एक ऐसा ससुराल जो बहू का खास ख्याल रखता है, क्यूँ के ?

एक ऐसा ससुराल जो बहू का खास ख्याल रखता है, क्यूँ के ? सॉरी मम्मी मुझे आज फिर लेट हो गया, मेरे जो नये बॉस हैं ना वो रोज़ ऑफिस छूटने के वक़्त वो बीस मिनट तक एक जरूरी मीटिंग रखते हैं I हर रोज बीस मिनट लेट होने के वज़ह से पांच बजे की बस छूट जाती हैं, मैं फटाफट से हाथ मुँह धोकर आप के लिए चाय ले कर आती हूँ ,और आप रहने दीजिये मैं किचन का सारा काम करती हूँ I आप बाहर आराम से बैठीये दिशा ऑफिस से आते ही अपनी सास निर्मला जी से कहती हैं I तू रुक पहले आराम से बैठ कर चाय, नाश्ता करले मैंने चाय बनाई है, उस के बाद संभालना अपना किचन मैंने दाल कुकर में चढाई हैं और आठा गूंध लिया है तू बस दाल को तडका लगाकर ,चावल और रोटी बना दे I 

     रितेश और उसके पापा भी अभी पहुँच ते ही होंगे, दिशा को चाय नाश्ता देते हुए निर्मला जी ने कहा मेरे तो नसीब ही खुल गए हैं ऑफिस से आते के साथ सासू माँ खुद चाय नाश्ता बना कर मुझे दे रहीं हैं, मैं तो चाहतीं हूँ, कि ऐसी सास तो मुझे हर जन्म में मिलें, चाय पीते हुए दिशा अपने आप से कह रही थी I इतने में दिशा के ससुर महेश जी भी आ जाते हैं, महेश जी सरकारी वकील थे, आप को आने मे बहुत देर हो गई है कहा गये थे ? निर्मला जी ने महेश जी से पूछा, दिशा ससुर जी को देखते ही फट से उठ कर उन्ह के हाथ से बॅग और टिफिन लेती हैं, और उन्ह के लिए चाय ,नाश्ता लाने के लिए चली गई I 

पापा जी चाय लीजिए दिशा ने कहा, दिशा तुम्हारे घर वालों से बात होतीं हैं ना और तुम्हारे घर पर सब ठीक चल रहा है ना, कोई परेशानी तो नहीं है ? महेश जी ने हीच किचाते हुए दिशा से पूछा फिर दिशा ने अपनी नजरे नीचे रखते हुए बोली, हां पापा सब ठीक है, “देखों बेटा अगर तुम्हारे मायके में कोई भी परेशानी या कोई बात है तो तुम मुझे बेफ्रिक हो कर बोल सकती हो आखिर हम भी तो तुम्हारा परिवार हैं, और अपनों से क्या छुपाना I दिशा एक बहुत अच्छे कम्पनी में इंजीनियर थी और उसका मायका भी उसके ससुराल से ज्यादा दूर नहीं है I दिशा के मायके में मम्मी पापा, दादी और एक छोटा भाई हैं, दिशा के शादी को सिर्फ़ छह महिने हो गए थे, और दिशा एक गरीब परिवार से थी I 

     दिशा के पिता जी एक सरकारी कम्पनी मे क्लर्क थे, दिशा देखने में बहुत सुन्दर और पढ़ी- लिखी, समझदार और संस्कारी लडकी थी निर्मला जी दिशा के मम्मी को बहुत अच्छे से पहचानते थे, इसलिए दिशा को उन्होंने अपने बेटे के लिए चुना और फिर रितेश और दिशा की शादी हो जाती हैं I दिशा गरीब  घर से हैं इस बात से, निर्मला जी के परिवार में किसी को भी कोई परेशानी नहीं थी I निर्मला और महेश जी दिशा को अपनी बेटी के जैसा प्यार करते थे, निर्मला जी कहतीं हैं कि आप बहू से ऐसा क्यूँ पूछ रहीं हो, की उस के मायके में कोई परेशानी हैं क्या ? उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया है I

महेश जी ने फिर से दिशा को बोला कि तुम्हारे मायके में कोई भी परेशानी हैं तो, बेफ्रिक हो कर तुम मुझे बता सकती हो मैं भी तो तुम्हारे पापा जैसा ही हूँ, लेकिन पापा आप बार बार ऐसा क्यूँ पूछ रहे हों ? दिशा ने कहा बेटा मैंने कल तुम्हारे पापा को कपड़े के दुकान में देखा वो क्या है ना काल हमारे सीनियर मेहता जी का पचास वा जन्म दिन हैं, वो मेरे बहुत अच्छे दोस्त हैं, “मैंने सोचा कि क्यों ना उन्हें तोहफ़े में एक अच्छा सा सूट दे दूं, इसलिये मैं कल सुट ख़रीदने गया तो मैं वहां तुम्हारे पापा को देखा वो ग्राहक को कपडे देखा रहें थे, शायद किसी बात पर दुकान के ओनर उन्ह पर गुस्सा कर रहे थे, मैं वही दुकान के दरवाजे के पास खडा था मैंने तुम्हारे पापा को देखा I 

