बॉलीवुड फिल्मों में अपने दमदार अभिनय और विलन “मोगाम्बो” के जीवन का परिचय…  

  आज हम जानेंगे एक ऐसे शख्स के बारे में जिन्हें भारतीय सिनेमा में ‘शैतान’ के रूप में याद किया जाता है, यह एक उत्कृष्ट बॉलीवुड अभिनेता थे, 90 के दशक में बहुत से बॉलीवुड फिल्मों में अपने दमदार अभिनय और विलन का किरदार निभाने वाले एक विलन की के बारे में जो कभी फिल्मों में आना ही नहीं चाहते थे, लेकिन किस्मत में उन्हें बॉलीवुड का सबसे पसंदीदा विलन ‘मोगाम्बो’ बनाया, और उन्होंने अपने अभिनय किरदार से लोगों के दिलों पर ऐसी छाप छोड़ी कि लोग उन्हें आज भी याद करते हैं, जिनके आगे बड़े बड़े स्टार भी छोटे लगते थे I 

अमरीश पुरी साहब यह हिंदुस्तान के फिल्म इंडस्ट्री का सबसे मशहूर नाम है, जिन्हें आज के वक्त का बच्चा-बच्चा जानता है I अमरीश पुरी साहब का जन्म 22 जून 1932 को नवाशहर पंजाब ब्रिटिश इंडिया में हुआ था, और उनका असली नाम ‘पुरुषोत्तम पुरी’ था, पिता का नाम लाला निहाल चंद पूरी, और माता का नाम वेद कौर पुरी था I अमरीश पुरी अपने चार भाई बहनों में सबसे छोटे थे, बड़ा भाई चमन पुरी, मदन पुरी, बहन चंद्रकांता और छोटा भाई हरीश पुरी I अमरीश पुरी ने अपनी शुरुआती पढ़ाई पंजाब से की, और आगे की पढ़ाई के लिए वह शिमला चले गए, और शिमला में उन्होंने अपना ग्रेजुएशन कंप्लीट किया I 

60 के दशक में अमरीश पुरी के फिल्मों में आने से पहले उनके दोनों बड़े भाई चमन पुरी और मदन पुरी यह दोनों फिल्मों में काम करने लगे थे, और इन दोनों ने फिल्म इंडस्ट्री में अपना एक मुकाम बनाया था, और यह दोनों फिल्मों में विलेन के रूप में काम करते थे I अमरीश पुरी को भी अपने दोनों भाइयों को देख कर उन्हें की तरह ही फिल्मों में आने की दिलचस्पी होने लगी, लेकिन उन्हें अपने पिता जी का डर था, पिता जी नहीं चाहते थे की अमरीश पुरी फिल्मों में आए, वह चाहते थे कि उनका बेटा उन्हीं की तरह एक सरकारी नौकरी करें, उन्हें लगता था कि फिल्मों में सिर्फ बदमाश और आवारा किस्म के लोग करते हैं I 

अपने पिता के बातों का मान रखते हुए, अमरीश पुरी ने फैसला किया, कि वह फिल्मों से दूर रहेंगे, और उन्होंने किया भी ऐसा ही वह फिल्मों से अपना ध्यान हटाकर RSS  यानी { राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ } के सदस्य बन गए थे, और अब उनके मन में फिल्मों में आने की सोच दूर-दूर तक कहीं नहीं थी I RSS से जुड़ने के बाद अमरीश पुरी इज्जत और बढ़ गई थी, और उनके सोच विचार भी बहुत बदल गए थे I लेकिन जब 30 जनवरी 1948 गोली मारकर महात्मा गांधी जी की हत्या की गई तब RSS के लिए अमरीश पुरी का विश्वास डगमगाने लगा I

इसके बाद उन्होंने खुद को RSS संघ से खुद को अलग कर लिया, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी के हत्या के बाद RSS संघ के लिए उनकी सोच विचार सब बदल गए, इस घटना के बाद वह पूरी तरह से टूट चुके थे I संघ से अलग होने के बाद अमरीश पुरी ने छोटे-मोटे नाटक ड्रामा में हिस्सा लेने लगे, और साथ ही साथ गाना, बजाना और नाचना भी शुरू किया, और इसी के साथ उनमें एक एक्टर बनने की चाह जाग रही थी I इसलिए अपने पिता जी के बातों को अनदेखा कर अमरीश पुरी साल 1953 में मुंबई आते हैं, अपने भाइयों की तरह एक्टर बनने I 

