कैसे एक अनाथ लड़की 31 साल की उम्र से फिल्मों में अपने से बड़े उम्र के अदाकार की मां का संजीदा रोल निभाने शुरू किया, जिस दौर में हिंदुस्तान की औरतें घूंघट में अपना चेहरा छुपाए पिछड़ी जिंदगी जी रहे थी, उस दौर में कैसे और 60 दशको तक हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में अपने हुनर का लोहा बनवाया और अपने अभिनय कला के ढंके बजाए I हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के साथ ही साथ वह मराठी और दक्षिण भारतीय फिल्मों में अपना नाम और पहचान बनाई, और हिंदुस्तान के फिल्मों में अपने काम और लगन से रोशन करती रहे I उन्होंने अपने फ़िल्मी करियर की शुरुआत चाइल्ड आर्टिस्ट से की थी और देखते ही देखते चाइल्ड आर्टिस्ट लीड रोल, कैरक्टर रोल्स में अपने नाम के ढंके बजाएं I यह 12 साल की उम्र में अनाथ हो गई और 14 साल की उम्र आते-आते रिश्तेदारों ने इनका बाल विवाह कर दिया I
ट्रेजेडी किंग दिलीप कुमार साहब से लेकर सदी के महानायक अमिताभ बच्चन, अभिनेता धर्मेंद्र से लेकर अभिनेता देवानंद तक अदाकारा ने इन सब अभिनेता के मां का रोल बखूबी अदा किया I फिल्मों के साथ ही कई मशहूर अभिनेता अदाकार इन्हें अपनी निजी जिंदगी में भी मां का दर्जा देते, और उनके पैर छूकर आशीर्वाद भी लेते थे I उम्र के महज 31 साल से ही यह फिल्मों में अपने से बड़े उम्र के अदाकार के मां का संजीदा रोल निभाने शुरू किया, ये अपने अदाकारी में इस कदर खो जाती थी, दर्शक को लगता यह एक फिल्म नहीं बल्कि वह हकीकत देख रहे हैं, उनके इमोशनल सीन देखकर दर्शक भाऊक हो जाते थे I आखिर कौन थी यह अदाकारा और क्यों बला की खूबसूरत और टैलेंटेड होने के बावजूद भी इन्हें ज्यादा वक्त फिल्मों में लीड रोल नहीं दिया, और इन्हें अपने से बड़े उम्र के अदाकार के मां का रोल अदा करने को मिला I
आज हम जानेंगे हिंदुस्तान की फिल्म इंडस्ट्री की सबसे मशहूर अदाकारा जो फिल्मों में ज्यादातर मां का रोल निभाने वाली महान अदाकारा सुलोचना लाटकर की इनका जन्म 30 जुलाई1928 को कर्नाटक राज्य के बेलगांव जिले के खड़क लाट गांव में एक मराठी फैमिली में हुआ I इनका गांव खलखलाहट महाराष्ट्र के सीमा के नजदीक था इनके पिता कोल्हापुर में दरोगा की नौकरी करते थे, सुलोचना जी को एक बड़ा भाई था, और इनके फैमिली में एक मौसी थी जो इनसे बहुत करीब थी I सुलोचना जी की शुरुआती पढ़ाई उनके गांव की प्राथमिक स्कूल से हुई, उस दौर में लड़कियों की पढ़ाई पर इतना ध्यान नहीं दिया जाता था, इस कारण सुलोचना जी के पढ़ाई ज्यादा नहीं हो पाई I
सुलोचना जी के गांव में राजे बक्सर की दरगाह और बाली साहब की दरगाह थी, हर साल खड़क लाट गांव में इन दोनों दरगाहों का उर्स बड़े धूमधाम से मनाया जाता था, उर्स के दिनों गांव में लोग मेला भी लगते थे, उन दिनों मेले में नाटक और तमाशा भी दिखते थे, और इसी के साथ पर्दे पर फिल्मों के शो भी देखने को मिलते थे I बचपन से ही सुलोचना जी अपने घर वालों के साथ दरगाहों के उर्स और मेले में जाया करती, और खासतौर से फिल्में शो को देखने में इन्हें काफी दिलचस्पी थी, और इसी कारण छोटी उम्र से ही सुलोचना जी के मन में फिल्मों के प्रति चाहत जागने लगे I
