ऐसा क्या हुआ कि इस कल्ट क्लासिक फिल्म के दौरान मीना कुमारी की मौत हो गई, एक ऐसी फिल्म जिसे हिंदी सिनेमा जगत में कल्ट क्लासिक फिल्म करार दिया गया, और भारतीय सिनेमा के इतिहास की मास्टर पीस कहा गया, और एक ऐसी आईकॉनिक कृति जिसे पर्दे पर उतरने के लिए 16 साल का लंबा वक्त लगा और उसने लाखों दर्शकों के दिलों में अपनी जगह बनाई I इस फिल्म के कहानी से ज्यादा मजेदार है इसके बनने की अनोखी दास्तान, लेकिन इस फिल्म के बनने के दौरान ही इस फिल्म की लीड अदाकारा मीना कुमारी और इस फिल्म के निर्देशक कमल अमरोही के बीच जबरदस्त झगड़ा हुआ, और उन दोनों के बीच तलाक हुआ I “पाक़ीज़ा” फिल्म में काम करने के दौरान मीना कुमारी लिवर से जुड़ी हुई खतरनाक बीमारी से लड़ रही थी, सेट पर डांस करने के दौरान वह कई बार बेहोश हो गई, और पूरा सेट खून से भर गया था, और इस फिल्म के डायरेक्टर कमल अमरोही हर हाल में इस फिल्म को पूरा करना चाहते थे, और इसीलिए उन्होंने अपने बीमार पत्नी से फिल्म में काम करवाया, और फिल्म रिलीज होने के 2 महीने बाद ही बीमारी के चलते मीना कुमारी का निधन हो गया I
अपने दौर की मशहूर ट्रेजेडी क्वीन अदाकारा मीना कुमारी ने इस फिल्म में बगैर किसी फीस के काम किया, और जब वो अस्पताल में एडमिट अपना इलाज करवा रही थी, उस वक्त उनके पति मशहूर डायरेक्टर कमल अमरोही ने उनके इलाज के लिए पैसे देने से साफ इनकार कर दिया, और मीना जी के निधन के बाद उनके कफन के लिए भी पैसे नहीं थे I हिंदी फिल्म इतिहास की कल्ट क्लासिक फिल्म “पाक़ीज़ा” इसके ब्लॉकबस्टर होने के पीछे तीन वजह थी, 1} एक तवायफ की जिंदगी पर बनी इस फिल्म में मीना जी का शानदार अभिनय 2} इस फिल्म के सुपर हिट गाने 3} इसके निर्देशक कमल अमरोही का निर्देशन जबरदस्त था I “पाक़ीज़ा” इस फिल्म को रिलीज हुए 50 साल पूरे हो चुके हैं I
फिल्म एक्सपर्ट बताते हैं कि जब फिल्म “पाक़ीज़ा” की शूटिंग शुरू हुई, उस वक्त इस फिल्म के डायरेक्टर कमल अमरोही और इसकी मुख्य अदाकारा मीना कुमारी जी के बीच बे इंतेहा मोहब्बत थी, और वह दोनों दो जिस्म एक जान थे, इस फिल्म को बनने में 16 साल का लंबा वक्त लगा और इन 16 सालों में बहुत कुछ बदल चुका था I प्यार तकरार में बदल गया, और शादी तलाक तक आ पहुंची, चांद पर आशियाना तो दूर मीना जी कमल का घर छोड़ अलग रहने लगी थी I आखिर क्यों “पाक़ीज़ा” फिल्म को Cult Classic फिल्म कहा गया, और क्यों आज भी इस फिल्म की चर्चा होती रहती है I
पाक़ीज़ा यानी पवित्र और Pure फिल्म में यह अल्फाज मीना कुमारी जी के किरदार के लिए इस्तेमाल किया गया है, जो एक कोठे पर काम कर अपनी जिंदगी गुजर रही है, एक नेक दिल तवायफ की जिंदगी उसकी मोहब्बत और रुसवाईयूं की कहानी है फिल्म “पाक़ीज़ा” I हिंदुस्तान में तवायफ और कोठे का Culture काफी पुराना है, पहले के दौर में नृत्य संगीत से दिल बहलाने और अय्याशी करने के मकसद से भी कोठी पर जाया करते I इस फिल्म के प्रोड्यूसर और डायरेक्टर कमल अमरोही भी ऐसे ही तवायफों के कोठे पर जाया करते, क्योंकि वह तवायफों की जिंदगी पर एक फिल्म बनाना चाहते थे, उनके दिमाग में अपने जमाने की दो बाईयों की जिंदगी थी, पहली जद्दन बाई जिनके महफिल में Zulfikar Ali Bhutto, KL Sehgal जैसे दिग्गज लोग उनकी महफिल का हिस्सा बनते थे, और दूसरी थी गौहर जान उस दौर में उनके आन बान और शन के भी किस्से खूब मशहूर थे I