अमरीश पुरी को लगता था कि मुंबई पहुंचते ही उन्हें फिल्म में रोल मिल जाएगा, और वह अभिनेता बन जाएंगे, वह मुंबई पहुंचने के बाद अपने बड़े भाई मदन पुरी के साथ रहने लगे I फिर मदन पुरी अपने भाई को एक ऑडिशन के लिए ले जाते हैं, लेकिन इस ऑडिशन में अमरीश पुरी को रिजेक्ट किया, इसी तरह से उन्होंने बहुत से स्क्रीन टेस्ट के लिए ऑडिशन दिए, लेकिन उन्हें कहीं पर भी कामयाबी नहीं मिली I 

उनका रंग रूप देख कर बहुत से लोगों ने बहुत से बातें कहीं, किसी ने कहा इसे तो शक्ल सूरत ही नहीं है और किसी ने कहा कि यह तो हीरो बनने के लायक ही नहीं है, बहुत बार ट्राई करने के बाद भी उन्हें कहीं पर भी काम नहीं मिला I पहली बात तो काम नहीं मिल रहा था, और दूसरी बात की वह अपने भाई के साथ रह रहे थे, उन्हें लग रहा था कि वह अपने भाई पर बोझ बने हैं, इस बात से शर्मिंदा होकर वह छोटा-मोटा काम करना शुरू करते हैं, कमीशन एजेंट बनकर कभी माचिस का ब्रांड बेचा, तो कभी सरकारी दफ्तर में लिपि की नौकरी की I 

फिर उन्हें एंपलॉय स्टेट इंश्योरेंस कॉरपोरेशन ऑफिस में नौकरी मिली,  और वह वहां हायर पोस्ट पर सिलेक्ट हुए थे, और यही उन्हें अपनी जीवन साथी मिली I जिस ऑफिस में अमरीश पुरी हायर पोस्ट पर सिलेक्ट हुए थे, वही उर्मिला लोअर पोस्ट पर सिलेक्ट हुई थी, और वही उर्मिला को देखते ही अमरीश पुरी उन्हें अपना दिल दे बैठते हैं, उर्मिला उन्हें पहली नजर में पसंद आती है I अमरीश पुरी उर्मिला से शादी करके उन्हें अपने जीवन में लाने का तय करते हैं, लेकिन अमरीश पुरी के इस फैसले से उनका परिवार बहुत नाराज था I फिर भी अमरीश पुरी ने हार नहीं मानी और बहुत कोशिशें के बाद उन्होंने अपने परिवार वालों को मन ही लिया, और उनके परिवार वालों ने अपने बेटी के खुशी के लिए इस रिश्ते को मंजूरीदे दी I 

साल 1957 में अमरीश पुरी ने अपने परिवार वालों के राजा मंदी के साथ उर्मिला से शादी की, शादी के बाद उर्मिला से अमरीश पुरी को पहले बेटी नम्रता पूरी हुई और दूसरा बेटा राजीव पुरी दो बच्चे हुए I शादी और बच्चे होने के बाद भी अमरीश पुरी अपने एक्टर बनने का सपने को नहीं छोड़ते, नौकरी के साथ-साथ अमरीश पुरी एक थिएटर में सत्यदेव दुबे के लिखे हुए नाटक में एक्टिंग करने लगे, और इसके बाद वह थिएटर आर्टिस्ट के रूप में मशहूर हुए I थिएटर में काम करते समय 70 के दशक में अमरीश पुरी की मुलाकात “इब्राहिम अल-काद” जिसे होती है, और यह 60 के दशक में थिएटर के के गुरु और बेताज बादशाह माने जाते थे I 