सुलोचना जी जब 12 साल की थी तब इनके माता-पिता की मौत हो गई, मां बाप के मौत के बाद सुलोचना जी और उनके भाई को सिर्फ एक मौसी का ही सहारा था I इसके बाद उनके गांव में एक बीमारी काफी तेजी से फैल रही थी जिससे बचने के लिए सुलोचना जी उनके भाई और मौसी के साथ उनके पिता के दोस्त के यहां पनाह लेने पहुंची, जो उनके पड़ोसी गांव में रहते थे, और वह एक पेशेवर वकील थे I पिताजी के दोस्त के यहां पनाह तो ले ली, पर ये बात सुलोचना जी को बिलकुल गवारा नहीं थी, कि वह उन पर बोझ बने सुलोचना जी अपनी जरूरत पूरा करने और जिंदगी गुजारने के लिए काम करने फैसला करते हैं I काम के सिलसिले से वकील साहब के घर उस दौर के मशहूर फिल्म प्रोड्यूसर और डायरेक्टर मास्टर विनायक आए थे I
कोल्हापुर में मास्टर विनायक जी की खुद की फिल्म कंपनी थी, जिसका नाम “प्रफुल्ल पिक्चर्स” था, सुलोचना जी की कहानी के बारे में जब मास्टर विनायक को पता चला, तब मास्टर विनायक ने सुलोचना जी के सामने अपने फिल्म कंपनी में काम करने का सुझाव दिया, सुलोचना जी को उस वक्त काम की सख्त जरूरत थी, और उन्होंने बिना किसी देरी के मास्टर विनायक के इस सुझाव को मान लिया I यह किस्सा साल 1983 के दशक का है I मास्टर जी के प्रफुल्ल पिक्चर कंपनी में उस जमाने की महान गायिका लता मंगेशकर भी साथ में काम कर रही थी, सुलोचना जी की पढ़ाई ज्यादा नहीं हुई थी, और इन्हें हिंदी में बात करने में बहुत परेशानी होती थी, और इसी वजह से सुलोचना जी पिक्चर्स में काम करने के लिए डर रही थी, ऐसे में उस वक्त सुलोचना जी का साथ लता मंगेशकर ने खूब साथ दिया, और उनकी हिम्मत बढ़ाई, और इस तरह से इन दोनों के बीच गहरी दोस्ती हो गई I
सुलोचना जी जब फिल्मों में काम करने लगी उसे ठीक 3 महीने बाद मास्टर जी अपने कंपनी को उस दौर के बॉम्बे यानी { आज के मुंबई } लेकर आए, जब मास्टर जी ने उनके साथ सुलोचना जी को बॉम्बे आने को कहा, तब पहले तो सुलोचना जी मुंबई का नाम सुनते ही घबरा गई, मास्टर जी के मुंबई आने के बाद प्रफुल्ल पिक्चर से सुलोचना जी ने नौकरी छोड़ दी I प्रफुल्ल पिक्चर्स के बाद सुलोचना जी ने जयप्रभा स्टूडियो में शामिल हुई, और स्टूडियो में सुलोचना जी को महीना ₹30 पेमेंट मिलती थी, उस जमाने में यह ₹30 भी आज के ₹500 के मुकाबले में ज्यादा थे I
जयप्रभा स्टूडियो के मालिक थे भालजी पेंढारकर उर्फ बाबा, और उन दिनों जय प्रभात स्टूडियो अपने धार्मिक और ऐतिहासिक फिल्मों के लिए काफी मशहूर था I इसी स्टूडियो से सुलोचना जी ने फिल्मों में काम करना सीखा, और सुलोचना जी को काम सीखने में ज्यादा योगदान भालजी पेंढारकर का रहा, भाल जी ने ही उन्हें घोड़ सवारी, लाठी, और तलवार चलाना सीखते थे I 1943 में मास्टर विनायक जी की एक फिल्म “चिमकुला संसार” आई थी, और इस फिल्म में चाइल्ड आर्टिस्ट के तौर पर सुलोचना जी ने छोटा सा रोल अदा किया था, सुलोचना जी का कहना था कि उनके फिल्मी करियर की शुरुआत साला 1944 में जयप्रदा स्टूडियो से की फिल्म “महारथी कर्ण” और इसके 2 साल बाद 1946 में फिल्म “वाल्मीकि” से हुई थी I
1947 में आई मराठी फिल्म “ससुरा वास” से सुलोचना जी फिल्मों में लीड रोल करना शुरू किया, और इस फिल्म में सुलोचना जी के साथ लीड रोल में थे मास्टर विट्ठल I एक इंटरव्यू में सुलोचना जी ने बताया कि उनका असली नाम रंगू दीवान था, और सारे लोग इन्हें प्यार से रंगू नाम से पुकारते थे, फिल्मों में आने के बाद भाल जी पेंढारकर ने इनका नाम सुलोचना लाटकर रख दिया I सुलोचना जी जब जयप्रभा स्टूडियो में काम करती थी तो उससे पहले ही उनकी शादी कोल्हापुर के एक जमींदार के बेटे से हुई थी, उनका नाम आबासाहेब चौहान था, सुलोचना जी का बाल विवाह हुआ था और उस वक्त उनकी उम्र सिर्फ 14 साल थी I
