एक मामूली गैरेज में मोटर मैकेनिक का काम करने वाला शख़्स कैसे इंटरनेशनल अवार्ड अपने नाम किया…

आज हम जानेंगे एक ऐसी शख्सियत के बारे में जो एक मामूली गैरेज में मोटर मैकेनिक का काम करने वाला शख़्स  कैसे international Awards अपने नाम किया, शायरी और संगीत में कामयाबी हासिल कर के ना सिर्फ हिंदुस्तान के अवार्ड बल्कि इंटरनेशनल अवार्ड भी अपने नाम किए हैं, फिल्मों में कामयाबी मिलने से पहले इनका वक्त बहुत ही गरीबी, बेबीसी, और मुफलिसी में बीता, इसके चलते इन्होंने कई सालों तक एक मामूली गैरेज में मोटर मैकेनिक का काम किया I किसी ने इन्हें अल्फाज का जादूगर कहा तो किसी ने शायरी का बेताज बादशाह, किसी ने इन्हें रोमानी गीतकार कहकर पुकारा, तो किसी ने एक रचनात्मक डायरेक्टर I पिछले कई दशकों से लाखों हजारों आशिकों ने इनके लिखे जादू भरे शायरी से अपने प्यार का इजहार किया, हजार नहीं लाख नहीं बल्कि करोड़ो चाहने वालों ने उनके नगमे और शायरी को सुनकर अपनी भूली बिसरी मोहब्बत को याद कर आंसुओं में भी डूबते रहे I लेकिन इनकी पहचान सिर्फ एक शायर या गीतकार की नहीं रही, बल्कि इन्हें एक संजीदा डायलॉग राइटर और क्रिएटिव फिल्म मेकर की पहचान भी मिला I 

   हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में यह एकमात्र ऐसे शख्स है जिन्होंने 22 बार फिल्म फेयर का अवॉर्ड अपने नाम किया, इसी के साथ 6 बार नेशनल अवार्ड जीत कर अपने कामयाबी और काबिलियत का डंका बजाया I इन्होंने पद्म भूषण और फिल्मी दुनिया के सबसे बड़े सम्मान दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया, और इसी के साथ हिंदुस्तान के पहले ऐसी शख्सियत है जिन्होंने International Oscar Award, और Grammy Awards अपने नाम कर विश्व पटेल पर हिंदुस्तान का परचम लहराया I तो आज हम जानेंगे की कैसे एक मोटर मैकेनिक के शायर बनने की अकल्पनीय कहानी, क्यों ऐसा जहीन और संजीदा शायर की निजी जिंदगी कंट्रोवर्सी से भरी रही, और इन पर अपनी पत्नी को जानवरों की तरह मारने जैसे गंभीर इल्जाम भी लगे I 

आज हम जिस शख्सियत के बारे में जानेंगे वह है एक बेमिसाल कलाकार, हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में सबसे मशहूर शायर और संगीतकार गुलजार साहब के निजी जिंदगी के बारे में, यह एक ऐसे शख़्स है जो पिछले कई दशकों से कागज पर कलम से अपने दिल के जज्बात कुछ इस अंदाज में उतरते आ रहे हैं कि मानो जैसे अल्फाजों का विशाल संसार घडाना चाहते हो I कई दशकों से मैं और आप गुलजार साहब के लिखे हुए बेमिसाल गीत सुनते आए हैं, जो सीधे दिल तक पहुंचाते हैं, एहसासों को आवाज देती हुई कविताएं हो या किसी बच्चे की ख्वाहिश को शब्द देते गीत हो, जैसे कि “जंगल जंगल बात चली है पता चला है चड्डी पहन के फूल खिला है” कविताएं I आज तक गुलजार साहब के बहुत से रूप, उनका टैलेंट देखने को मिला, फिर चाहे वो 1960 और 70 के दशक के इनके संजीदा गीत हो या फिर आज के दौर के नटखट गाने इनके कलाम के सहाई ने खूब रंग बदले I 

   हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के मशहूर शायर और गीतकार गुलजार साहब जिनके लिखे हुए शायरी की सारी दुनिया दीवानी है, गुलजार साहब का जन्म 18th अगस्त 1934 को पंजाब के देना प्रांत में हुआ था, हिंदुस्तान पाकिस्तान के बंटवारे के बाद अब यह इलाका पाकिस्तान में है, जन्म के बाद मां-बाप ने इनका नाम रखा संपूर्ण सिंह कालरा, इनके पिता का नाम था माखन सिंह कालरा, और मां का नाम सुजान कौर I बचपन से ही संपूर्ण सिंह कालरा उर्फ गुलजार साहब को किताबें पढ़ने का बड़ा शौक था, यह 13 साल के थे तब हिंदुस्तान और पाकिस्तान का बंटवारा हुआ, और देश बेहद सांप्रदायिक दंगों के चपेट में आ गया, बहुत ही मुश्किलों के बाद उनके पिता किसी तरह से अपने परिवार को लेकर पाकिस्तान से दिल्ली आ गए, और यहां के स्कूल में गुलजार साहब का एडमिशन कराया, यहां यह आर्ट ऑफ फैकल्टी के स्टूडेंट थे I इस स्कूल में गुलजार साहब ने 1 साल पढ़ाई की, क्योंकि बंटवारे के बाद उनकी घर की माली हालत ठीक नहीं थी, इसीलिए उनके पिता ने इन्हें अपने बड़े भाई के पास मुंबई भेज दिया I

  मुंबई आने के बाद गुलजार साहब ने खालसा कॉलेज में एडमिशन लिया, और फिर से अपनी पढ़ाई शुरू की पढ़ाई के साथ गुलजार साहब ने एक गैरेज में काम भी करने लगे, जिससे यह अपना खर्चा खुद उठा सके, गुलजार साहब इस गैरेज में एक्सीडेंटल कारों को रिपेयर करके उन पर कलर करने का काम करते थे I गुलजार साहब को अपना यह काम बेहद पसंद था, क्योंकि कारों का कलर सूखने में थोड़ा वक्त लगता था और यह उतने ही वक्त में अपने मन पसंद किताब पढ़ते थे, यह अपने तनख्वाह से पैसे बचाकर किताबें खरीदते थे, और जिस दिन गैरेज में काम नहीं होता तब अपना वक्त पढ़ाई में लगाते I तनख्वाह काफी कम होने की वजह से गुलजार साहब को एक और काम करना पड़ता, फिर किसी वजह से गुलजार साहब का कॉलेज छूट गया, उसी इलाके में एक ऐसे लाइब्रेरी थी जहां बेशुमार किताबें पढ़ने को मिलते थे, और गुलजार साहब ने यहां रखी हुई लगभग हर किताब पढ़ डाली थी I

गुलजार साहब की इस आदत से उस लाइब्रेरियन भी परेशान हो गया था, फिर तंग आकर लाइब्रेरियन ने गुलजार साहब को एक मोटी सी किताब पढ़ने को दे दी और कहा कि यहां दोबारा मत आना, पर उस लाइब्रेरियन को अंदाजा नहीं था, कि गुस्से में जो किताब उन्होंने गुलजार साहब को थमाई थी, उस किताब के बदौलत गुलजार साहब की जिंदगी बदलने वाली है I उस किताब का नाम था “The Gardener” यह एक कविता संग्रह की किताब थी, जिसे महान लेखक Guru Rabindranath Tagore ने लिखा था, इस किताब को पढ़ने के बाद गुलजार साहब का सोचने, समझने और किताबें पढ़ने का नजरिया बदल गया I फिर किसी तरह से उन्होंने रविंद्रनाथ टैगोर और दूसरे बड़े लेखकों की किताबें हासिल कर पढ़ना शुरू किया, और साथ ही बंगाली भाषा से भी उन्हें लगाव हुआ, और बंगाली किताबें भी पढ़ना शुरू किया I 

   फिर धीरे-धीरे गुलजार साहब उस दौर में होने वाले मुशायरो और कविता कार्यक्रमों में के बारे में जब पता चला तो वो मुशायरा और कविताएं सुनने जाने लगे, इसी बीच जब गुलजार साहब के माता-पिता को यह पता चला कि उनका बेटा लेखक बनना चाहता है, तब उन्होंने गुलजार साहब को खूब डाटा कहने लगे की परिवार की आर्थिक स्थिति खराब है और तुम लेखक बनना चाहते हो, पर उससे तुम्हारी क्या कमाई होगी I गुलजार साहब ने अपने घर वालों की बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया वह उनकी बातों को उनकी डाट को नजरअंदाज करते हुए,अपने फैसले पर कायम रहे, और घरवालों को इस बारे में पता ना चले इसके लिए उन्होंने एक तरकीब निकाली, जब लिखना शुरू किया, तब बतौर लेखक अपना नाम Gulzar Dinvi लिखने लगे, एक छुपा हुआ नाम ऐसा बहुत से लेखकों ने किया है I 