जिन जिन लोगों ने इब्राहिम अल-काद जी के हाथों में काम किया है, आगे चलकर उन लोगों ने हिंदी सिनेमा में अपनी किस्मत चमकाई है I जब पहली बार इब्राहिम अल-काद जी अमरीश पुरी से मिलते हैं उसी वक्त उन्होंने कहा था की, कि तुम बहुत कामयाब बनोगे, इब्राहिम से यह बातें सुन अमरीश पुरी को खुद पर और ज्यादा यकीन होने लगा I अमरीश पुरी ने इब्राहिम से कहा था कि उन्हें एक्टिंग करना बहुत अच्छा लगता है, और उन्हें थिएटर में बतौर एक्टर काम करने की ख्वाहिश है I तब इब्राहिम ने उन्हें एक अंग्रेजी ड्रामा में हीरो का रोल देते हैं, और उन्हें ड्रामा के स्क्रिप्ट  दे दी याद करने के लिए, साल 1961 से अमरीश पुरी ने मुंबई में थिएटर में एक्टिंग करने से अपने करियर की शुरुआत की I अमरीश पुरी ने इब्राहिम अल-काद जी के साथ-साथ सत्यदेव दुबे से रंगमंच के बारीकियों और एक्टिंग की स्केल को सीखा I

सुबह से लेकर शाम तक अपने ऑफिस का काम करते, और शाम को सीधा वह सत्यदेव दुबे के पास थिएटर पहुंचते, अमरीश पुरी अपने शानदार एक्टिंग के साथ अपने दमदार आवाज के लिए भी बहुत मशहूर थे, वह दिन के कई कई घंटे अपनी आवाज को और दमदार बनाने के लिए प्रेक्टिस किया करते I अमरीश पुरी ने अपनी पहली फिल्म की शुरुआत साल 1967 में आई मराठी मूवी से की थी जिसका नाम { शांतता कोर्ट चालू आहे} इस फिल्म से की थी इस फिल्म में वह एक अंधे का किरदार निभाते हैं I इसके बाद उन्होंने हिंदी फिल्मों की तरफ रुख किया, और साल 1970 में “प्रेम पुजारी” के साथ उन्होंने हिंदी फिल्म में अपने कदम रखे I 

एक बार मशहूर डायरेक्टर सुखदेव की नजर उन पर पड़ती है, उनके दमदार आवाज और एक्टिंग के प्रति उनकी चाहत देखकर उन्होंने 1971 में आई अपनी फिल्म “रेशमा और शेरा” में रोल दिया, इस फिल्म में सुनील दत्त और वहीदा रहमान जी लीड रोल में थे, और इसी फिल्म में अमरीश पुरी ने विलन का रोल निभाया था, पर इस फिल्म से उन्हें पहचान नहीं मिली I उन्होंने मशहूर प्रोडक्शन हाउस बॉम्बे टॉकीज से अपने करियर की शुरुआत की थी, इस वजह से उन्हें कुछ फिल्मों के ऑफर आना शुरू हुए, जैसे कि 1975 में आई “निशांत’ 1977 में ‘भूमिका’, और 1976 में ‘मंथन’ इन सुपर हीट फिल्मों से उन्होंने अपने करियर की शुरुआत की I

इन फिल्मों में अमरीश पुरी ने दिग्गज अभिनेताओं के साथ काम किया, और कामयाबी हासिल की और इसी के साथ अपनी अदाकारी की छाप दर्शकों के दिलों पर छोड़ी I साला 1983 में मशहूर डायरेक्टर गोविंद हिलाने की फिल्म “अर्ध सत्य” में उन्होंने उस वक्त के दिग्गज अभिनेता ओम पुरी के साथ काम किया, और यहीं से उनका करियर आगे बढ़ता गया, उन्हें एक के बाद एक कई फिल्में ऑफर हुई I 

अमरेश पुरी का सबसे धमाकेदार करियर बॉलीवुड के खलनायकों के किरदारों में था। उन्होंने कई फिल्मों में शैतानी भूमिकाओं को निभाया, जैसे कि ‘मोगाम्बो’ (मिस्टर इंडिया), और ठाकुर दुर्जन सिंह’ (करण अर्जुन) जैसे सुपरहिट फिल्मों में काम किया I उनका अभिनय और भौतिक सौंदर्य उन्हें सिनेमा में एक अद्वितीय स्थान पर ले आए। उन्होंने अपने विशेष अंदाज और भौतिक सौंदर्य के साथ गहराई और विविधता से अपने अदाकारी के छाप को दर्शकों के दिल में बसा दिया I 