कहते हैं कि इस फिल्म को बनने में 16 साल का लंबा वक्त लगा, क्योंकि इस फिल्म के Director Kamal Amrohi इस फिल्म के जरिए से वाकई में कमाल करना चाहते थे, इसी के साथ इस फिल्म के बनने के दौरान ऐसे ऐसे मोड़ आए, ऐसा दौर आया जिसे बनने में देखते देखते 16 साल का लंबा अरसा बीत गया I लेकिन इस फिल्म को पूरा होने 16 साल का लंबा अरसा क्यों लगा, इसके दो बड़ी वजह मानी जाते हैं, पहले कमाल अमरोही के परफेक्शन के चक्कर में फिल्म को बार-बार शूट करना, और दूसरी वजह मीना कुमारी जी और कमल अमरोही के बीच का झगड़ा और उनका सिपरेशन I
1956 में जब यह फिल्म शुरू हुई थी तब यह ब्लैक एंड व्हाइट फिल्म थी, लेकिन कुछ सालों के बाद 60 के दशक में कलर टेक्नोलॉजी आई, लेकिन तब तक फिल्म पाक़ीज़ा आधी बनाकर तैयार थी, पर कमल अमरोही का पागलपन ऐसा कि इस फिल्म को कलर में शूट करने का फैसला किया, और जो फिल्म ब्लैक एंड व्हाइट में शूट की थी वह कचरे के डब्बे में चली गई I नए शुरू से इस फिल्म की शूटिंग कलर में शुरू हुई, लेकिन कुछ दिनों बाद मार्केट में एक नए किस्म के सिनेमा स्कोप लेंस के आने की खबर मिली, और पता चला इस लेंस से शूट करने पर यह फिल्म पर्दे पर बड़ी दिखेगी, यह नई टेक्नोलॉजी कमल अमरोही को काफी पसंद आई और फिर कमल ने इस फिल्म को फिर से नए शुरू से शूट करने का मन बना लिया I कमल ने हॉलीवुड के एक स्टूडियो से वह लेंस किराए पर ले लिया, और फिर उस लेंस के जरिए से पाक़ीज़ा फिल्म को तीसरी बार नए शुरू से शूट करना शुरू किया I
इस खास लेंस से शूट करने के लिए कमल अमरोही ने जर्मन से सिनेमेटोग्राफर को भारत लेकर आए, लेकिन उनके पागलपन की दास्तान यही खत्म नहीं होती दरअसल ₹50,000 प्रति माह के किराए पर हॉलीवुड से मंगाया गया सिनेमा स्कोप यानी लेंस खराब निकला और उस शूट किए गए सीन भी खराब हो गए I तब कमल अमरोही खुद कैलिफोर्निया स्टूडियो में गए जहां से उन्होंने वह लेंस मंगवाए थे, और वहां उन्होंने उस लेंस की प्रॉब्लम बताएं, स्टूडियो वालों ने अपनी गलती मानते हुए कमल अमरोही को एक नया सिनेमा स्कोप यानी लेंस तोहफे में दिए I इसी से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि कमल अमरोही ने किस तरह से वक्त पैसा और पूरे टीम के मेहनत को पानी में मिला दिया I