1948 में जब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को गोली मारकर उनकी हत्या कर दी गई, गांधी जी की हत्या करने में “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ” का हाथ है ऐसा कहा गया I गांधी जी की हत्या के बाद पूरे हिंदुस्तान में और खासकर महाराष्ट्र में दंगे हो रहे थे और माहौल काफी गर्म था, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के जो कार्यकर्ताओं के घरों और दुकानों में आग लगा दी गई I जयप्रभा स्टूडियो के मालिक भाल जी पेंढारकर भी इस संघ से जुड़े हुए थे, और इसी वजह से उनके स्टूडियो को भी गुस्सा आए लोगों ने आग लगा दी, और पुलिस ने भाल जी पेंढारकर को अरेस्ट कर लिया I फिर इस दुर्घटना के बाद जयप्रभा स्टूडियो बंद हो गया, भाल जी पेंढारकर ने अपने स्टूडियो में काम करने वाले सभी लोगों को दो महीने की पेमेंट दे दि, और उनको काम से आजाद कर दिया I
इन सारे हादसों के बाद सुलोचना जी महाराष्ट्र के पुणे आ गई, इत्तेफाक से पुणे में मंगल पिक्चर्स कंपनी की फिल्म “जीवाचा सखा” में लीड रोल में काम करने का मौका मिला, और यह फिल्म 1948 में रिलीज हुई थी, और यह फिल्म पर्दे पर कामयाब साबित हुई I इस फिल्म के बाद सुलोचना जी रातों-रात मराठी फिल्म इंडस्ट्री की स्टार बन गई, फिर उनके पास फिल्मों में काम की कमी नहीं रही I
1952 में सुलोचना जी की एक और फिल्म आए जिसका नाम “स्त्री जन्म ही तुझे कहानी” था, यह फिल्म मराठी बॉक्स ऑफिस पर आते हैं छा गई I इस फिल्म की कहानी रंजीत मूवी टोल के मालिक सरदार चंदू शाह को काफी अच्छी लगी, और उन्होंने इस फिल्म को हिंदी में बनाने का तय किया I यह फिल्म हिंदी में बनाई गई और उसका नाम “औरत तेरी यही कहानी” रखा, मराठी मूवी को नजर में रखते हुए चंदू शाह ने हिंदी फिल्म में भी सुलोचना जी को ही लीड रोल में लिया, सुलोचना जी को ही साइन करने की वजह यह थी कि साल 1953 में सुलोचना जी पुणे से मुंबई आई I
“औरत तेरी यही कहानी” यह फिल्म 1954 में रिलीज हुई, इस फिल्म में सुलोचना जी के साथ अदाकार भारत भूषण लीड रोल में थे, अपने पहले ही फिल्म से सुलोचना जी हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में काफी मशहूर हुई I इसके बाद भी सुलोचना जी ने कई हिंदी फिल्मों में काम किया पर वह असफल रही, जैसे की 1954 में आए “महात्मा कबीर” 1956 में आए “सजनी” 1957 में आई फिल्म “अब दिल्ली दूर नहीं”, 1960 में आई फिल्म “मुक्ति” यह फिल्में बॉक्स ऑफिस पर असफल रही I इन सब फिल्मों के बीच साल 1956 में फिल्म “सती अनसूया” रिलीज हुई थी, बाकी फिल्मों के मुकाबले में यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर हिट साबित हुई और इस फिल्म ने सुलोचना जी को रातों-रात हिंदी धार्मिक फिल्मों का स्टार बना दिया I
धार्मिक फिल्मों से इनको कामयाबी पर गहरा असर हुआ, धार्मिक फिल्मों के अलावा इन्हें दूसरी फिल्मों में काम मिलना मुश्किल हुआ, 1957 में आए “अब दिल्ली दूर नहीं” यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर हिट हुई थी, और इस फिल्म का गाना “यह चमन हमारा है” यह सुलोचना जी पर ही फिल्माया गया था I इस गाने में सुलोचना जी के साथ मास्टर रोमि थे, इस फिल्म के बाद किसी और फिल्म में सुलोचना जी को लीड रोल में कामयाबी नहीं मिली I यह बात है साल 1959 की उस जमाने के मशहूर फिल्म डायरेक्टर विमल राय ने अपनी फिल्म “सुजाता” में सुलोचना जी को अदाकारा के मां का किरदार ऑफर किया, सुलोचना जी डायरेक्टर विमल राय को मना तो नहीं कर सकी पर वह इस उलझन में थी सिर्फ 31 साल की उम्र में मां का रोल अदा करना यह कहां तक सही है I