  इस तरह से एक मोटर मैकेनिक संपूर्ण सिंह कालरा अब बन गए थे शायर और लेखक गुलजार I गुलजार साहब को अपने बाकी भाइयों को पढ़ाई करता देख खुद पर तरस आ रहा था, क्योंकि लाख किताबें पढ़ने और लिखने के बावजूद भी उन्हें अशिक्षित महसूस हो रहा था, फिर काफी कोशिश करने के बाद इन्हें एक कॉलेज में एडमिशन मिल गया, फिर गुलजार साहब ने अपना ग्रेजुएशन कंप्लीट किया I उस दौर में हर इतवार को मुंबई में राइटर एसोसिएशन मीटिंग होती थी, और गुलजार साहब हर मीटिंग में हिस्सा जरूर लेते थे, जिससे इन्हें इस फील्ड में आगे बढ़ाने का रास्ता मिल सके, ताकि खुद को और ज्यादा तराश सके I राइटर एसोसिएशन की मीटिंग में ही गुलजार साहब की पहचान सलाल चौधरी और शैलेंद्र जैसे फिल्म इंडस्ट्री के नामी लोगों से हुई, और इसी पहचान के जरिए गुलजार साहब को बतौर गीतकार का पहला ब्रेक भी मिला I 

   साल 1963 में उस दौर के मशहूर डायरेक्टर विमल राय अपनी फिल्म “बंदनी” में मसरूफ थे, फिल्म को संगीत S.D. बर्मन दे रहे थे, इसके गीत लिख रहे थे शैलेंद्र, इस फिल्म के गाने लिख चुके थे, पर S.D.बर्मन और शैलेंद्र के बीच किसी बात को लेकर झगड़ा हो गया, शैलेंद्र ने बंदिनी फिल्म छोड़ दी I जब यह बात फिल्म इंडस्ट्री में फैली तो गुलजार साहब के एक दोस्त ने विमल राय को गुलजार साहब का नाम सजेस्ट किया, पर विमल राय का दिल नहीं मान रहा था, उन्हें लग रहा था कि एक पंजाबी लड़का वैष्णव गीत कैसे लिख पाएगा, इस बात पर गुलजार साहब ने कहा कि वह फिल्म के लिए नहीं साहित्य के लिए लिखना चाहते हैं, जिसने गुलजार साहब का नाम सुझाव किया था, उसी दोस्त ने कहा कि यह बंगाली की अच्छी जानकारी रखता है, तब विमल राय ने गुलजार साहब को S.D. बर्मन के पास भेजा I 

गुलजार साहब जब बर्मन साहब से मिले तब इन दोनों की जोड़ी खूब जमीं फिर दोनों ने मिलकर फिल्म बंदिनी के लिए अपना पहला गाना लिखा, जिसे वाकई में कमाल कर दिया, उस गाने के बोले थे “मोरा गोरा रंग लेले, मोहे शाम रंग दे दे” साल 1963 में यह फिल्म रिलीज हुई, इस फिल्म में विमल दा को गुलजार साहब का काम इतना पसंद आया, कि उन्होंने अपने आने वाली फिल्में में गुलजार साहब को अपना असिस्टेंट बनने का प्रस्ताव दिया, और कहां की तुम इस तरह से फिल्मों का डायरेक्शन सीख लोगे, ये एक बहुत ही बढ़िया कला है, मैं बस इतना चाहता हूं की तुम वापस उस शोर मचाते हुए गैरेज में काम करने के लिए ना जाओ I गुलजार साहब बताते हैं कि इतने बड़े फिल्म डायरेक्टर के मुंह से ऐसी बातें सुनकर गुलजार साहब की आंखों में आंसू आ गए, फिर गुलजार साहब ने विमल दा का प्रस्ताव स्वीकार किया और उनके असिस्टेंट बन गए I

   विमल दा की दूसरी फिल्म “काबुलीवाला” में भी गुलजार साहब ने असिस्टेंट डायरेक्टर और सॉन्ग राइटर का काम किया, और इस फिल्म का टाइटल सॉन्ग “काबुलीवाला” भी गुलजार साहब ने ही लिखा, उसके बाद एक के बाद एक कई फिल्मों में गुलजार साहब ने विमल दा के साथ काम किया, और साथ ही दूसरे फिल्म मेकर्स के लिए भी धीरे-धीरे दर्जनों गीत लिखने शुरू किया I जिनमें से ज्यादातर गीत सुपर हिट रहे, जिसमें 1969 की फिल्म “खामोशी” के गाने को कौन भूल सकता है,1971 की फिल्म “गुड्डी” में लिखा प्रेयर की तो कोई तुलना ही नहीं, आज भी हिंदुस्तान के कई स्कूलों में सुबह के वक्त प्रार्थना के तौर पर यह गीत को गया जाता है “हमको मन की शक्ति देना” I  