इससे यह भी पता चलता है कि पाक़ीज़ा फिल्म की किस्मत में इतनी आसानी से बनना नहीं था, अब इस फिल्म के बनने में सबसे बड़ी रुकावट आई, साल 1964 में मीना कुमारी जी और उनके पति कमल अमरोही के बीच जबरदस्त झगड़ा हुआ, और वह दोनों अलग रहने लगे I फिल्म एक्सपर्ट बताते हैं की फिल्म पाक़ीज़ा के शूटिंग दौरान कमल अमरोही अपने पत्नी मीना कुमारी को अपने प्राइवेट प्रॉपर्टी की तरह ट्रीट करने लगे, और यह सेट पर मौजूद बाकी लोगों को भी साफ नजर आ रहा था I कमल अमरोही ने मीना जी पर बहुत सी पाबंदियां लगाई थी, एक मशहूर अदाकारा को अपने इच्छाओं का गुलाम बनाया था, मीना जी सेट पर किसे बात करेंगे किसे दूर रहेंगे और किसे अपने मेकअप रूम में आने देंगे और किसके साथ ही है फिल्म करेंगे इस सब का फैसला कमल अमरोही ही किया करते I
1956 में जब यह फिल्म शुरू हुई थी तब यह ब्लैक एंड व्हाइट फिल्म थी, लेकिन कुछ सालों के बाद 60 के दशक में कलर टेक्नोलॉजी आई, लेकिन तब तक फिल्म पाक़ीज़ा आधी बनाकर तैयार थी, पर कमल अमरोही का पागलपन ऐसा कि इस फिल्म को कलर में शूट करने का फैसला किया, और जो फिल्म ब्लैक एंड व्हाइट में शूट की थी वह कचरे के डब्बे में चली गई I नए शुरू से इस फिल्म की शूटिंग कलर में शुरू हुई, लेकिन कुछ दिनों बाद मार्केट में एक नए किस्म के सिनेमा स्कोप लेंस के आने की खबर मिली, और पता चला इस लेंस से शूट करने पर यह फिल्म पर्दे पर बड़ी दिखेगी, यह नई टेक्नोलॉजी कमल अमरोही को काफी पसंद आई और फिर कमल ने इस फिल्म को फिर से नए शुरू से शूट करने का मन बना लिया I कमल ने हॉलीवुड के एक स्टूडियो से वह लेंस किराए पर ले लिया, और फिर उस लेंस के जरिए से पाक़ीज़ा फिल्म को तीसरी बार नए शुरू से शूट करना शुरू किया I
इस खास लेंस से शूट करने के लिए कमल अमरोही ने जर्मन से सिनेमेटोग्राफर को भारत लेकर आए, लेकिन उनके पागलपन की दास्तान यही खत्म नहीं होती दरअसल ₹50,000 प्रति माह के किराए पर हॉलीवुड से मंगाया गया सिनेमा स्कोप यानी लेंस खराब निकला और उस शूट किए गए सीन भी खराब हो गए I तब कमल अमरोही खुद कैलिफोर्निया स्टूडियो में गए जहां से उन्होंने वह लेंस मंगवाए थे, और वहां उन्होंने उस लेंस की प्रॉब्लम बताएं, स्टूडियो वालों ने अपनी गलती मानते हुए कमल अमरोही को एक नया सिनेमा स्कोप यानी लेंस तोहफे में दिए I इसी से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि कमल अमरोही ने किस तरह से वक्त पैसा और पूरे टीम के मेहनत को पानी में मिला दिया I
इससे यह भी पता चलता है कि पाक़ीज़ा फिल्म की किस्मत में इतनी आसानी से बनना नहीं था, अब इस फिल्म के बनने में सबसे बड़ी रुकावट आई, साल 1964 में मीना कुमारी जी और उनके पति कमल अमरोही के बीच जबरदस्त झगड़ा हुआ, और वह दोनों अलग रहने लगे I फिल्म एक्सपर्ट बताते हैं की फिल्म पाक़ीज़ा के शूटिंग दौरान कमल अमरोही अपने पत्नी मीना कुमारी को अपने प्राइवेट प्रॉपर्टी की तरह ट्रीट करने लगे, और यह सेट पर मौजूद बाकी लोगों को भी साफ नजर आ रहा था I कमल अमरोही ने मीना जी पर बहुत सी पाबंदियां लगाई थी, एक मशहूर अदाकारा को अपने इच्छाओं का गुलाम बनाया था, मीना जी सेट पर किसे बात करेंगे किसे दूर रहेंगे और किसे अपने मेकअप रूम में आने देंगे और किसके साथ ही है फिल्म करेंगे इस सब का फैसला कमल अमरोही ही किया करते I