अमरीश पुरी का फिल्मी करियर सिर्फ बॉलीवुड तक ही सीमित नहीं है, उन्होंने हॉलीवुड में भी अपने अदाकारी की छाप छोड़ी है I उन्होंने साल 1982 में निर्देशक रिचर्ड एटनबरो की फिल्म “गांधी” में उन्होंने “मोहम्मद जिन्ना” का किरदार अदा किया था, और साल 1984 में हॉलीवुड के मशहूर डायरेक्टर “स्टीवन स्पीलबर्ग” की इंग्लिश फिल्म “इंडियाना जोन्स एंड द टेंपल ऑफ़ डूम” में मोलाराम का किरदार बहुत अच्छे से निभाया था, और इस फिल्म में उन्होंने अपने सर के बालों को भी काटा था, वह टकले हो गए थे, और इसी कारण उनका किरदार चर्चा का विषय बना हुआ था, और इस फिल्म के बाद उन्होंने अपना सर हमेशा गंजा रखने का फैसला किया, जिसकी वजह से उन्हें बहुत सी फिल्मों में खलनायक के रोल ऑफर मिले I 

अमरीश पुरी ने अपने जीवन में 300 से ज्यादा फिल्में की है, और इनमें से डायरेक्टर शेखर कपूर की बनी फिल्म “मिस्टर इंडिया” में “मोगाम्बो’ खुश हुआ” मोगाम्बो के किरदार ने उनकी कामयाबी आसमान तक पहुंचाई थी, और आज भी लोग बहुत पसंद करते हैं I मिस्टर इंडिया में श्रीदेवी और अनिल कपूर लीड रोल में थे और इस फिल्म में सबसे अहम किरदार एक विलन का यानी मोगाम्बो का था I जब यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर रिलीज हुई, तब इस फिल्म ने सारे रिकॉर्ड तोड़ डालें और बॉक्स ऑफिस पर धूम मचा दी I इस फिल्म में हीरो से ज्यादा विलन ने तारीफें बटोरे, अमरीश पुरी को मोगाम्बो से पूरे फिल्म इंडस्ट्री में एक नई पहचान मिली I इसके बाद उन्होंने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा और एक से बाढ़ एक हिट फिल्में फिल्म इंडस्ट्री को दिए I 

ज्यादा तर तो अमरीश पुरी ने फिल्मों में निगेटिव रोल ही किया है,  लेकिन कुछ फिल्मों में उन्होंने पॉजिटिव रोल भी किया है जैसे की, DDLJ, ढाई अक्षर प्रेम के, गर्व, घतक, चाइना गेट, मुझसे शादी करोगी, हलचल यह फिल्में शामिल है, अमरीश पुरी साहब की आखिरी फिल्म “कृष्णा” थी जो 2005 में आई थी I 

अमरीश पुरी अपने फिल्मों में हीरो से ज्यादा फिस लिया करते, हर फिल्म में विलन का किरदार निभाने वाले अमरीश पुरी एक फिल्म में काम करने के लिए एक करोड़ से ज्यादा फीस लेते, उस वक्त एक करोड रुपए यह बहुत बड़ी रकम थी I अमरीश पुरी साहब ने अपने फ़िल्मी करियर में हिंदी के अलावा इंग्लिश, मराठी, पंजाबी, तेलुगू, कनाडा ऐसे बहुत से भाषाओं में उन्होंने काम किया I अमरीश पुरी साहब ने अपने जबरदस्त खलनायक के एक्टिंग के बदौलत फिल्म इंडस्ट्री में अपनी ऐसी जगह बनाई थी, जिसे शायद किसी दूसरे खलनायक बना पाता I जब भी फिल्मों में खलनायकों की बात आती है तो सबसे पहले अमरीश पुरी साहब का ही जिक्र होता है I

72 साल के उम्र में अमरीश पुरी साहब “ब्रेन ट्यूमर” इस खतरनाक बीमारी के वजह से 12 जनवरी 2005 को उनका निधन हुआ, और बॉलीवुड इंडस्ट्री से एक दिग्गज खलनायक अलविदा कहकर चले गए,  लेकिन उनकी फिल्मों में की गई अद्वितीय भूमिकाओं के लिए उन्हें हमेशा याद किया जाएगा।

यह थी दोस्तों बॉलीवुड इंडस्ट्री के दिग्गज खलनायक उर्फ {मोगाम्बो} अमरीश पुरी साहब के जीवन का परिचय I

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