   उसके बाद गुलजार साहब सिर्फ फिल्म के गाने नहीं बल्कि फिल्म की स्क्रिप्ट भी लिखने लगे, आगे चलकर यह उस दौर के मशहूर फिल्म डायरेक्टर ऋषिकेश मुखर्जी के साथ गीत और स्क्रिप्ट लिखने शुरू किया, फिर धीरे-धीरे गुलजार साहब फिल्म के डायलॉग भी लिखने लगे, और वह भी धमाकेदार अंदाज में और डायलॉग भी ऐसे की जो एक बार सुने बस बार-बार दोहराता जाए I जब “आनंद” फिल्म में इनके लिखे डायलॉग और गीतों ने पर्दे पर धूम मचा दी थी, जिसके लिए इन्हें बेस्ट डायलॉग राइटर के लिए फिल्म फेयर का अवार्ड भी मिला, तब गुलजार साहब को लगा कि अब इनका स्ट्रगल रंग लाया है, और उनके कलाम को वास्तविक रंग मिला है I

अब तक गुलजार साहब फिल्मों में लेखक के तौर पर पूरी तरह से स्टेब्लिश हो चुके थे, और दर्जनों फिल्म मेकर उनके घर के चक्कर लगा रहे थे I विमल दा के साथ गुलजार साहब ने काफी लंबे वक्त तक उनके असिस्टेंट डायरेक्टर के तोर पर काम किया था, अब वक्त था उनके खुद के डायरेक्टर बनने का, और साल 1971 में गुलजार साहब ने पहली बार फिल्म “मेरे अपने” डायरेक्टर की, मीना कुमारी जैसी मशहूर अदाकारा के साथ काम करने की वजह से इस फिल्म का वजन बढ़ गया, विनोद खन्ना, शत्रुघ्न सिन्हा यह दोनों ही तब नए कलाकार थे, और गुलजार साहब ने इन दो नए चेहरों को अपने फिल्म में कास्ट किया था I 

   इस फिल्म के बाद साल 1972 में गुलजार साहब एक और फिल्म डायरेक्टर कि वह थी “परिचय”, जो की एक क्लासिक फिल्म साबित हुई, इस फिल्म में अदाकार जितेंद्र अदाकारा जया भादुरी, प्राण नाथ और संजीव कुमार जैसे दिग्गज कलाकार मुख्य किरदार में शामिल थे, यह फिल्म एक गुरु और उसके शिष्य के बीच के रिश्तों पर आधारित एक शानदार फिल्म साबित हुई I इसी साल गुलजार साहब ने एक ऐसी फिल्म बनाई, जिसे शारीरिक रूप से किसी कमजोरी का सामना करने वाले लोगों के संघर्ष पर बनी, आज तक की सबसे बेस्ट फिल्म मानी जाती है, यह फिल्म थी “कोशिश”, के अदाकार और अदाकारा को मूक बधिर दिखाया गया था, जो आंखों से संवाद करते हैं I 

   साल 1973 में अपने छवि से सबसे हटकर गुलजार साहब ने एक थ्रिलर फिल्म बनाएं, वह फिल्म थी “अचानक” जिसमें एक सिपाही एक गैर मर्द के साथ अपने पत्नी के नाजायज संबंध को जानकर उसका कत्ल कर देता है, गुलजार साहब ने इसे सिर्फ 28 दिन में बनाया था I अपने काम के प्रति गुलजार साहब कितने ईमानदार रहे गीतकार होने के बावजूद भी उन्होंने इस थ्रिलर फिल्म में एक भी गाना नहीं रखा, क्योंकि यह स्क्रिप्ट इस बात की इजाजत नहीं देती थी I साल 1975 में गुलजार साहब द्वारा लिखि और निर्देशित की गई फिल्म “मौसम” रिलीज हुई, मौसम इस फिल्म के लिए गुलजार साहब को बतौर निर्देशक फिल्म फेयर अवार्ड से नवाजा गया, और सर्वश्रेष्ठ राष्ट्रीय उसका भी गुलजार साहब ने अपने नाम किया I