कमल अमरोही ने अपने दोस्तों को आधी सूट की हुई फिल्म दिखाइए, और मीना कुमारी जी को इस फिल्म में वापस लाने और उन्हें मनाने के लिए गुजारिश की, फिर उन चारों लोगों ने मीना कुमारी जी का दरवाजा खटखटाया , मीना जी की हालत देख सब सहेर उठे बीमारी के चलते हैं मीना जी काफी बदली नजर आ रही थी, शराब और दवाइयां में डूबी बिस्तर में पड़ी थी I पहले तो मीना जी ने अपने पति कमल अमरोहा के साथ काम करने में साफ मना कर दिया, लेकिन इस फिल्म में काम करने वाले सैकड़ो लोगों को मोहरा बनाकर मीना जी को इमोशनल ब्लैकमेल किया गया I
बहुत से लोगों के रोजी-रोटी का सवाल था तब जाकर मीना कुमारी ने कमाल अमरोही को खत लिखा और कहा कि वह पाकीज़ा फिल्म को पूरा करने के लिए तैयार है, लेकिन उनकी दो शर्ते हैं पहली शर्त कमल अमरोही तलाक देकर मीना जी को आजाद करें, और दूसरी उनकी जिंदगी में दखलंदाजी नहीं करेंगे और इसी के साथ मीना जी ने इस फिल्म में उनके काम करने की उनकी फीस सिर्फ एक रुपए बताइए I कमल अमरोही को तो मानौ जैसे खजाना ही मिल गया हो, और मीना जी के नाम बता कर मार्केट से बहुत पैसा उठाया, और पाकीज़ा फिल्म की शूटिंग फिर से शुरू की गई I
ट्रेजेडी क्वीन के अंदर के दर्द में पर्दे पर ऐसा कमाल दिखाए की इस फिल्म के किरदार में वो अमर हो गई, और इसकी वजह यह थी की उनकी निजी जिंदगी काफी तकलीफ और परेशानियों में चल रही थी, और वह काफी बीमार भी रहने लगे थी, जब वह सूट के लिए सेट कर पहुंचती थी तब वह अपने सारे गम और तकलीफ भुलाकर अपने किरदार में डूब जाती थी, साल 1968 में जब फिर से शूटिंग शुरू हुई, तो पिछले 10, 12 साल में इस फिल्म के कलाकारों की उम्र बढ़ गई थी और इसी वजह से कलाकारों की आदला बादली किया गया, और उनकी भूमिकाएं बदल दी गई, जर्मन से सिनेमेटोग्राफर को भारत इस फिल्म के लिए लेकर आए थे,1968 आते आते उनकी मौत हो चुकी थी, और इस फिल्म के संगीतकार गुलाम मोहम्मद भी अब इस दुनिया में नहीं थे I
फिर दूसरे सिनेमेटोग्राफर और संगीतकार ने इस की कमान संभाली और वही मीना कुमारी में भी काफी बदलाव नजर आया, वह बीमारी और गम में खुद को डुबोकर खुद को बर्बाद कर चुकी थी, आंखों के नीचे काले गड्ढे और चेहरे पर सूजन साफ नजर आ रही थी, लेकिन लीड एक्टर्स को बदलना यह मुमकिन नहीं था I कुछ सालों बाद फिल्म की शूटिंग फिर से शुरू हुई तो शूटिंग के लिए सेट पर मीना कुमारी जी काफी मुश्किल से पहुंच पाती थी, और हर वक्त अपने लीवर के दर्द से परेशान रहती, मेकअप करना वजनदार कॉस्ट्यूम और ज्वेलरी पहनना, डायलॉग याद करना कैमरे के तेज रोशनी में अभिनय करना, यह सब मीना जी के लिए काफी मुश्किल हो रहा था I
लेकिन जैसे ही डायरेक्ट एक्शन बोलते तो एक अलग ही मीना कुमारी नजर आती, वह पूरे जोश और शिद्दत से अभिनय करती, और इस मीना कुमारी को देख यह कोई भी नहीं कह सकता कि उन्हें कोई तकलीफ या वह बीमार है I पर शूटिंग के दौरान मीना जी कई बार बेहोश होकर गिर गई, और इसी के साथ कई बार सेट उनके खून से लत पत हुआ था, कहते हैं कि कमल अमरोही को इस बात से ज्यादा परेशान रहने लगे की किसी तरह से फिल्म पूरे हो जाए I कमल अमरोही बीमारी मीना जी से कई-कई घंटे तक शूटिंग करवाते, उन्होंने मीना जी के सेहत का जरा भी ख्याल नहीं किया, जिसकी वजह से मीना जी की तबीयत और ज्यादा खराब हो गई, मीना जी ने इस फिल्म को पूरा करने का वादा किया था, इसी वजह से वह भी पीछे हटने तैयार नहीं थी I