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सलाम हैं ऐसी सास को…

   मुझे उन्ह का वहां काम करना बुरा नहीं लगा, लेकिन वो मुझे वहाँ देख लेते तो उन्हें बहुत बुरा लगता इसलिये मैं उन्ह से बीना मिले और सूट लिये बग़ैर ही चला आया, ताकि उन्हें पता ना चले कि मैंने उन्हें देख लिया है I लेकिन तुम्हारे पापा तो सरकारी ऑफिस क्लर्क की नौकरी करते थे ना क्या हुआ ? फिर दिशा  रोते हुए कहने लगी हाँ पापा जी मेरे पापा की सरकारी ऑफिस में क्लर्क की नौकरी थी, और घर भी अच्छे से चल रहा था मेरे पापा की पिछले दो महीने पहले नौकरी चली गई, पापा के ऑफिस में नये मैनेजर आए हैं और वो पापा को कम्पनी के  हिसाब-किताब में पैसों की हेरा फेरी करने को कहता I 

ताकि उन्ह पैसों का मैनेजर को फायदा हो सके, पापा अपना काम पुरे ईमानदारी से करते हैं, इसलिये उन्होंने अपना ईमान बेचना से मना कर दिया, और वो मैनेजर के इस हरकत के बारे में ऑफिस के सब लोगों को बताने वाले थे, लेकिन पापा सब को कुछ बता पाते उस से पहले ही मैनेजर ने झूठा इल्ज़ाम उन्ह पर ही लगा कर उन्ह को नौकरी से निकाल दिया I पापा ने मेरी शादी के लिए और मेरे छोटे भाई के पढ़ाई के लिए जो कर्जा लिया था, वो चुकाना था, और मेरे दादी के हर महीने के दवाइयों के लिए भी पैसे की जरूरत थी, और घर खर्च वो अलग पापा को नया काम ढूढ़ने मे पूरा एक महीना चला गया, उन्हें कोई भी काम नहीं मिला I

पापा के दोस्त का कपड़े का शोरूम हैं, पापा ने उन्ह से बात कर के वहाँ पर काम करने लगे,, पापा को वहाँ मजबुरी में काम करना पढ़ा I मैंने कई बार उनसे कहा भी की मैं आप की मदद करती हूँ लेकिन उन्होंने माना कर दिया यह कह कर की अब तुम्हरी शादी हो गई है, और मुझे तुमसे मदत लेना सही नहीं लगता, मम्मी भी घर पर कपड़े सिलाई का काम करती हैं, ताकि पापा की थोड़ी मदत हो जाये l दिशा ये सब कहते हुए बहुत रोने लगी तुम क्यूँ रो रही हो.. ये तो अच्छी बात है कि तुम्हारे मम्मी पापा मिल कर काम कर के अपना घर चला रहे हैं I 

  तुम अपने आप को अकेला मत समझो हम हैं तुम्हारे साथ और इस संडे को हम सब लोग उन्हसे मिल ने जाएंगे, तुम्हरी मम्मी पुरी भाजी बहुत अच्छी बनाती हैं, उन्ह से कहना कि पुरी भाजी बना कर रखे, हम सब लोग खाने आ रहे हैं, महेश जी ने अपने बहू को खुश करने के लिए कहा I फिर संडे को सब लोग दिशा के परिवार वालों से मिलने आते हैं, दिशा के मम्मी पापा अपने बेटी को देख कर बहुत खुश हो जाते हैं, सब लोग खाना खा कर आराम से बैठे थे, की तभी महेश जी ने कहा कि सुरेश जी शायद अपने हमें कभी भी अपना नहीं माना, इसलिये तो आप सारी परेशानियों से अकेले ही लढ रहे हो I

   लेकिन सुरेश जी ये बात हमेशा याद रखना की अब हम दो नहीं एक ही परिवार हैं, और सुख दुःख में हम आप के साथ हैं मुझे आप की इमानदारी पर पूरा भरोसा है, मेरे दोस्त के ज्वेलरी का बहुत बड़ा शोरूम हैं, और उन्हें अपने शोरूम के लिए एक भरोसेमंद और ईमानदार अकाउंटेंट की जरूरत है, मुझे इस काम के लिए आप सही लग रहे हो क्या आप ये जॉब करना चाहेंगे ? महेश जी ने बड़े आदर के साथ पूछा सुरेश जी के आंखे नाम हो गई और कहने लगे कि मेरी बेटी ने पिछले जन्म में जरूर कोई नेक काम किया होगा, तभी तो उसे आप  के जैसे अच्छे ससुराल वाले मिले हैं जो उस के साथ उस के मायके वालों का भी ध्यान रखते हैं I

   मेरी बेटी के तो नसीब खुल गए हैं, मुझे आपके दोस्त के यहा काम करने में कोई परेशानी नहीं हैं, आप का एहसान है मुझ पर आप को शुक्रिया कैसे अदा करूँ समझ नहीं आ रहा, इस में एहसान की कोई बात नहीं, क्यूँकी एहसानमंद तो हम आप के हैं आपने हमे बहुत समझदार, और संस्कारी बहू के रूप में बेटी दी है, और हाँ दिशा हमारी बहू से पहले आप की बेटी हैं, और इसे आप की मदद करने का पूरा हक्क हैं, और उस से ये हक्क आप नहीं छिन्न सकते, उसे आप अपनी मदद करने करने दीजिए, महेश जी ने सुरेश जी के कांदे पर हाथ रखते हुए कहा I ये सब देख कर दिशा रोने लगी लेकिन ये आंसू दुःख के नहीं ब्लकि खुशी के थे I 

दोस्तो शादी सिर्फ़ दो लोगों की नहीं बल्कि, दो परिवारों की होती है, इसलिये दोनों परिवार को एक दूसरे के सुख दुःख में साथ खड़ा होना चाहिए I 

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