साल 1975 में ही एक और फिल्म डायरेक्टर की “खुशबू” शरद चंद्र चट्टोपाध्याय की कहानी पंडित महाशय पर आधारित थी, फिल्म में लीड रोल में थे, जितेंद्र और ड्रीम गर्ल हेमा मालिनी और सारिका, इसके संवाद और पटकथा भी गुलजार साहब ने ही लिखे, जिसकी तासीर बेहद मार्मिक थी I साल 1975 में ही एक और फिल्म आई “आंधी” जो हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की अब तक की सबसे बेहतरीन फिल्मों में से एक माना जाता है, और हिंदुस्तान के फिल्म इतिहास में अपना एक खास मुकाम रखती है, इस फिल्म के लिए गुलजार साहब को फिल्म फेयर का सर्वश्रेष्ठ निर्देशक के श्रेणी में नामांकित किया गया, इसमें संजीव कुमार, सुचित्रा सेन, रहमान और ओमप्रकाश ने मुख्य किरदार निभाए I उस दौर में यह फिल्म विवादों में भी फंसी थी, क्योंकि इल्जाम लगाया गया कि ये कहानी उस दौर के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री इंदिरा गांधी जी के जीवन से प्रेरित है I  

   गुलजार साहब ने 1982 में अदाकार संजीव कुमार, अदाकारा मौसमी चटर्जी, और देवेंद्र वर्मा को लेकर एक फिल्म बनाई “अंगूर”, जो शेक्सपियर के एक कहानी पर आधारित एक बेहतरीन कॉमेडी फिल्म साबित हुई, हिंदी सिनेमा में मुख्य रूप से एक्शन फिल्मों का बोलबाला था, तब 1987 में प्यार रिश्ते और धोखे के ऊपर गुलजार साहब ने एक फिल्म “इजाजत” बनाई, इस फिल्म में लीड रोल निभाए थे, अदाकार नसीरुद्दीन शाह, एवरग्रीन ब्यूटी रेखा, और अदाकारा अनुराधा पटेल ने, मानवी रिश्ते की जेहनी पड़ताल करने का गुलजार साहब को कमल का हुनर था, जो की “इजाजत” इस फिल्म में उभर कर नजर आया, इस फिल्म के एक गीत लिए गुलजार साहब को फिल्म फेयर का अवार्ड भी मिला, उसे क्रिटिक्स द्वारा बेहतरीन से भी बेहतर गीत कहा गया, गुलजार साहब ने इसमें रिश्ते की पड़ाव को एक शानदार तरीके से पर्दे पर उतारा, इस गाने में आशा भोसले की खनकती आवाज, राहुल देव बर्मन का म्यूजिक गुलजार साहब के इस तिगड़ी ने इस गाने को अमर कर दिया I 

1990 में आई फिल्म “लेकिन” गुलजार साहब के प्रमुख फिल्मों में से एक फिल्म मानी गई, इस फिल्म में विनोद खन्ना, अमजद खान अदाकारा डिंपल कपाड़िया ने लीड रोल निभाया, इस फिल्म का गाना “ओ यारा सिली सिली” के लिए गुलजार साहब को राष्ट्रीय पुरस्कार और फिल्म फेयर अवार्ड इन दोनों से सम्मानित किया गया, सब मिलकर “लेकिन” इस फिल्म को पांच पुरस्कार मिले थे I इसके बाद साल 1996 में गुलजार साहब के निर्देशन में एक और फिल्म बनी “माचिस”, इस फिल्म में गुलजार साहब ने बहुत ही सेंसिटिव मुद्दे को पर्दे पर दिखाकर हर किसी को हैरान कर दिया, फिल्म में चंद्रचूड़ सिंह, अदाकारा तब्बू, जिमी शेरगिल, ओम पुरी, कुलभूषण खरबंदा जैसे कलाकार लीड रोल में थे I इस फिल्म की कहानी 1980 के दशक में पंजाब में उग्रवाद और आतंकवाद की पृष्ठभूमि पर आधारित है I 

   साल 1999 में बतौर निर्देशक गुलजार साहब की आखिरी फिल्म “हू तू तू”आई, इस फिल्म में अदाकारा तब्बू, अन्ना सुनील शेट्टी, और नाना पाटेकर ने मुख्य किरदार निभाए, यह फिल्म भारतीय राजनीति और भ्रष्टाचार के जटिल मुद्दों पर प्रकाश डालती है। गुलजार साहब ने कोई और फिल्म नहीं बनाई, 70 के दशक में तो गुलजार साहब बतौर निर्देशक के रूप में बहुत सक्रिय और कामयाब रहे, 80 के दशक में इनका फिल्म बनाना काम हो गया, 80 के दशक में फिल्मों का स्थर काफी गिरने लगा था, और उसी के साथ दर्शकों की चॉइस भी बदलने लगी थी I लिहाजा निर्माता लीक से हटकर बनाने वाली फिल्मों पर पैसा लगाने में हिचकने लगे, साल 1982 में गुलजार साहब के निर्देशन में बने फिल्म “नमकीन” और 1987 की “इजाजत” बहुत ही मुश्किलों से रिलीज हो पाई थी, 1991 में लता मंगेशकर के लिए बनाए गए फिल्म “लेकिन” असफल रही थी I 