फिल्म एक्सपोर्ट बताते हैं कि तब इस फिल्म को पूरा करने के लिए नरगिस ने उन्हें मनाया था, तो अब उन्हें उनकी हालत देखकर वह अपने किए पर अफसोस कर रही थी, और नरगिस दत्त ने कमाल अमरोही के सिक्योरिटी से अपनी नाराजगी भी जताई थी I तो शायद यही वजह थी कि जिस वक्त मीना कुमारी जी इस दुनिया को अलविदा कह गई नरगिस दत्त ने कहा था, मीना मौत मुबारक हो I जब कमल अमरोही को कोई चारा नजर नहीं आया तब उन्होंने कुछ गानों में मीना कुमारी जी के बॉडी डबल करने का फैसला लिया, फिर उस दौर की जानी-मानी अदाकारा और डांसर पदमा खन्ना ने इसका सीक्वेंस शूट किया I
वैसे तो मीना कुमारी जी ने दर्जनों फिल्मों में काम और शानदार अभिनय किया, और उनको अपने दौर की ट्रेजेडी क्वीन के नाम से भी जाना जाता है, लेकिन मीना कुमारी जी की आखिरी फिल्म “पाक़ीज़ा” उनके किए हुए पहले सभी फिल्मों पर भारी पड़ी और इस फिल्म की वजह से आज भी उन्हें याद किया जाता है I जाहिर है आज भी जब कोई मीना कुमारी का जिक्र करता है तो सबके ख्यालों में पाक़ीज़ा फिल्म की ही मीना कुमारी की छवि सामने आती है I क्रिटिक्स कहते हैं कि इस फिल्म में मीना कुमारी जी अपने शानदार अभिनय से अपना नाम हिंदुस्तान के फिल्मों के इतिहास में हमेशा के लिए अमर कर लिया I
इस फिल्म में मीना कुमारी पर फिल्माए गए ऐसे कई सीक्वेंस ने ऐसा गहरा असर छोड़ा था, की देखने वाले मीना जी की अदायगी देख वह-वह के उठे, क्रिटिक्स कहते हैं कि अपने निजी जिंदगी के दुखों और तकलीफों को मीना जी ने इस कदर अपने किरदार में डाला कि उनकी आखिरी फिल्म उनके फिल्मी करियर और हिंदुस्तान के फिल्म इतिहास की क्लासिक फिल्म बन गई I मीना कुमारी जी की बायोग्राफी लिखने वाले जाने माने राइटर विनोद मेहता डायरेक्टर के हवाले से लिखते हैं की मीना कुमारी एक ऐसी अदाकारा थी जिनके सामने बड़े से बड़े दिग्गज अदाकार भी अपने डायलॉग भूल जाते, और इस बात का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है “पाक़ीज़ा” फिल्म में दिग्गज अदाकार राजकुमार भी मीना कुमारी के सामने अपने डायलॉग भूल जाते थे I
पाक़ीज़ा फिल्म में मीना कुमारी और राजकुमार का ट्रेन वाला रोमांटिक सीक्वल हो या फिर एक दूसरे के बाहों में मोहब्बत का इजहार करना कहते हैं के वास्तव में राजकुमार मीना जी पर मोहित हो जाते थे, और अपने डायलॉग भूल जाते हैं, राजकुमार जी को अपने सामने डायलॉग भुलाते हुए देख मीना कुमारी मुस्कुराते और डायलॉग याद करने में उनकी मदद करती I “थारे रहियो ओ बांके यार” “मौसम है आशिकाना” “चलते चलते मिल गया था यूं ही कोई” पाक़ीज़ा फिल्म के यह सारे गाने आज भी लोग गुनगुनाते हैं और इसे आज भी उतना ही प्यार करते हैं, क्योंकि कहा जाता है कि जितनी यह फिल्म मीना कुमारी की अदायगी के लिए जानी जाती है उतना ही इसके संगीत के लिए भी मशहूर है संगीतकार गुलाम मोहम्मद और नौशाद भी इस फिल्म के साथ-साथ अमर हो गए I
