सुरक्षा महासंघ के यह नाम रख दिया जाता है, और इस पार्टी के चलिए से कई जगह पर चुनाव भी लड़ते हैं, इस चुनाव के दौरान उस दौर के दिग्गज अदाकार ट्रेजेडी किंग दिलीप कुमार साहब ने इस पार्टी के चुनाव का प्रचार भी किया था, और कई रैलियां में भी गए थे I राजनीतिक में अपनी पार्टी बनाने के बाद भी हाजी मस्तान को कुछ खास कामयाबी नहीं मिली, इस चुनाव में जो काले धन ब्लैक मनी का इस्तेमाल हुआ है, और आज भीजो पॉलिटिक्स में नेता लोग ब्लैक मनी का इस्तेमाल करते हैं यह 80 और 90 के दशक से ही शुरू हुआ था I
राजनीति में जो पार्टी बनाई थी वह तो कुछ खास चली नहीं, इसी दौरान दाऊद इब्राहिम हाजी मस्तान के लिए काम कर रहा था, और उसे वक्त Arun Gawli Chhota Rajan जैसे लोग उभर रहे थे, और ऐसे में हाजी मस्तान के उत्तराधिकारी के तौर पर दाऊद इब्राहिम का नाम था की हाजी मस्तान के बाद वही इस गैंग का लीडर बनेगा I लेकिन हाजी मस्तान के कुछ अपने उसूल थे, जो स्मगलिंग करते हैं उसमें ड्रग्स, शराब हथियार इन जैसी चीजों की स्मगलिंग नहीं होगी, यह हाजी मस्तान के अपने उसूल थे, और जब तक हाजी मस्तान थे तब तक सारे लोगजो उनके हाथ में काम करते थे यह उन्हीं के उसूलों परकाम करते थे I
हाजी मस्तान में दाऊद इब्राहिम को एक नसीहत यह भी दी थी, जब तक पुलिस तुम्हारे पीछे नहीं पड़ेगी जब तक तुम आम लोगों को परेशान या उन्हें तंग नहीं करोगे, इसलिए तुम अपने इस काले धंधे का काम रात 9:00 बजे से लेकर सुबह 5:00 तक इस वक्त के अंदर है अंजाम दोगे, तुम्हें जो भी काम करना है स्मगलिंग काअच्छा बुरा तुम्हें इस बताए हुए वक्त के अंदर ही अंजाम देना होगा, अगर तुम अपना काम इस वक्त के अंदर करोगे तो तुम आम लोगों के बीच में नहीं आओगे, और अगर तुम आम लोगों के बीच नहीं आओगे तो पुलिस भी तुम्हारे के बीच नहीं आएगी I
जैसे-जैसे हाजी मस्तान राजनीति में आए वैसे ही उनकी अपने गैंग पर पकड़ ढीली होते गई, और फिर इधर गैंग में दाऊद इब्राहिम ने अपना कद बड़ा किया, और फिर धीरे-धीरे दाऊद इब्राहिम भी हाजी मस्तान की गैंग को छोड़कर अपनी एक अलग गैंग तैयार की I फिर जो चीज आज तकअपनी जिंदगी में कभी हाजी मस्तान ने नहीं कि वह सारी चीज दाऊद इब्राहिम करने लगा जैसे ड्रग्स हथियार शराबउसे घर कानूनी चीजों की स्मगलिंग करने लगाजिस चीजों से हाजी मस्तान ने मना किया था वह सारी चीज करने लगा, फिल्म इंडस्ट्री के लोगों से बिल्डर से इन लोगों से वसूले का काम भी करने लगा I
दाऊद इब्राहिम के इसए इलीगल कम से अंडरवर्ल्ड का पूरी तरह से नक्शा ही बदल गया, हाजी मस्तान काराजनीतिक में आने के बाद धीरे-धीरे उनकी लाइफ सोशल लाइफ बदलती गई, वैसे ही इधर दाऊद इब्राहिम अपने काम में उभरता गया I Haji Mastan, Karim Lala, Varadarajan जो उनके दौर में नहीं हुआ जैसे कि आपस में लड़ाई हो या खून खराब और गैर कानों ने स्मगलिंग अब दाऊद इब्राहिम के इस अंडरवर्ल्ड में आने के बाद वह सारी चीज होने लगी, सड़कों पर खुलेआम गोलियां चलने लगी एक दूसरे के गैंग के लोगों को मरने लगे, RDX से लेकर AK-47 तक जैसी चीजों की स्मगलिंग होने लगी I इन सारी चीजों के की वजह से अंडरवर्ल्ड का चेहरा पूरी तरह से बिगड़ गया I