   इसके बाद राज बब्बर, नसरुद्दीन शाह और शबाना आजमी को लेकर बनाई गई फिल्म “लिबास” तो हिंदुस्तान में रिलीज ही नहीं हो पाई थी, फिल्मों के अलावा गुलजार साहब ने दूरदर्शन पर भी कई मशहूर शो डायरेक्ट किया, जैसे की 1998 में “मिर्ज़ा ग़ालिब”, उसके कुछ साल बाद 2004 में “तहरीर मुंशी प्रेमचंद की” जिसे दर्शकों ने काफी पसंद भी किया I अगर गुलजार साहब के फिल्मों पर ध्यान दे तो इनकी ज्यादातर कहानी साहित्य से ही जुड़ी होती थी, एक्सपर्ट के माने तो गुलजार साहब पर डायरेक्टर विमल राय, बासु भट्टाचार्य, और ऋषिकेश मुखर्जी जैसे डायरेक्टर का असर रहा, इन महान निर्देशकों ने मिडल पथ सिनेमा का ही निर्माण किया था I इनके फिल्मों में गंभीर बातों को सरल मनोरंजन और दिल को छू लेने वाले जैसे अंदाज में पेश करते थे, और यही बातें गुलजार साहब के फिल्मों में भी देखने को मिलते थे I

तो वही गुलजार साहब ने अपनी ज्यादातर फिल्में अदाकार संजीव कुमार, जितेंद्र, विनोद खन्ना, अदाकारा हेमा मालिनी, और जया भादुरी के साथ ही बनाई, इन कलाकारों को यादगार किरदार दिए, और उनकी फिल्मों में ज्यादातर गानों को संगीत R.D. बर्मन साहब ने दिया, लता मंगेशकर,आशा और किशोर कुमार जैसे गायको ने अपनी आवाज दी I फ्लैशबैक के जरिए से कहानी को स्क्रीन पर पेश करना यह गुलजार साहब की खासियत रही, अपने संजीदा फिल्मों से जहां गुलजार साहब ने दर्शकों का मनोरंजन किया, तो वहीं उन्हें सोचने पर भी मजबूर किया, इनमें से ज्यादातर फिल्में आज भी दर्शक काफी पसंद करते हैं, और वह ब्लॉकबस्टर माने जाते हैं I 

   गुलजार साहब ने “आनंद”, “मेरे अपने”, “ओमकारा” जैसी कई और फिल्मों में गुलजार साहब ने खुद काम किया है, डायरेक्टर पद से संन्यास लेने के बाद गुलजार साहब ने अपने गीतों, शायरी और कविताओं के साथ अपने लेखक के सफ़र को जारी रखा, और बॉलीवुड के सैकड़ो फिल्मों के लिए गाने भी लिखते रहे, जिनमें उनकी खास फिल्में साल 1998 की फिल्म “दिल से” इस फिल्म के गानों को दर्शकों ने खूब पसंद किया, उन्हें खूब लोकप्रियता मिली I साल 2005 में “बंटी और बबली” के लिए लिखे हुए गुलजार साहब के गानों ने खूब धूम मचाई, इसके बाद साल 2006 की फिल्म “ओमकारा” के गाना को भी लोगों ने खूब पसंद किया, साल 2007 की फिल्म “गुरु” के गानों को कोई कैसे भूल सकता है, और इसी के साथ साल 2008 की फिल्म “स्लमडॉग मिलेनियर” के लिए तो गुलजार साहब को इंटरनेशनल ऑस्कर अवार्ड और ग्रैमी अवार्ड से सम्मानित किया गया, और हिंदुस्तान का परचम इंटरनेशनल लेवल पर भी लहराया गया I साल 2009 में आई फिल्म “कमिने” भी गानों के हिट लिस्ट में शामिल रहे I 