इस फिल्म को सफलता दिलाने में अहम योगदान संगीत का भी है, पाक़ीज़ा फिल्म को संगीता गुलाम मोहम्मद ने दिया था, लेकिन 1968 में जब पाक़ीज़ा फिल्म की शूटिंग दोबारा से शुरू हुई तब इस फिल्म के संगीतकार गुलाम मोहम्मद की मौत हो चुकी थी, लेकिन वह इस फिल्म के सारे गाने बना गए थे I इस फिल्म के लिए 15 गाने बनाए थे जिसमें से सिर्फ 6 गाने इस फिल्म लिए हैं, फिर आप बचे हुए गाने और बैकग्राउंड म्यूजिक के लिए नौशाद संगीतकार नौशाद को कमान सोपी गई, फिल्म का संगीत कमल का हिट साबित हुआ इस फिल्म के गानों को स्वर्ण लता लता मंगेशकर ने अपनी आवाज दी जैसे यह गीत वो युगों के लिए अमर हो गए I
रिलीज होने के बाद यह फिल्म पर्दे पर कुछ खास कमाल नहीं दिखा पाई, और मीना कुमारी लिवर से जुड़े बीमारी से लड़ रही थी, उनको भी इस बात का सदमा लगा, बताते हैं की फिल्म रिलीज के कुछ ही दिनों बाद मीना कुमारी जी की मौत हो गई, और उसके बाद दर्शकों की सहानुभूति इस कदर टूट पड़ी की फिल्म सुपर डुपर ब्लॉकबस्टर बन गई I 4 फरवरी 1972 को मुंबई की मराठा मंदिर में पाक़ीज़ा फिल्म का प्रीमियर हुआ, बीमार होने के बावजूद भी मीना कुमारी इसमें शामिल रही, प्रीमियर में क्रिटिक्स भी शामिल थे, और उन्हें यह फिल्म कुछ खास पसंद नहीं आई I
इस फिल्म की शुरुआत भी बॉक्स ऑफिस पर कुछ अच्छी नहीं रही, लेकिन फिल्म रिलीज होने के 56 दिन बाद 31 मार्च 1972 को 39 साल की उम्र में ट्रेजेडी क्वीन मीना कुमारी का लीवर सिरोसिस के वजह से मौत हो गई I तब एक जबरदस्त करिश्मा हुआ, धीरे-धीरे “पाक़ीज़ा” हिंदुस्तान के दूसरे शहर में भी रिलीज हुई, और 1972 की सबसे ब्लॉकबस्टर फिल्म साबित हुई, मीना जी के प्रति दर्शकों की संवेदना उमड़ी, और कई शहरों में 50 हफ्तों तक सिनेमा घरों में चलती रही I इस फिल्म को देखने के बाद लोग सिनेमा घर से बाहर आंखों में आंसू लेकर आते, और मीना जी को खूब याद करते I
लेकिन गौर करने वाली बात यह थी, के जिसके बदौलत यह फिल्म ब्लॉकबस्टर हिट साबित हुई, और बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचाया, और जिसके नाम से डिस्ट्रीब्यूशन से पैसे उठाए थे, और जिसने इस फिल्म में काम करने के लिए ₹1 भी रुपया नहीं लिया, उसी मीना कुमारी जी के पास अस्पताल में अपने इलाज के लिए तक पैसे नहीं थे, और जब उनकी मौत हुई तो उनके पास उनके कफन के लिए भी पैसे नहीं थे I तब मीडिया में एक और शर्मिंदा करने वाली बात आई, कि जब कमल अमरोही से मीना जी के इलाज में खर्च हुए पैसों को चुकाने की गुजारिश की गई, तब उन्होंने यह कहते हुए अपना दामन झाड़ लिया, कि उन्होंने मीना जी को तलाक दे दिया था, और इसी वजह से मीना जी के प्रति उनकी कोई भी जिम्मेदारी नहीं है I
मीना कुमारी भारतीय सिनेमा की एक अद्वितीय हस्ती थीं, और उनके योगदान को सदैव याद किया जाएगा।