हाजी मस्तान का फिल्म इंडस्ट्री से बहुत गहरा और गरीबी रिश्ता थाऔर इसी वजह से उनके जिंदगी पर एक फिल्म बनाने तय हुआ, और उसे दौर में जो अमिताभ बच्चन शशि कपूर की दीवार फिल्म आई थी, इस फिल्म की कहानी को हाजी मस्तान को सामने रखकर उसे फिल्म की पूरी कहानी को लिखा था, और कहां जाता है जब सलीम जावेद की जोड़ी ने कहानी लिखिए तब अमिताभ बच्चन को उसका किरदार दिया, तब हाजी मस्तान के कैरेक्टर को समझने के लिए कई बार अमिताभ बच्चन और सलीम खान हाजी मस्तान के घर जाकर मिलते थे बातें करते थे कई घंटे तक उनके पास बैठते और उन्हें समझाने की कोशिश करते, इनके अलावा भी फिल्म इंडस्ट्री के दिग्गज कलाकार प्रोड्यूसर बहुत से लोग हाजी मस्तान के घर जाया करते I
खासकर इस फिल्म के लिए सलीम खान और अमिताभ बच्चन कई बार उनके घर गए और उनसे मुलाकात की, और जब “Diwar” फिल्म बनी तो सुपर डुपर हिट साबित हुई, और इस फिल्म ने अमिताभ बच्चन के करियर को भी एक ऊंचे मुकाम पर पहुंचा I दीवार फिल्म के कुछ सालों बाद एक और फिल्म Once Upon a Time In Mumbai रिलीज हुई, और यह फिल्म भी हाजी मस्तान केजिंदगी पर ही बनी थी I 1994 में ज्यादातर अपना वक्त हाजी मस्तान अपने फैमिली के साथी गुजरते थे, और इसी साल25 जून 1994 में हार्ट अटैक की बीमारी से मुंबई में ही उनकी मौत हो गई, और उधर Karim Lala, Varadarajan की भी मौत हो चुकी थी I
इन सबके दौर में अंडरवर्ल्ड का एक अलग ही बात थी, मुंबई अंडरवर्ल्ड का पहला डॉन हाजी मस्तान इनके बाद वर्धा राजन करीम लाला इन सब के मौत के बाद ठीक है अलग ही पीढ़ी सामने आई दाऊद इब्राहिम अरुण गवली छोटा राजा इन सब ने मिलकर मुंबई के अंडरवर्ल्ड का पूरा चेहरा ही नक्शा ही बदल दिया, और फिर इनके दौर में अंडरवर्ल्ड आतंक के रास्ते पर चल पड़ा, जैसे की 1993 का मुंबई ब्लास्ट इसमें दाऊद इब्राहिम की मौजूदगी I
70 80 के दशक में जो अंडरवर्ल्ड था मुंबई में वह 90 के बाद पूरी तरह से बदल गया, और खूनी खेल इसमें खेले जाने लगे I अभी मुंबई में हाजी मस्तान के परिवार के लोग हैं जिनमें उनकी दो बेटियां और एक बेटा जिसे उन्होंने गोद लिया था, हाजी मस्तान को कोई बेटा नहीं था इसलिए उन्होंने एक बेटे को गोद लिया थाशायद से उसका नाम सुंदर है I मुंबई में हाजी मस्तान की एक छवि यह भी है किकि वह गरीब लोगों की बहुत मदद करते उन्हें पैसे देते, उनकी मुश्किल वक्त में साथ दिया I खुद मुंबई पुलिस केतरफ से ही यह कहा जाता है कि के हाजी मस्तान के निगरानी के दौरान देखा गया कि सुबह हाजी मस्तान के घर के बाहर लोगों की लाइन लग जाती लोग अपने परेशानी लेकर पहुंच जाते किसी को कोई मुश्किल है किसी को यह क्या परेशानी है यह सब बता दे, बकैता हाजी मस्तान मुंबई में अपना दरबार भी लगा था, जिसके चलते हैं हाजी मस्तान की रॉबिन हुड की एक छवि बनी I
वह मुंबई अंडरवर्ल्ड का पहले डॉन जिसके ऊपर एक भी मर्डर क़त्ल का मुकदमा दर्ज नहीं है, लेकिन यह बात भी है की हाजी मस्तान ने कुछ लोगों को रखा था, और इन लोगों के जारीए से हाजी मस्तान लोगों की पिटाई करवाता, अपने हाथ से कभी किसी को मारा किसी को नुकसान नहीं पहुंचा और उनके 20 साल के जुर्म के करियर में कोई भी केस है मुकदमा दर्ज नहीं हुआ I
तो यह थी दोस्तों मुंबई के पहले अंडरवर्ल्ड डॉन मस्तान हैदर मिर्जा उर्फ हाजी मस्तान के की मस्तान हैदर मिर्जा से लेकर अंडरवर्ल्ड डॉन हाजी मस्तान बनने तक की कहानी I