   हिंदुस्तान के साथ ही गुलजार साहब ने पाकिस्तान का शो “शहरयार शहजादी” के लिए भी एक गाना लिखा था, गुलजार साहब मुख्य रूप से उर्दू और पंजाबी लिखते रहे, लेकिन इसके अलावा और भाषा जैसे बृज भाषा, खड़ी बोली, हरियाणवी और मारवाड़ी में भी कई रचनाएं की I गुलजार साहब की कविताओं के बात करें तो यह तीन संकल्प में प्रकाशित है, पुखराज, रात पशमीना की, पन्द्रह पाँच पचहत्तर, लघु कहानियां रावि पार, और धुआँ में प्रकाशित हुई है I हिंदुस्तान और पाकिस्तान के प्रमुख मीडिया घरानो के द्वारा संयुक्त रूप से शुरू किया, शांति अभियान “अमन की आशा” के लिए गुलजार साहब ने नजर में रहते हो ये गीता लिखा, और इस गीत को शंकर महादेवन और राहत फतेह अली खान ने अपनी आवाज में रिकॉर्ड किया था I 

  तो वही गुलजार साहब ने साल 1999 में गजल सम्राट जगजीत सिंह की एल्बम “मरासिम” और 2006 में “कोई बात चले” के लिए शानदार गजल भी लिखी I गुलजार साहब ने जहां बच्चों के लिए “किताब” यह फिल्म बनाई, इसी के साथ विशाल भारद्वाज के साथ “द जंगल बुक” “एलिस इन वंडरलैंड” “हेलो जिंदगी” और “पोटली बाबा की कहानी” जैसे कई दूरदर्शन शो के लिए गीत और संवाद भी लिखें, जो बच्चों के लिए इनका अमूल्य योगदान माना जाता है I हाल ही में गुलजार साहब ने बच्चों के लिए ऑडियो बुक श्रृंखला कराडी टेल्स के लिए लिखा और सुनाया है, और इसी के साथ चकमक पत्रिका के लिए भी कहानियां और कविताएं लिखी है I इसके अलावा भी गुलजार साहब के कई ऐसी रचनाएं है जिनका जिक्र करना काफी मुश्किल है I इनमें से उनकी लिखे हुए गीत, शेरो शायरी,कविताएं, नजम, कहानी और अंग्रेजी नोवल, ऑडियो बुक, कॉमिक्स, थिएटर और बायोग्राफी शामिल है I

   84 साल की उम्र में गुलजार साहब ने अपना पहला नोवल लिखा “दो लोग”, हिंदुस्तान पाकिस्तान के बंटवारे के दौरान की कहानी कहता यह नोवल बेहद चर्चित रहा, गुलजार साहब एक ऐसे फनकार रहे जिन्होंने अपने अंदर मौजूद कलाकार को अभिव्यक्त करने के लिए जिस भी माध्यम को चुना उसमें अपना एक मुकाम बना डाला I गुलजार साहब को मिले हुए अवार्ड और सम्मान की बात करें तो इन्होंने इतनी ज्यादा अवार्ड और पुरस्कार हासिल किए हैं, कि इन्हें एक पोस्ट में बताना काफी मुश्किल है, लेकिन उनके कुछ बड़े सम्मानों की बात करें, तो इनमें 6 नेशनल अवार्ड, 22 फिल्मफेयर अवार्ड, और एक  international oscar awards और Grammy Award शामिल है, साथ ही इसी गाने के लिए ग्रैमी अवार्ड भी मिला I मध्य प्रदेश सरकार से इन्हें राष्ट्रीय किशोर कुमार सम्मान, और उर्दू के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार गुलजार साहब को हासिल है, और इसी के साथ भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण पुरस्कार और सबसे बड़ा दादा साहेब फाल्के पुरस्कार भी गुलजार साहब अपने नाम कर चुके हैं I यानी शायद ही कोई ऐसा अवार्ड और सम्मान होगा जो उनके हाथों में सुसज्जित होने चुका हो, अप्रैल 2013 में गुलजार साहब को असम विश्वविद्यालय में सचिव यानी “चांसलर ऑफ असम यूनिवर्सिटी” के लिए भी नियुक्त किया गया था, जो की यह भी एक बड़ा सम्मान था I 

गुलजार साहब की निजी जिंदगी : 

  गुलजार साहब को बंगाली साहित्य, बंगाली भाषा और बंगाली संस्कृति से बेहद लगाव था, इसलिए इन्होंने अपना दिल भी एक बंगाली लड़की से ही लगाया, और वह थी उस जमाने की बंगाल की खूबसूरत और मशहूर अदाकारा राखी, राखी की पहली शादी हो चुकी थी और वह अपने पहले पति से तलाक लेकर अलग हो चुकी थी, साल 1972 में पहली बार राखी और गुलजार साहब की मुलाकात हुई थी, यह मुलाकात दोस्ती में बदल गई और कुछ वक्त के बाद दोस्ती प्यार में, और साल 15 मई 1973 में गुलजार साहब और राखी ने शादी कर ली I इसी साल यानी 1973 के दिसंबर में ही रखी और गुलजार साहब एक बेटी के माता-पिता बने, उसका नाम मेघना गुलजार रखा गया, बेटी के जन्म के बाद ही गुलजार साहब और राखी के बीच दूरियां आना शुरू हुई, और फिर एक ऐसी घटना घटी जिसने पूरी फिल्म इंडस्ट्री को हिला कर रख दिया I 