फिल्म इंडस्ट्री में काम करने के दौरान सुलोचना जी की कई लोगों से जान पहचान और कुछ लोगों से गहरी दोस्ती भी हो गई थी, जिसमें उस जमाने की मशहूर अदाकारा “दुर्गा खोटे” और “ललिता पवार” ने उनसे कहा था कि अगर तुम्हें फिल्म इंडस्ट्री में लंबे समय तक टिके रहना है, और कामयाबी और शोहरत हासिल करना है तो इस फिल्म में मां का रोल अदा करो I अपनी सहेलियों के कहने पर सुलोचना जी ने विमल राय की फिल्म “सुजाता” में मां का किरदार बख़ूबी अदा किया, और साल 1959 में फिल्म “सुजाता” हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में सबसे हिट फिल्म साबित रही, और फिर देखते ही देखते हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में कैरक्टर आर्टिस्ट के बीच में रातों रात सुलोचना लाटकर एक कामयाब और मशहूर नाम बन गई I
सुजाता फिल्म के बाद सुलोचना जी साल 1959 में “दिल देके देखो” 1964 में आई फिल्म “आई मिलन की बेला” 1966 में “आए दिन बहार के” 1967 में फिल्म “नई रोशनी” 1968 में संघर्ष और इसी साल दुनिया और आदमी जैसे कई हिट फिल्मों में काम किया I इसके अलावा 1969 में “सजन”, साल 1970 में “जॉनी मेरा नाम” और इसी साल “कटी पतंग” जैसे फिल्मों में सुलोचना जी ने अपना किरदार बहुत अच्छे से और बखूबी अदा किया I इसके अलावा सुलोचना जी की कुछ और खास फिल्में रही, 1974 में आई “कसौटी” 1974 में ही “प्रेम नगर” “कोरा कागज” 1975 में “सन्यासी” और 1978 की “मुकद्दर का सिकंदर” “गंगा की सौगंध” साल 1981 में “क्रांति” 1983 की फिल्म “अंधा कानून’ इन सभी फिल्मों में सुलोचना जी मां की किरदार अदा की है I हिंदी फिल्मों के साथ ही मराठी फिल्मों में भी काम करते रही I
60 दशक तक अपने लंबे फिल्मी करियर में सुलोचना जी ने लगभग 500 के करीब फिल्मों में काम किया, डेढ़ सौ से ज्यादा मराठी फिल्में, ढाई सौ से ज्यादा हिंदी फिल्में और थोड़ा दक्षिण भारतीय फिल्मों में काम किया I बढ़ती उम्र के साथ सुलोचना जी ने अपने आप को फिल्मों से दूर किया I फिर साल 1986 में आई फिल्म “खून भरी मांग” में सुलोचना जी ने अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा के मां का किरदार निभाया, इस फिल्म के बाद सुलोचना जी ने काफी वक्त तक फिल्म इंडस्ट्री से दूर रही, काफी लंबे समय के बाद 2003 में यह धर्मेंद्र की फिल्म “टाड़ा” में नजर आई इसके बाद 2007 में आई फिल्म परीक्षा में भी काम किया बताया जाता है की परीक्षा यह फिल्म सुलोचना जी की आखिरी फिल्म रही I
अब बात करते हैं सुलोचना जी को मिले हुए अवार्ड और पुरस्कार की :
महान और दिग्गज अदाकारा सुलोचना लाटकर को महाराष्ट्र सरकार द्वारा उनके योगदान के लिए, साल 1999 में सुलोचना लाटकर को कला के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए भारत सरकार द्वारा “पद्म श्री पुरस्कार” से सम्मानित किया गया था, जो भारत का चौथा सर्वोच्च नागरिक सम्मान है। महाराष्ट्र राज्य फिल्म पुरस्कार: उन्होंने मराठी फिल्मों में अपने उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए महाराष्ट्र राज्य सरकार से कई पुरस्कार प्राप्त किए। उन्हें हिंदी फिल्मों में उनके योगदान के लिए साल 2004 में “फिल्म फेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड” दिया गया था। उन्हें साल 2009 में “महाराष्ट्र भूषण पुरस्कार” से सम्मानित किया गया था।