   दरअसल कश्मीर में “आंधी” फिल्म के शूटिंग के दौरान गुलजार साहब के साथ राखी भी अपनी बेटी को लेकर गई थी, और वही कश्मीर में दोनों पति-पत्नी के बीच जबरदस्त झगड़ा हुआ, की उस रात गुलजार साहब पर राखी को जानवरों की तरह पीटने का इल्जाम भी लगा, जिसे उस दौर के अखबारों ने बड़ा चढ़कर विस्तार से छापा I शादी के 1 साल बाद ही गुलजार साहब और राखी अलग हुए, पर दोनों ने कभी एक दूसरे से तलाक नहीं मांगा, पहले कुछ साल बेटी मां के साथ रही, बाद में जब दोनों के बीच मन मोटाव थोड़ा कम हुए, तब दोनों के सहमति से बेटी की कस्टडी गुलजार साहब को मिली I गुलजार साहब ने ही बेटी मेघना की परवरिश की, मां बाप के अलग होने के बावजूद भी बेटी को मां बाप दोनों का प्यार मिलता रहा, और पिता के नक्शे कदम पर चलते हुए मेघना गुलजार भी एक फिल्म डायरेक्टर और लेखिका बनी I 

  मेघना गुलजार ने कई बड़ी फिल्में बनाई है, जैसे की ‘राजी”, “फिलहाल” “तलवार” “10 कहानी” और “जस्ट मैरिड” जैसी नॉटेबल फिल्में शामिल है, भले ही गुलजार साहब और राखी अलग हुए हैं, और अलग होने के बाद भी दोनों ने किसी और से शादी नहीं की, दोनों ही बस अपने काम पर फोकस किया I सालों से आज तक हर छोटे बड़े मौके पर यह दोनों अपने बेटी के साथ नजर आते रहे, और हर त्यौहार साथ में मनाया जो अभी जारी है I गुलजार साहब खेल के बहुत शौकीन रहे, एक जमाने में यह बैडमिंटन खूब खेला करते थे, बाद में इन्हें क्रिकेट और टेनिस का भी शौक हुआ I यह आज भी हर रोज सुबह जल्दी उठते हैं और टेनिस खेलते हैं, गुलजार साहब आज भी अपने कार्य क्षेत्र में एक्टिव है, और साथ ही आरुषि नाम की संस्था से भी जुड़े हैं, जो एमपी भोपाल में एकलव्य फाउंडेशन है, यह शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाला गैर सरकारी संगठन है जो विकलांग बच्चों के लिए काम करता है I 

   गुलजार साहब की उम्र अब 87 साल हो चुकी है और यह अभी अपना पूरा वक्त पढ़ने लिखने में ही गुजरते हैं, आने वाले पीढ़ी के लिए गुलजार साहब एक प्रेरणा स्रोत की तरह है, जिससे कला की कई क्षेत्र में बहुत कुछ सीखा जा सकता है I बीते पांच दशक के बदलते समय को गुलजार साहब ने बखूबी समझा है और युवा पीढ़ी के नब्ज़ को भी पकड़ा है, इसीलिए इस उम्र के यह गीतकार आज भी नौजवान धड़कनों की जान है I “तेरी आंखों से ही खुलते हैं सवेरो के उफ़क, तेरी आंखों से ही बंद होती है यह सीत की रात, तेरी आंखें हैं या सजदे में गमगीन नमाजी” I एहसास को शिद्दत से बयां करती उनकी कविताएं और शायरी आज भी हर दिल अजीज है, हिंदुस्तान के सिनेमा और साहित्य को एक नई ऊंचाइयों पर पहुंचने वाले इस महान शख्सियत के प्रतिभा और कीर्ति को दिल से सलाम I गुलजार साहब आगे भी इसी तरह से अपने कलाम की धार को और लिख के इसी तरह से साहित्य और सिनेमा को गुलजार करते रहे I 

  तो यह थी दोस्तों मशहूर शायर, निर्देशक, लेखक अपनी शायरी से लाखों नौजवान दिलों की धड़कन बने गुलजार साहब दीनवी के जीवन का परिचय I 

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