सुलोचना लाटकर की निजी जिंदगी :
सुलोचना लाटकर को एक बेटी है जिसका नाम उन्होंने कंचन रखा,कंचन की शादी मराठी फिल्म इंडस्ट्री के मशहूर एक्टर अभिनेता Dr. काशीनाथ घाणेकर से हुई थी, शादी के 4 साल बाद ही श्रीनाथ घाणेकर का निधन हुआ था, सुलोचना जी की एक नातिन है रश्मि I सुलोचना जी की बेटी कंचन ने अपने पति की याद में एक ट्रस्ट बनवाया है, जिसका नाम “Dr. काशीनाथ घाणेकर नाट्य ग्रह” रखा गया है, जिसके जरिए से यह हर साल रंग कमियो को पुरस्कार से सम्मानित भी करती है I अपने जिंदगी के 65 साल सुलोचना जी ने मराठी फिल्म इंडस्ट्री और हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को दिए, और फिल्मों से रिटायर होने के बाद सुलोचना जी ने अपना सारा वक्त Dr. काशीनाथ घाणेकर नाट्यगृह ट्रस्ट में बताती है I
एक वक्त ऐसा था कि उनके बारे में यह कहा जाता था कि यह एक मुस्लिम परिवार से है, और इनका असली नाम साहब जान था, यह खबर आने के बाद उनकी बेटी कंचन ने सामने आकर कहा कि यह बस एक अफवाह और झूठ है I हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में दिग्गज अभिनेत्री निरूपा रॉय के अलावा अगर किसी ने फिल्मों में मां के किरदार में सफलता हासिल की है तो वह सिर्फ सुलोचना लाटकर ही है, जिन्होंने ट्रेजरी किंग दिलीप कुमार साहब से लेकर महानायक अमिताभ बच्चन और धर्मेंद्र सबके मां का किरदार अदा किया, और पर्दे के बाहर भी यह सब लोग निजी जिंदगी में सारे अदाकार और अदाकारा उन्हें अपने मां का दर्जा देते थे और इन्हें के पैर छूकर आशीर्वाद लेते थे I
एक दिन अचानक बढ़ती उम्र के साथ स्वास्थ्य संबंधित बीमारीयो के चलते सुलोचना जी की तबीयत खराब हो गई, और उन्हें मुंबई के शूश्रुषा हॉस्पिटल में एडमिट किया, मीडिया में इसकी जानकारी सुलोचना जी की बेटी कंचन ने दी I शनिवार 3 जून 2023 को सुलोचना जी की तबीयत काफी ज्यादा बिगड़ी और उन्हें सांस लेने में काफी तकलीफ हो रही थी, इस वजह से उन्हें वेंटिलेटर पर ऑक्सीजन दे रहे थे, रविवार 4 जून 2023 की शाम को 94 साल की उम्र में सुलोचना जी का निधन हुआ I
जब इनके पार्थिव शरीर को उनके मुंबई में स्थित घर प्रभा मंदिर लाया गया, तो वहां पर बॉलीवुड के सभी अदाकार इन्हें श्रद्धांजलि देने, और अंतिम दर्शन के लिए आए, फिल्म इंडस्ट्री के साथ राजनेता भी शामिल रहे जिसमें महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री श्री एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस भी शामिल थे, मानसे पार्टी के राजनेता राज ठाकरे भी श्रद्धांजलि देने आए थे, 5 जून 2023 की सुबह मुंबई के दादर में शिवाजी पार्क के शमशान घाट में पूरे राजकीय मान सम्मान के साथ सुलोचना जी का अंतिम संस्कार किया गया I सुलोचना लाटकर के निधन पर भारत के पंतप्रधान श्री नरेंद्र मोदी से लेकर महानायक अमिताभ बच्चन, आशा पारेख, धर्मेंद्र जैसे दिग्गज लोगों ने सोशल मीडिया पर ट्वीट कर शोक जताया I हिंदुस्तान की फिल्म इंडस्ट्री में सुलोचना लाटकर के शानदार, अविस्मरणीय योगदान के लिए इन्हें रहती दुनिया तक याद किया जाएगा I
तो यह थी दोस्तों हिंदी फिल्म जगत की सबसे मशहूर मां का किरदार निभाने वाली अदाकारा सुलोचना लाटकर के जीवन का परिचय I